गांधीजी की सेक्स लाइफ, विचारकों की नजर में
हाल ही में, एक लेखक और ब्रॉडकास्टर जैड एडम्स ने गांधीजी की सेक्स लाइफ के बारे में सच्ची जानकारी देने की बात अपनी नवीनतम पुस्तक में कही है। उनका दावा है कि इस किताब को लिखने से पहले उन्होंने गांधी के जीवन पर लिखी सभी महत्पूर्ण पुस्तकों को पढ़ा है और इसके बाद ही कोई बात लिखी गई है।
पुस्तक में नग्न लड़कियों के साथ सोने की गांधी की आदत को लक्ष्य बनाकर कहा गया है कि मोहनदास गांधी का सेक्स जीवन वास्तव में बहुत ही असाधारण था। वे सेक्स के बारे में अपने अनुयायियों को विस्तृत जानकारी देते जोकि अक्सर ही उत्तेजक होती थी। साथ ही, वे उन्हें बतलाते थे कि पवित्रता का पालन वे कैसे कर सकते हैं? एक लम्बे समय तक उनसे प्रभावित लोगों ने इन बातों का पालन भी किया, लेकिन जब उन्हें लगा कि ये बातें प्रकृति के खिलाफ और असंभव हैं, तब उनके 'सेक्स प्रयोगों' का भारी विरोध हुआ। सभी जानते हैं कि ऐसे लोगों में गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी भी शामिल थे जो पचास के दशक में एक लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार थे। उनकी ही बेटी मनु लम्बे समय तक अपने दादा महात्मा गांधी के साथ रहीं और वे खुद को मनु की मां कहते थे क्योंकि मनु की मां का उसकी छोटी उम्र में ही निधन हो गया था।
यह बात सभी जानते हैं कि सेक्स एक ऐसा विषय रहा है जिसने गांधी को आजीवन परेशान बनाए रखा। संभवत: इस कारण से उन्होंने इस विषय पर बहुत कुछ लिखा भी है। साथ ही, आश्चर्य की बात नहीं है कि इस विषय पर उनके सहयोगियों, परिजनों, करीबियों और लेखक पत्रकारों ने भी बहुत लिखा है। इस संबंध में यह भी कहा जा सकता है कि गांधी के करीबियों और उनकी छवि की चिंता करने वालों ने ऐसी बहुत सारी जानकारियां मिटा दी हैं या नष्ट कर दी हैं।
उनके जीवन पर लिखने वालों में गांधी के कट्टर समर्थकों से लेकर उनके कट्टर विरोधी शामिल भी रहे, लेकिन इनमें ऐसे लोग भी शामिल रहे हैं जिन्होंने अपने नीर-क्षीर विवेक से सच्चाई को तलाशने की कोशिश की है, भले ही उनके विचार कितने ही अलोकप्रिय क्यों न रहे हों। इस लेख का विषय भी ऐसे तटस्थ लोगों का लेखन है, जिन्होंने सच लिखने में किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया।
हम सभी को पता है कि सेक्स पर गांधीजी के विचार लोकप्रिय नहीं थे। जब गांधीजी ने नवविवाहितों को सलाह दी कि वे अपनी आत्मा को पवित्र बनाए रखने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करें तब जवाहरलाल नेहरू ने गांधीजी के विचारों को 'असामान्य और अप्राकृतिक' कहा था। गांधी के विश्वासों, शिक्षाओं और असामान्य निजी विचारों में पवित्रता एक ऐसा दुराग्रह लगती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके विचित्र सेक्स जीवन की कहानी सामने आती है।
उनके इन विचारों का कड़ा विरोध उनके जीवनकाल में ही शुरू हो गया था लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के कारण उन्हें 'राष्ट्रपिता' और 'महात्मा' के विभूषणों से सम्मानित किए जाने के कारण उन्हें लम्बे समय तक केवल सम्मान की नजर से देखा गया। लेकिन, अब ऐसी किताबें लिखी जा रही हैं, पढ़ी जा रही हैं जिनमें गांधी के सेक्स जीवन को बिना किसी पक्षपात के 'निर्मम विश्लेषण' के साथ चित्रित किया गया है।
पिता मृत्यु शैया पर, गांधी कर रहे थे सेक्स... आगे पढ़ें...
