शनिवार, 27 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. Assembly elections in Karnataka
Written By

कर्नाटक - सवालों के कटघरे में राज्यपाल की भूमिका

कर्नाटक - सवालों के कटघरे में राज्यपाल की भूमिका - Assembly elections in Karnataka
- अब्दुल रशीद
 
कर्नाटक में विधानसभा चुनावों के बाद जो परिणाम आया उसमें भाजपा 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन जादुई आंकड़े से पीछे रही, वही चुनाव बाद कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के पास 115 विधायकों के साथ बहुमत के आंकड़ा होने के बावजूद राज्यपाल ने भाजपा विधायक दल के नेता येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आमंत्रण दिया और शपथ भी दिला दी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब बहुमत सिद्ध करना था, तो बहुमत सिद्ध करने से पहले ही भाजपा विधायक दल के नेता ने इस्तीफा दे दिया। ऐसे में राज्यपाल द्वारा पन्द्रह दिन का मोहलत देना अब सवालों के कटघरे में है?
 
राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद है और इस पद पर मनोनीत व्यक्ति को पद के संवैधानिक दायित्व और उसकी गरिमा को बरकार रखना ही चाहिए। लेकिन कर्नाटक में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, वह एक बार फिर राज्यपाल के पद, उसके संवैधानिक दायित्व और उसकी गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
 
राज्यपाल वजुभाई वाला आज भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता हैं, यह एक सर्वविदित सच है, यह भी सच है के, वे गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में लगभग एक दशक तक वित्तमंत्री रह चुके हैं।
 
इन सभी सच्चाई के बावजूद उनसे उम्मीद की जा रही थी कि चूंकि वे संविधान की रक्षा करने की शपथ लेकर एक ऐसे संवैधानिक पद पर आसीन हैं जिस पर रहते हुए निष्पक्ष और तटस्थ आचरण करना उनका संवैधानिक दायित्व है, इसलिए वे संविधान के प्रति निष्ठा को अपनी दलगत आस्था से ऊपर रखेंगे। लेकिन उन्होंने जनता के इस उम्मीद पर पानी फेर दिया और एक बार फिर यह साबित हो गया कि राज्यपाल केंद्र सरकार के इशारे पर निर्णय लेता है।
 
ऐसा नहीं की यह कोई पहली बार हुआ है, राज्यपालों के इस प्रकार के आचरण के अनेक उदाहरण भारतीय राजनीति में मौजूद है, जो भी राजनीतिक दल केंद्र में सत्तारूढ़ रहा है, उसने राज्यपालों को अपने राजनीतिक स्वार्थ के अनुसार रबड़ की मुहर की तरह इस्तेमाल किया है।
 
कब-कब हुआ पद का दुरुपयोग : 
 
* 1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरुपयोग शुरू हो गया। मद्रास में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाय कम विधायकों वाली कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया, जो उसी तरह विधायक भी नहीं थे।
 
* 1954 में पंजाब की कांग्रेस सरकार को ही बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के बीच मतभेद थे। 
 
* 1959 में केरल की नम्बूदिरीपाद सरकार बर्खास्त की गई और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा राज्यपालों को अपने एजेंट की तरह बरतने की यह सूची लंबी होती गई। कर्नाटक की ताजा घटना को इसी श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए।
 
मनोनीत राज्यपाल :- 
 
भारत दुनिया में संभवतः एकमात्र ऐसा लोकतान्त्रिक देश है जहां एक गैर-निर्वाचित, केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपाल को इतने व्यापक अधिकार प्राप्त हैं कि वह जिसे चाहे सरकार बनाने के लिए बुला सकता है और जब चाहे संवैधानिक मशीनरी के ठप्प हो जाने का बहाना करके एक निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकता है। 
 
राज्यपाल या गवर्नर शासन करने वाले ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो किसी देश के शासक के अधीन हो और उस देश के किसी भाग पर शासन कर रहा हो। संघीय देशों में संघ के राज्यों पर शासन करने वाले व्यक्तियों को अक्सर राज्यपाल का ख़िताब दिया जाता है।
 
कुछ संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे गणतंत्रों में राज्यपाल सीधे उस राज्य की जनता द्वारा चुने जाते हैं और वह उस राज्य के सर्वोच्च प्रशासनिक अध्यक्ष होते हैं, जबकि भारत जैसे संसदीय गणतंत्रों में अक्सर राज्यपाल केन्द्रीय सरकार या शासक नियुक्त करती है और वह नाम मात्र का अध्यक्ष होता है (वास्तव में राज्य सरकार को चुना हुआ मुख्यमंत्री चलाता है, जो औपचारिक रूप से राज्यपाल के नीचे बतलाया जाता है)।
 
अंग्रेजी शासन नियंत्रित ढंग से भारतीयों को शासन में भागीदारी देने के उद्देश्य से 1935 का भारत सरकार अधिनियम बनाया गया और प्रांतों में चुनावों के आधार पर सरकारों के गठन की व्यवस्था की गई। इन सरकारों पर केंद्र की औपनिवेशिक सरकार का नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए मनोनीत राज्यपाल का पद बनाया गया, जिसका उस समय कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया था लेकिन आजादी के बाद उसी कांग्रेस ने स्वतंत्र भारत में इस व्यवस्था को बनाए रखा। संविधान सभा में इस पर मुद्दे पर बहुत तीखी और कड़वी बहस हुई लेकिन किसी की एक न चली।
 
क्या मनोनीत राज्यपाल का पद वाकई जरूरी है? या अब समय आ गया है कि इस पर पुनर्विचार हो।
ये भी पढ़ें
म्यांमार का ARSA: वो संगठन जिस पर 99 हिंदुओं को मारने का आरोप है