गीता लौट आई। वह उस मुल्क से लौटी हैं जिस मुल्क से हमारे बड़े अजीब रिश्ते हैं। यही मुल्क हमें लुभाता है कभी 'नुसरत' के लिए, कभी मेहंदी के लिए कभी शक्ति पीठ के दर्शन के लिए, कभी ननकाना साहब के लिए तो कभी बरसों से दबी हुई कोई ऐसी जड़ के लिए जिसकी टहनी कटकर इस देश में आ गई है। ठीक उसी तरह जैसे उस मुल्क के लोग तड़पते हैं अजमेर शरीफ के लिए तो कभी ताजमहल के लिए, कभी जामा मस्जिद के लिए तो कभी अपनी पुश्तैनी खोई मिट्टी पर आंसू की दो बूंद रख अतीत की सौंधी सुगंध लेने के लिए।
यह एक ऐसा मुल्क है जिससे हम खुलकर प्यार कर नहीं पाते और नफरत हमें परिस्थितियां कभी नहीं करने देगी। एक गीता लौटती है और सबके दिलों में संवेदनाएं बहने लगती है। फिर सरबजीत याद आता है और मन कड़वाहट से भर जाता है। गीता की खातिरदारी देखते हैं तो लगता है सब हम जैसे ही तो हैं भावनाओं से भरे, इसी देश से गए.. फिर जवान का कटा सिर याद आता है और मन कसैला हो जाता है।
दोनों देशों के नागरिकों को लगता है कि सामने वाला देश ज्यादती कर रहा है। गीता के लौटने पर वहां से संदेश आता है कि हम तो आपकी बेटी लौटा रहे हैं और आप गोले बरसा रहे हैं। लेकिन दिल को बड़ा रखकर यह सोचना होगा कि क्या हम एक दूजे को लेकर अनावश्यक ज़ज्बाती हो जाते हैं। हम नहीं चाहते आपस में बैर रखना लेकिन जब आतंक के चेहरे उस देश में चमकते हैं तो इस देश में 'निर्दोष जानें' जाती हैं। क्यों 'वहां' से प्रशिक्षण लेकर कोई इस 'देश' को तबाह करने का सपना देखता है यह बात एक आम नागरिक को कभी समझ में नहीं आती है। जब संवेदना, दया, प्यार और अपनत्व यहां भी है, वहां भी है तो नफरत की खेती को खाद-पानी कौन दे रहा है? कौन है जो नहीं चाहता कि दोनों देशों में अमन कायम हो जाए, सरल आवाजाही हो, आयात-निर्यात हो और सबसे अहम आतंक का सफाया हो... चाहे वह इस देश का हो या उस देश का लेकिन खून ना बहे, सिर ना कटे, गोलियां ना चले, बम ना बरसे।
धर्म से अलग, मज़हब से परे, जातिवाद से जुदा, अहिंसा परमोधर्म की तरह...कीर्तिमान रचे जाए, प्रतिमान गढ़े जाए गीता के मोहक प्रकरण की तरह..
जी हां, सवाल हम सबसे है। सिर्फ कोई एक बेटी क्यों, आप हमें वह बेटे भी तो लौटाइए जनाब, जो जेलों में बिना किसी वजह के बंद हैं और बेपनाह जुल्म सह रहे हैं। हमारे सैनिक भी तो इंसान हैं, हमारे मछुआरे भी तो मनुष्य हैं, सीमा पर हमारे भटके हुए लोगों में भी कई गीता है, गीता के भाई हैं, गीता के पिता हैं अफसोस कि हर किसी को गीता की तरह पनाह नहीं मिली बल्कि वे मुजरिम ठहरा दिए गए।
गीता को हिफाजत से रखने का तहे दिल से शुक्रिया, लौटाने का भी आभार... क्या यही इंसानियत हम दोनों के मुल्क में हमेशा नहीं दिखाई दे सकती है?
दोनों देश एक दूजे की दुःखती रग है। प्रेम और मानवता के यह किस्से संकेत देते हैं कि देश-परदेश की दिखाई देने वाली यह दीवारें सतही और कमजोर हैं बशर्ते 'गीता' की तरह गीत गाती रहे मानवता ...
गीता लौट आई पर मोहब्बत और ममता के साथ सवाल भी लेकर आई है... आखिर हर बार, हर गीता अपने मुल्क में क्यों नहीं लौट सकती? गीता की वाणी नहीं थी पर जिस जमीं पर उसे जिंदगी का वरदान मिला वह किसी आश्चर्य से कम नहीं है... ऐसे अचरज भरे कारनामे आपके मुल्क से आते रहे तो वादा रहा कि यहां से भी इंसानियत की गाथा लिखी जाती रहेगी...