आपको यह जानकार शायद आश्चर्यजनक लगे कि स्वतंत्रता से पहले दक्षिण भारत में त्रावणकोर राज्य के प्रधानमंत्री ने गांधी को 'ए मोस्ट डेंजरस, सेमी-रिप्रेस्ड सेक्स मैनिएक' तक कहा था। गांधी का विवाह 1883 में तेरह वर्ष की उम्र में हुआ था और तब कस्तूरबा 14 वर्ष की थीं। उस समय के गुजरात के स्तर से यह बाल विवाह नहीं था।
युवा जोड़े की सेक्स लाइफ सामान्य थी। परिवार के घर में एक कमरे में साथ-साथ रहने के कारण कस्तूरबा जल्दी ही गर्भवती हो गई थीं। उनके जीवन का एक प्रसंग है कि जब दो वर्ष बाद उनके पिता मरणासन्न स्थिति में थे, तब गांधी उनके बिस्तर के पास न होकर कस्तूरबा के साथ सेक्स कर रहे थे। इसी दौरान उनके पिता ने अंतिम सांस ली थी।
इस तरह युवा गांधी के दुख के साथ यह अपराध बोध भी जुड़ गया कि वे 'वासनात्मक प्यार' में डूबे थे, जब उनके पिता अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे। पर उनका अंतिम बच्चा इस बात के पंद्रह वर्ष बाद, 1900 में पैदा हुआ था। तब-तब गांधी के दिमाग में सेक्स को लेकर (या कहें कि वैवाहिक सेक्स को लेकर) कोई निषेधात्मक रवैया नहीं पैदा हुआ था। यह तब पैदा हुआ जब वे दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य की एक कार्यकर्ता के तौर पर मदद कर रहे थे।
बोअर युद्ध और जुलू विद्रोह के बाद उन्होंने सोचा कि वे मानवता की बेहतर तरीके से सेवा कर सकते हैं और उन्होंने तय किया वे गरीबी और पवित्रता को अपना लें। 1906 में 38 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचर्य की शपथ ली। इसका अर्थ था कि वे एक आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते थे और इसे आमतौर पर इंद्रिय निग्रह के तौर पर जाना जाता है।
कैसे थे सेक्स को लेकर गांधीजी के प्रयोग... आगे पढ़ें...
गरीबी को अपनाना उनके लिए आसान था, लेकिन पवित्रता उनसे काफी दूर थी। इस स्थिति के बारे में कई विचारकों का कहना है कि गांधी ने अपने लिए कुछ ऐसे जटिल नियम तय किए जिसके आधार पर वे कह सकते थे कि वे पवित्र, इंद्रिय निग्रही हैं, लेकिन इसके साथ ही वे खुलेआम यौन विषयक बातचीत कर सकते थे, पत्र लिख सकते थे और ऐसा व्यवहार भी कर सकते थे।एक नए मुल्ला की तरह उन्होंने अति उत्साह में अपनी प्रतिज्ञा के एक वर्ष बाद कहा, 'यह प्रत्येक विचारशील भारतीय का कर्तव्य है कि वह विवाह न करे। अगर विवाह को लेकर वह असहाय है तो उसे अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध नहीं बनाना चाहिए।' इस बीच गांधीजी ब्रह्मचर्य को अपनी ही तरह से चुनौती दे रहे थे। उन्होंने अपने आश्रम बनाए और सेक्स के साथ 'पहले प्रयोग' शुरू किए। तब लड़के और लड़कियों को साथ-साथ नहाना और सोना पड़ता था। लेकिन अगर वे कोई सेक्स संबंधी बात करते थे तो उन्हें दंडित किया जाता था। लेकिन, महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग रहना पड़ता था। पतियों को लेकर गांधीजी की सलाह यह थी कि उन्हें अपनी पत्नियों के साथ एकांत में नहीं रहना चाहिए और जब उन्हें काम संबंधी इच्छा सताए तो वे ठंडे पानी से नहा लें। ये नियम सभी के लिए थे लेकिन गांधीजी इसके अपवाद थे।
सचिव की सुंदर बहन के साथ सोते थे गांधीजी... आगे पढ़ें...
