चित्रों में आपातकाल
40 वर्ष पूर्व 25-26 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल ने पूरे देश को हिला दिया था। विपक्ष के नेताओं, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों को पकड़ जेल में डाल दिया गया था। उस दौर में लोग लंबे समय तक जेल की सलाखों के पीछे रहे। इन्हीं में से एक हैं इंदौर के समाजवादी नेता अनिल त्रिवेदी। इन्होंने जेल रहकर कई चित्र बनाए, जो उस समय की स्थिति पर करारा कटाक्ष करते हैं।
इस चित्र में मकड़ी को तानाशाह के रूप में दर्शाया गया है। 26 जून, 1975 की सुबह सूर्योदय हुआ। लोग रोज की तरह आजाद निकले। तानाशाह मकड़ी कुछ योजना बना रही है।
लोकतंत्र के सूर्य पर आपातकाल का जाला बुना गया।
नागरिक आजादी छीन ली गई। पंख नोंच लिए गए।
सारा देश स्तब्ध... सूनी आंखें।
देश में आपातकाल के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन।
प्रेस की आजादी छिनी। विचार और कलम को व्यवस्था से बांधा गया।
आपातकाल में 'सरकार' की चमचागिरी और चापलूसी की होड़। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा- इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा।
पूरे देश में पुलिस राज कायम। बाहर से शांति, अंदर ही अंदर आपातकाल विरोधियों की गतिविधियां चल रही थीं।
आपातकाल के दौरान सरकार के तीन खास काम थे। उद्घाटन, शिलान्यास और भाषण।
बाहर सारे लोग कछुए की तरह अंग सिकोड़कर बैठ गए। खुलेआम कुछ भी नहीं, गुप्त रूप से योजनाएं जारी।
गांधीवादी प्रभाकर शर्मा ने आपातकाल को चुनौती देते हुए एक पत्र इंदिरा गांधी को लिखा और कहा कि पुलिस उन्हें जीते जी नहीं पकड़ पाएगी। आपातकाल के खिलाफ प्रभाकर शर्मा की आत्माहुति। देश की एकमात्र घटना।