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दलित बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति

दलित बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति - dalit Balika siksha
देश की सामाजिक बनावट व आर्थिक श्रेणीबद्धता 'सभी के लिए एक जैसी शिक्षा' के सिद्धांत के सामने हमेशा यक्षप्रश्न रही है और शिक्षा हमेशा स्तरीय खांचों में बंटी रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा के मामले में दलित बालिकाओं की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया है।


 
अनुसूचित जाति एवं जनजाति की बालिकाएं शिक्षा के मामले में अपने वर्ग के बालकों एवं सामान्य वर्ग की बालिकाओं से बहुत पीछे हैं। शिक्षा में इस बात का महत्व है कि बालिकाओं का कितना अनुपात पढ़ाई पूरी किए बगैर स्कूल छोड़कर घर बैठ जाता है। शिक्षा के सभी स्तरों पर दलित बालिकाओं की ड्रॉप आउट दर सामान्य जनसंख्या के अनुपात में बहुत ज्यादा है। 

दलित बालिकाओं की ड्रॉप आउट दरें
 
संवर्ग कक्षा 1-5 कक्षा 1-8 कक्षा 1-10
सामान्य 28.57% 52.92% 64.82%
SC 34.20% 57.30% 71.30%
ST 42% 67.10% 77.80%


सामान्य जनसंख्या के सापेक्ष दलित बालिकाओं का ड्रॉप आउट अंतर बहुत ज्यादा है। उच्च शिक्षा में भी दलित वर्ग की बालिकाओं का अनुपात सामान्य वर्ग की बालिकाओं की तुलना में बहुत पीछे है।
 
उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर 13.8% है जबकि अनुसूचित जाति की बालिकाओं की दर 1.8 % एवं अनुसूचित जनजाति की बालिकाओं की दर 1.6% मात्र है। 6 से 14 आयु वर्ग के 35.1 लाख आदिवासी बच्चों में 54 प्रतिशत अभी भी स्कूलों से बाहर हैं। इस आयु वर्ग में 18.9 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।
 
आदिवासी एवं दलित समुदाय में बालिका शिक्षा की स्थिति काफी बुरी है। आदिवासी समुदाय की कुल 41.4 प्रतिशत लड़कियां शिक्षित हैं। सहरिया और बैगा समुदाय में तो यह स्थिति और भी बुरी है। मात्र 15.9 प्रतिशत सहरिया लड़कियों का प्रतिशत ज्यादा है। 45.36 प्रतिशत स्कूल के बाहर लड़कों की तुलना में 54.64 लड़कियां स्कूल से बाहर थीं और कुल 10 प्रतिशत स्कूल से बाहर पाए गए।
 
स्कूलों से बाहर निकलते बच्चों की संख्या स्कूलों में दर्ज न होने वाले बच्चों से ज्यादा थी। इससे यह पता चल रहा था कि बच्चों के नाम स्कूलों में दर्ज तो हो जा रहे थे, पर वे काफी जल्दी बाहर हो जा रहे थे। स्कूलों से बाहर हो रहे बच्चों में भी लड़कियों की संख्या 60 प्रतिशत है, वहीं लड़कों की दर 47.31 प्रतिशत है। 6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग में शाला में दर्ज न होने वाले 186 बच्चों में 98 लड़कियां हैं।
 
प्राथमिक स्तर पर प्रवेश लेने वाली बालिकाओं में से 24.82 प्रतिशत कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पातीं और उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ता है। उच्च प्राथमिक स्तर पर 50.76 प्रतिशत बालिकाओं को बीच में ही विद्यालय छोड़कर घरेलू कार्यों में संलग्न होना पड़ता है।
 

 

दलित बालिकाओं की शिक्षा छोड़ने के कारण-
 
1. दलित बालिकाओं को बीच में ही विद्यालय छोड़कर घरेलू कार्यों में संलग्न होना पड़ता है। 
 
2. स्कूल का दूर होना, यातायात की अनुपलब्धता, घरेलू काम, छोटे भाई-बहनों की देखरेख, आर्थिक व विभिन्न सामाजिक समस्याएं आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जो कि बालिका शिक्षा की राह में बाधा हैं।
 