गांधीजी के एक सचिव प्यारेलाल नैयर की सुंदर बहन, सुशीला नैयर, उनकी निजी चिकित्सक भी थीं और वे अपने बचपन से ही गांधी का ख्याल रखती थीं, उनकी देखभाल करती थीं। वे गांधीजी के साथ नहातीं और सोती भी थीं। जब उनकी इस बात का विरोध किया गया तो उन्होंने स्पष्टीकरण किया कि वे किस तरह अपनी पवित्रता बनाए रखते थे।उनका कहना था कि 'जब वह नहाती है तो मैं अपनी आंखों को पूरी तरह से बंद रखता हूं। मुझे नहीं पता कि वह नग्न होकर नहाती है या फिर अपना अंडरवियर पहने रहती है। पर मैं आवाजों को पहचानकर यह बात कह सकता हूं कि वह साबुन का इस्तेमाल करती है।' कहा जाता है कि गांधी की इस तरह की निजी सेवा करने को उनकी बहुत बड़ी कृपा समझा जाता था। इससे आश्रम में रहने वाली महिलाओं में ईर्ष्या का भाव पैदा होता था। कस्तूरबा की मौत के बाद जैसे उनकी उम्र बढ़ी तब उनके पास बहुत सारी महिलाएं आने लगी थीं और वे किसी भी महिला को अपने साथ सोने देने का मौका दे सकते थे, लेकिन महिलाओं के लिए आश्रम का यह नियम था कि वे अपने पतियों के साथ भी नहीं सो सकती थीं। गांधी के बिस्तर में भी महिलाएं रहती होंगी और तब भी वे 'प्रयोग' करते रहे होंगे। इस तरह का विवरण उनके पत्रों में भी मिलता है जिससे लगता है कि यह स्थिति स्ट्रिप-टीज या नॉन कांटेक्ट सेक्सुअल एक्टविटी जैसी रही होगी।
कौनसी महिला लिपटकर सोई थी गांधीजी से... आगे पढ़ें....
संभव है कि और अधिक खुलेपन को दर्शाने वाले पत्रों को नष्ट कर दिया गया हो लेकिन सेक्स की चाह जगाने वाले एक पत्र में यह लिखा गया है : 'वीणा का मेरे साथ सोना एक आकस्मिक घटना कही जा सकती है। बस इतना ही कहा जा सकता है कि वह मेरे साथ लिपटकर सोई थी।' अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि गांधी के प्रयोग का मूल क्या केवल उनके करीब लिपटकर सोने तक ही सीमित रहा होगा?कोई भी सोच सकता है कि इसका अर्थ 'ना चाहते हुए स्खलित हो जाना' भी हो सकता है, जिसकी शिकायत उन्होंने भारत में लौटने के साथ बारम्बार की है। उनका मनुष्य के वीर्य में लगभग जादुई विश्वास था। उनका कहना था कि 'जो कोई भी अपने महत्वपूर्ण द्रव्य (वीर्य) को बचाकर रखता है, उसके पास कभी न असफल होने वाली ताकत होती है।'इस बीच ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें अधिक आध्यात्मिक साहस के लिए और बड़ी चुनौतियों की जरूरत रही होगी और इसके लिए अधिक आकर्षक महिलाओं की आवश्यकता थी। वर्ष 1947 में सुशीला 33 वर्ष की थीं, उनकी जगह गांधी के बिस्तर में तय की गई। स्वतंत्रता से पहले के साम्प्रदायिक दंगों के समय में बंगाल में गांधी ने अपनी अठारह वर्षीय पोती- मनु-को बुला भेजा और उसके साथ सोने लगे।उन्होंने उससे कहा, 'हम दोनों ही मुस्लिमों के हाथों मारे जा सकते हैं, इसलिए हमें अपनी पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ परीक्षण करना चाहिए। हमें अपना सर्वाधिक पवित्र बलिदान करना चाहिए और अब हम दोनों को नंगे सोना शुरू कर देना चाहिए।'
क्या थी गांधीजी की ब्रह्मचर्य की परिभाषा... आगे पढ़ें...
इस तरह का व्यवहार ब्रह्मचर्य की मान्य परम्परा के अनुरूप नहीं है। इसलिए उन्होंने ब्रह्मचारी की एक नई परिभाषा दी : 'जिसमें कभी कोई वासनात्मक भाव न हो और जो हमेशा ही ईश्वर भक्ति में तल्लीन रहता हो, वह किसी भी प्रकार के चेतन या अचेतन में स्खलित नहीं हो सकता है, वह नंगी महिलाओं के साथ नंगा सो सकता है, महिलाएं चाहे जितनी सुंदर हों पर वह किसी भी तरह से सेक्स के प्रति उत्तेजित नहीं हो सकता है...वह व्यक्ति प्रतिदिन और निरन्तर ईश्वर की ओर प्रगति कर सकता है और उसका प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति किया जाता है और अन्य किसी के लिए नहीं।'मतलब है कि वह जो चाहे कर सकता है जब तक कि उसमें किसी प्रकार स्पष्ट दिखने वाली 'वासनात्मक भावना' न हो। इसलिए कहा जा सकता है कि उन्होंने (गांधीजी) पवित्रता के विचार को अपनी निजी आदतों के तौर पर प्रभावी ढंग से पुर्नपरिभाषित किया। यहां तक तो उनके विचार आध्यात्मिक थे, लेकिन स्वतंत्रता से पहले भारत जो भयानक उथल पुथल देख रहा था, उन्होंने खुद ही तय कर लिया कि उनके सेक्स प्रयोगों का राष्ट्रीय महत्व भी है। उनका कहना था कि 'मैं कहता हूं कि देश की वास्तविक सेवा इस तरह के आचरण में है।' लेकिन, जब वे अपने दम्भ में अधिक साहसी हो रहे थे तब गांधी के इस व्यवहार पर व्यापक चर्चा होती थी और प्रमुख राजनीतिज्ञ तथा उनके परिजन इसकी आलोचना भी करते थे।उनके स्टाफ के कुछ लोगों ने इस्तीफा दे दिया और इन लोगों में वे दो सम्पादक भी शामिल थे जिन्होंने लड़कियों के साथ सोने के भाषणों को छापना बंद कर दिया था। लेकिन इस प्रयोग को आगे बढ़ाने के लिए गांधी ने आपत्तियों का ही सहारा लिया और कहा : 'अगर मैं मनु को अपने साथ नहीं सोने देता हूं (और हालांकि मैं इसे अनिवार्य मानता हूं कि उसे करना चाहिए) तो क्या यह मुझमें कमजोरी की निशानी नहीं माना जाएगा?'
पोते की बहू भी सेक्स के प्रयोग में शामिल... आगे पढ़ें...