3. शौचालय की कमी, कमरे की कमी, टीएलएम की कमी, कौशल से युक्त शिक्षक की कमी, पानी की कमी के बावजूद दलित बालिकाएं शाला जाना चाहती हैं और पढ़ना चाहती हैं, पर शाला का नीरस वातावरण और शिक्षकों की उपेक्षा बच्चों में शिक्षा के प्रति उत्साह को कम कर देती है जिसकी वजह से दलित बालिकाओं के लिए शाला जाना सजा से कम नहीं लगता।
 
4. स्कूलों के अंदर छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयां दूर हो सकें और सभी परिवार बिना किसी भय व संकोच के अपने घर की लड़कियों को स्कूल भेज सकें। 
 
5. आदिवासी इलाकों में चल रहे स्कूलों में अधोसंरचना एवं संसाधनों की कमी है। अधिकतर विद्यालयों में मात्र एक पूर्णकालिक योग्य शिक्षक है। अन्य सुविधाएं जैसे पृथक शौचालय, चहारदीवारी, कक्षा भवन आदि की कमी है। ये तो अधोसंरचनात्मक कमियां हैं लेकिन हम उन कमियों का क्या करें, जो आदिवासी शिक्षा के लिए राज्य के खर्चे में आ गई है।
 
6. इन स्कूलों में जिन शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है, वे दलित बालिकाओं के साथ दोहरा व्यवहार करते हैं। वे इन बालिकाओं से स्कूल की सफाई आदि का काम कराते हैं। 
 
7. चूंकि आदिवासी समुदाय दूर-दराज इलाकों में रहता है, इस वजह से समुदाय की स्कूलों तक पहुंच भी एक बड़ी समस्या है और एक बड़ा तबका स्कूलों से दूर है।
 
8. विडंबना यह है कि देश की तीन-चौथाई आबादी के लिए बने सरकारी स्कुलों की दुर्दशा 'शिक्षा के लोकव्यापीकरण' के अंतरराष्ट्रीय नारे के नाम पर जारी है। स्कूल के अंदर भी आदिवासी बच्चों के साथ स्कूल के मास्टर एवं समाज के अगड़ी जाति के बच्चों का व्यवहार समानता का नहीं होता है। उन्हें कक्षा में सबसे पीछे बिठाया जाता है। उनसे छुआछूत किया जाता है। स्कूल में साफ-सफाई का काम भी इन्हीं से कराया जाता है। तो अगर कोई परिवार अपने बच्चे को स्कूल भेजता भी है तो उसके ठहराव की संभावना काफी कम हो जाती है। 
 
9. ग्रामीण क्षेत्रों में दलित बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। दलित बालिकाओं के परिवारों के पास पूंजी एवं परिसंपत्तियों के अभाव के चलते दलित बालिकाएं बाल श्रम करने को मजबूर हैं। शैक्षिक विकास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त बाल्य अवस्था एवं किशोर वय श्रम के बोझ के नीचे दबकर रह जाती है। 
 
10. पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली निर्धनता उनकी शिक्षा एवं कौशल विकास के लिए सबसे बड़ा अवरोध है। 

 

संवैधानिक प्रावधान
 
संविधान के अनुच्छेद 46 के अनुसार- 'राज्य विशेष सावधानी के साथ समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जाति/ जनजातियों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों के उन्नयन को बढ़ावा देगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के सामाजिक शोषण से उनकी रक्षा करेगा'।
 
अनुच्छेद 330, 332, 335, 338 से 342 तथा संविधान के 5वीं और 6ठी अनुसूची अनुच्छेद 46 में दिए गए लक्ष्य हेतु विशेष प्रावधानों के संबंध में कार्य करते हैं। समाज के कमजोर वर्ग के लाभार्थ इन प्रावधानों का पूर्ण उपयोग किए जाने की आवश्यकता है।
 
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के व्यक्तियों के शैक्षणिक आधार को सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 एवं कार्ययोजना (पीओए) 1992 के अनुपालन में अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए प्राथमिक शिक्षा, साक्षरता एवं माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभाग की वर्तमान योजनाओं में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
 
संकल्प-
 
1. 2006 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम में वर्नर मुनोज ने सुझाव दिया कि दलित बालिकाओं के स्कूल में नामांकन एवं स्थिर रहवास के लिए सभी बाधाओं को हटाने का संकल्प होना चाहिए। 
 
2. ISDN ने भी सरकार को सुझाव दिया है कि UN ड्राफ्ट के नियमानुसार दलित समूहों की बालिकाओं की शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।
 