स्वतंत्रता से पहले जब गांधी का कारवां चल रहा था तब उसमें उनके पोते कनु गांधी की अठारह वर्षीय पत्नी आभा भी शामिल हो गई और अगस्त के अंत तक वे दोनों के साथ सोने लगे थे। जब जनवरी 1948 में गांधीजी की हत्या की गई थी, तब भी दोनों लड़कियां उनके दोनों ओर थीं। गांधी के अंतिम वर्षों में मनु लगातार उनके साथ रही, लेकिन बाद में परिजनों ने मनु को इस दृश्य से हटा लिया था। तब गांधी ने अपने बेटे और मनु के पिता देवदास को लिखा था, 'मैंने उससे कहा था कि वह मेरे साथ सोने के बारे में लिखे' लेकिन गांधी की छवि की चिंता करने वालों ने उनके जीवन के इस पहलू को दृश्यपटल से गायब कर दिया। गांधीजी के बेटे, देवदास, मनु को दिल्ली स्टेशन ले गए, जहां उन्होंने उससे कहा कि वह पूरी तरह से अपना मुंह बंद करके रखे। सत्तर के दशक में जब सुशीला नैयर से ब्रह्मचर्य प्रयोग को लेकर सवाल किए गए तो उनका कहना था कि गांधी के व्यवहार की आलोचना के जवाब में ब्रह्मचर्य प्रयोग को उनकी जीवन शैली का एक हिस्सा बताया गया। 'बाद में जब लोगों ने उनके महिलाओं के साथ शारीरिक संबंधों-जिनमें मनु के साथ, आभा के साथ और मेरे साथ- को लेकर सवाल करने शुरू किए तो ब्रह्मचर्य प्रयोगों का विचार विकसित किया गया ...इससे पहले के दिनों में इसे ब्रह्मचर्य प्रयोग कहने का कोई सवाल ही नहीं था।'ऐसा लगता है कि गांधी ने जीवन अपनी इच्छा के अनुसार जिया और जब कभी उनको कोई चुनौती दी गई तो उनका कहना (था कि यह सब ईश्यरीय इच्छा का पुरस्कार और लाभ है। बहुत सारे महान व्यक्तियों की तरह उन्होंने भी नियमों को अपनी स्थिति के अनुरूप बना लिया। हालांकि इसको लेकर आम तौर पर चर्चा होती थी और इसे गांधी की प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदेह माना जाता था, लेकिन उनके सेक्सुअल बिहेवियर (यौन व्यवहार) की उनकी मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक अनदेखी की गई। यह तो अब संभव हो सका है कि हम सूचनाओं के आधार पर गांधी की एक सम्पूर्ण तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं।और, इस तस्वीर का सबसे प्रमुख भाग है कि उन्हें अपनी काम वासना की ताकत में बहुत अधिक विश्वास था। यह उनके दुख की बात हो सकती है कि स्वतंत्रता के समय ज्यादातर राजनीतिज्ञों ने उन्हें पहले से ही हाशिए पर डाल दिया था। कारण साफ था कि उनके ब्रह्मचर्य की तपस्या भी भारत को एकजुट नहीं रख सकी और कांग्रेस पार्टी के सत्ता के दलालों ने स्वतंत्रता की सारी शर्तों को तय किया था।
ब्रह्मचर्य को लेकर अत्यधिक आसक्ति...आगे पढ़ें...
जब गांधी के सम्पूर्ण जीवन और उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए जरूरी होगा कि उनके ब्रह्मचर्य को लेकर अत्यधिक आसक्ति भाव को भी परखा जाए। एक आध्यात्मिक और राजनीतिक उग्र सुधारवादी के तौर पर गांधीजी ने अपने जीवन के विभिन्न अवसरों पर विभिन्न कारणों या उद्देश्यों को अपनाया। लंदन में जव वे पढ़ते थे तब उनकी गहरी रुचि के विषय सेक्स या राजनीति नहीं थे वरन वे उस समय शाकाहार और खानपान संबंधी मामलों में गहरा दखल रखते थे।जब वे एक वकील के तौर पर दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तब वे अपनी कामवासना पर रोक लगाने और ऐसे आदर्शवादी समाज की स्थापना करने के सपने देखते थे जो कि केवल विचारों में ही सम्भव थे। यहां भी उनका ध्यान पूरी तरह से अपने पेशेगत काम की ओर नहीं था और उन्हें भारतीय कारोबारियों की कानूनी समस्याओं तथा श्रमिकों की हालत देखने के लिए बहुत कम समय मिलता था। भारत में एक नेता के तौर पर 1920 और 30 के दशक में उन्होंने खुद को राष्ट्रीय आंदोलन में डुबा लिया था और वे अपने आश्रम में अपने समर्थकों के साथ अनुशासित और तपस्वी का जीवन बिता रहे थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने अपने सेक्सुअल इनोवेशन्स (कामवासना संबंधी नई खोजों) और ब्रह्मचर्य के प्रयोंगों में अधिक समय लगाया। गांधीजी अपने आप में एक बहुत जटिल आदमी तो थे ही, लेकिन उनकी छोटी से छोटी बात के बारे में भी समकालीन सूचनाओं का भंडार है। गांधी के सचिवों में से एक प्यारेलाल नैयर जो कि उनकी निजी चिकित्सक डॉ. सुशीला नैयर के भाई थे, इन दोनों को ऐसी जानकारियां होंगी जो कि गांधी की किसी भी जीवनी में नहीं होंगी। प्यारेलाल ने भी गांधी के युवा महिलाओं (जिनमें उनकी 19 वर्षीय पोती मनु भी शामिल थी) के साथ सेक्स संबंधी प्रयोगों के बारे में लिखा, लेकिन उन्होंने भी गांधी के नंगे नहाने, नग्न होकर मालिश करवाने और सुशीला के साथ सोने के बारे में पर्दा डाल दिया।
क्या सनक था गांधीजी का सेक्स व्यवहार... आगे पढ़ें...
गांधी का असामान्य सेक्स व्यवहार और ब्रह्मचर्य को लेकर उनकी सनकें स्पष्ट रूप से उनके करीबियों और अन्य प्रेक्षकों का उनके प्रति आदरभाव कम कर रही थीं। इनसे संबंधित बहुत सारी बातें उनके जीवन काल में ही जान ली गई थीं, लेकिन अब जो बातें सामने हैं, उनसे यह बात समझने में आई है कि गांधी को 'अपनी कामवासना की ताकत में अत्यधिक भरोसा' था।जहां तक राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रश्न है तो भारत छोडो आंदोलन को लेकर उनकी बहुत बड़ी गलती के बाद से उनका असर कम हो रहा था। इन सभी बातों के बावजूद बहुत सारी बातें ऐसी भी हैं जो कि समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं और जिनका महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। धूम्रपान और शराब का विरोध, खानपान पर उनका ध्यान, उपवास, मितव्ययिता, आत्म निर्भरता, पर्यावरण संबंधी विचार, नस्लवाद का विरोध, सभी धर्मों का सम्मान और अहिंसा में उनका विश्वास गांधी को सर्वश्रेष्ठ नायक और एक आध्यात्मिक योद्धा बनाती हैं। लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल यह है जो कि हम अपने आपसे कर सकते हैं। वह यह है कि हमारे आपके कोई दादा, नाना हों जो कि बढ़ते बच्चों से साथ परिवार में रह रहे हों, वे अगर गांधीजी जैसे प्रयोग करें तो क्या हम इस तरह के प्रयोगों को सहन करेंगे? संभवत: बिल्कुल नहीं।
क्या कस्तूरबा से घृणा पैदा हो गई थी गांधीजी को... आगे पढ़ें...
एक दूसरा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि किन कारणों से गांधी एक अत्यधिक कामुक व्यक्ति बन गए? लेकिन उन्होंने ब्रह्मचर्य की शपथ भी ली। यह बात तो सभी जानते हैं और (जो बात खुद गांधीजी ने लिखी है) जब उनके पिता करमचंद मृत्यु के करीब थे तब भी वे उसी मकान के एक दूसरे कमरे में कस्तूरबा के साथ सेक्स कर रहे थे। जब गांधी इस तरह की तपस्या करने की शपथ लें तो इस पर शंका पैदा होना स्वाभाविक है। बहुत से लोगों का कहना है कि जब उन्हें कस्तूरबा के प्रति घृणा पैदा हुई तो इसका एक कारण यह भी था कि वे तीन बच्चों की अशिक्षित मां थीं और संभवत: इस कारण से उनके साथ सोते नहीं थे। क्या यह संभव नहीं है कि वे ब्रह्मचर्य अपनाने के नाम पर कस्तूरबा को अपना साथी बनाना पसंद नहीं करते हों। 1882 में जब मोहनदास का कस्तूरबा के साथ विवाह हुआ था तब वे तेरह और कस्तूरबा 14 वर्ष की थीं।पर जब वे दक्षिण अफ्रीका में पहुंचे तो अपने पेशे के कारण वे कई शिक्षित और शालीन महिलाओं के सम्पर्क में आए। उन्हें इन महिलाओं का साथ अच्छा लगने लगा और वे इससे एक बौद्धिक आनंद भी लेते थे। यह आनंद उन्हें कस्तूरबा से मिलना संभव नहीं था।
वे महिलाएं जो गांधीजी के संपर्क में आईं... आगे पढ़ें....