3. UN फोरम ऑफ मायनॉरिटीज इश्यूज की बैठक 2008 में बांग्लादेश में हुई थी जिसमें दलित एवं अल्पसंख्यक बालिकाओं की शिक्षा से पलायन एवं उनके शोषण के कारणों पर विस्तृत चर्चा कर संकल्प पारित किया गया। 
 
दलित बालिकाओं की शिक्षा में सहभागिता के लिए सुझाव-
 
1. शिक्षा का सिद्धांत एक बुद्धिवादी दृष्टिकोण पर आश्रित है कि सभी मनुष्य मुक्त एवं समान अधिकार के साथ पैदा हुए हैं और उस जाति व्यवस्था को आदमी ने अपनी ही-की सुविधा के लिए बनाया है। एक सामाजिक आदर्श के रूप में अस्पृश्यता को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में दलित बच्चों के साथ में अन्य बच्चों के समान व्यवहार किया जाना चाहिए।
 
2. पर प्रगतिशील निवेश-अपवर्जित बच्चों, कमजोर स्कूलों और तहत प्रदर्शन क्षेत्रों, समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक दृष्टिकोण।
 
3. दलित बालिकाओं पर केंद्रित शैक्षिक दृष्टिकोण।
 
4. अच्छी तरह से कार्य करने वाली एवं अच्छी तरह से प्रबंधित और जवाबदेह शिक्षा प्रणाली।
 
5. स्कूली शिक्षा के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को कम करने के प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता है।
 
6. दलित बालिकाओं की शिक्षा शोषणमुक्त हो एवं उनके अधिकारों एवं लाभों का वे अधिकतम उपयोग कर सकें, इसके लिए जमीनी स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन होना चाहिए। लिंग संवेदीकरण (Gender sensitization) कार्यक्रम तैयार होने चाहिए।
 
7. शिक्षा बालिका सशक्तीकरण का एक प्रमुख हथियार है। दलित बालिकाओं के लिए रोजगारोन्मुख शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें विविध व्यावसायिक प्रशिक्षण, जैसे कुटीर उद्योग, गांव शिल्प आदि का प्रशिक्षण उन्हें उनके घर पर मिलना चाहिए। 
 
8. प्रतिभाशाली दलित बालिकाओं की खोज का कोई वैज्ञानिक तरीका होना चाहिए एवं गांव स्तर पर उन्हें सुविधाएं मिलनी चाहिए। 
 
9. दलित बालिकाओं में प्रतिस्पर्धा की भावनाएं जाग्रत की जानी चाहिए। 
 
10. दलित बालिकाओं को परिणाममूलक शिक्षा दी जानी चाहिए। 
 
11. उच्च शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी शासन को लेनी चाहिए। 
 
12. विद्यालय स्तर पर शिक्षकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित एवं प्रशिक्षित करना चाहिए कि वो दलित एवं गैर-दलित में कोई फर्क न करे, इसके लिए नियमित अंतराल में काउंसलिंग की आवश्यकता है।
 
13. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में दलित बालिकाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए तहसील या गांव स्तर पर स्पेशल कोचिंग एवं आर्थिक सहायता उन्हें मिलना चाहिए। दलितों को शिक्षित करने की दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी हम सभी को स्वीकार करना चाहिए। 
 
भारत में दलित बालिकाओं के लिए शिक्षा सुनिश्चित करना जहां जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था एवं सामाजिक श्रेष्ठताओं का बोलबाला हो, एक बहुत बड़ी चुनौती है। दलित बालिकाओं का स्कूलों में नामांकन करवाना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए बल्कि उनकी पढ़ाई को पूरा करवाने के लिए भी कोई उपाय हमारे पास होना चाहिए। अपरिवर्तित सामाजिक मूल्यों के चलते शिक्षा से दलित बालिकाओं का जुडाव नगण्य जैसा है। 
 
दलित बालिकाओं में आत्मविश्वास, अपने अधिकारों के बारे में जागरूकता एवं अन्याय से लड़ने की शक्ति शिक्षा से प्राप्त होती है। दलित बालिकाओं से शिक्षा में असमानता का व्यवहार, सामाजिक अस्पृश्यता, मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना समाज, परिवार एवं तंत्र द्वारा किया जाना सर्वविदित है।
 
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ये सारी घटनाएं जनप्रतिनिधियों, शिक्षकों एवं जिम्मेदार लोगों के संज्ञान में होती हैं। आज आवश्यकता है कि समाज, तंत्र और जनप्रतिनिधि इन दलित सपनों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हों।