इस दौरान कम से कम एक दर्जन महिलाएं उनके निकट सम्पर्क में आईं और इनमें से छह महिलाएं ऐसी थीं जिनकी जीवनशैली पाश्चात्य थी। इन महिलाओं में ग्राहम पोलक, निल्ला क्रैम कुक, मैडलीन स्लेड (जिन्हें मीराबेन के नाम से जाना जाता है), मारग्रेट स्पीगल, सोंजा स्केलेशिन और ईस्टर फीयरिंग।जो भारतीय महिलाएं उनके करीब आईं उनमें श्रीमती प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी), कंचन शाह, प्रेमा बेन कंटक, सुशीला नैयर, उनके पोते जयसुख लाल गांधी की पत्नी मनु गांधी, अवा गांधी और सरलादेवी चौधरानी जो कि कवि रवींन्द्रनाथ टैगोर की भतीजी थीं। टैगोर की मां श्रीमती स्वर्णाकुमारी देवी। गांधी और सरला देवी चौधरानी के दो साल तक संबंध रहे और गांधीजी ने खुद माना कि सरलादेवी के साथ उनके संबंध कामवासना के करीब थे। सरलादेवी के बाद प्रभावती देवी को गांधी का साथ मिला। गांधी और उनके संबंधों के बारे में गिरजा कुमार लिखते हैं : 'गांधी को लेकर प्रभावती इतनी अधिक आसक्त थीं कि वे एक दिन के लिए भी गांधीजी से अलग नहीं रह पाती थीं....उनकी निराशा में हिस्टीरिया बहुत अधिक दिखने लगता था ....वे लगातार घंटों तक बेहोश रहा करती थीं।'
क्यों फैली गांधीजी के प्रति आश्रम में नाराजी... आगे पढ़ें...
इस मामले पर एमवी कामथ लिखते हैं कि, 'अपने ही तरीके से और बिना इसका अर्थ रखे महात्मा ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं। जब उन्हें आगा खान पैलेस में कैद कर रखा गया तब उनका कस्तूरबा के साथ मेल मिलाप हुआ।गांधी के मरने के बाद ही प्रभावती अपने पति के साथ सहज जीवन बिता सकीं। ब्रह्मचर्य को लेकर गांधी के इन प्रयोगों से बहुत लोगों को घृणा थी।' 1938 में प्रेमा बेन कंटक ने 'प्रसाद' और 'दीक्षा' लिखी जिसमें उन्होंने गांधी के साथ अपनी सेक्स लाइफ को लिखा। इस परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ।ब्रह्मचर्य को लेकर गांधी के यह प्रयोग तब शुरू हुए जब वे 1915 में भारत में वापस लौटे और उन्होंने साबरमती आश्रम की स्थापना की। कहते हैं कि इसके साथ ही गांधी का अपनी महिला सहयोगियों के साथ नग्नता का प्रदर्शन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। इसके परिणामस्वरूप आश्रम के अन्य सदस्यों में नाराजगी फैल गई।'इस हंगामे का मुख्य कारण भी उनका दोहरा रवैया था। आश्रम के अन्य सदस्यों के लिए उन्होंने महिलाओं का पूरी तरह से त्याग करने का कड़ा नियम लागू किया, लेकिन वे खुद इस तरह के बंधन से मुक्त थे। इसका स्पष्टीकरण देते समय वे कहते थे कि वे तो अर्द्धनारीश्वर (भगवान शिव) हैं, इसलिए उनमें कोई शारीरिक भूख नहीं है। अन्य सदस्यों को धोखा देने के लिए वे कहते कि वे कहा करते थे कि वे सबकी मां हैं, इस कारण से आश्रम की प्रत्येक महिला या तो उनकी मां है या फिर एक बहन। दूसरे लोगों को वे अन्य तरीके से धोखा देते थे। वे कहा करते थे कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, वह अंतरात्मा के कहने पर कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में वे ईश्वर के आदेश से कर रहे हैं, इसलिए उनके सारे काम पवित्र हैं।
नग्न महिलाओं के साथ सोने से गर्मी मिलती थी बापू को... आगे पढ़ें...
लेकिन, आश्रम के अन्य सदस्यों की नाराजगी को देखते हुए गांधीजी को कुछ समय के लिए अपनी सेक्स संबंधी गतिविधियां बंद कर देनी पड़ीं। लेकिन इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के नाम पर और एक ही बिस्तर पर बहुत-सी नग्न महिलाओं के साथ सोना शुरू कर दिया। शुरुआत में वे और उनकी महिला सहयोगियों ने एक ही कमरे में अलग-अलग बिस्तरों पर सोना शुरू किया लेकिन कुछ समय बाद ही नग्न गांधी ने अन्य नग्न महिलाओं के साथ सोना शुरू कर दिया।वे कहा करते थे कि बहुत सारी नग्न महिलाओं के साथ सोने से उन्हें गर्मी मिलती है और यह क्रिया उनके लिए नेचुरोपैथी का काम करती है। वे यह भी कहते थे कि एक साथ बहुत सारी नग्न महिलाओं के साथ सोने से ब्रह्मचर्य में उनकी सफलता को आंकने में बहुत मदद मिली। यहां यह कहना गलत न होगा कि गांधी ने अपने प्रयोग को सफल माना क्योंकि इतनी अधिक उतेजना के बावजूद उनके अंग विशेष में कड़ापन नहीं आया और यह खड़ा नहीं हुआ।
गांधीजी के पत्रों के मुख्य विषय होते थे सत्याग्रह और सेक्स... आगे पढ़ें...
बहुत कम लोगों को इस बात पर विश्वास होगा कि सत्याग्रह (और अहिंसा के बाद) उनके लेखों और पत्रों का दूसरा मुख्य विषय सेक्स ही होता था। ये पत्र वे उन लोगों को लिखते थे जोकि उन्हें प्रशंसा भरे पत्र लिखते थे। पांच लेखों की एक श्रंखला उन्होंने ब्रह्मचर्य के अपने प्रयोगों- नंगी महिलाओं के साथ नंगे सोने-के बारे में लिखी थी। बाद में, इन लेखों का हरिजन में प्रकाशन भी कराया गया था। इस संदर्भ में यह ध्यान देने लायक बात है कि युवा और किशोर वय के लड़कों को रात में सपने से स्खलित हो जाने की समस्या हो जाती है। लेकिन जब गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे तो महीने में एक दिन उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ता था। लेकिन यह अविश्वसनीय बात है कि मुंबई में जब वे 67 वर्ष के वृद्ध थे तब भी उनको ऐसी कोई समस्या होती होगी। यह एक उदाहरण गांधी की सेक्स को लेकर विकृति को बताने के लिए पर्याप्त है। इस बात को खुद गांधी ने स्वीकार किया है कि अपनी मृत्यु तक वे अपनी सेक्स संबंधी विकृति पर काबू नहीं पा सके। गांधी के अनुसार सक्रिय ब्रह्मचर्य वह होता है जब विपरीत सेक्स की मौजूदगी में भी आपका खुद पर नियंत्रण हो। गांधी ने अपने ये प्रयोग बहुत सारी महिलाओं के साथ किया जिनमें से एक उनके पोते कनु गांधी की सोलह वर्षीय पत्नी आभा भी थी।
...तो क्या सिर्फ महिलाओं का उपयोग किया गांधी ने... आगे पढ़ें...
गांधी ने खुद स्वीकार किया था कि 'यह प्रयोग वास्तव में बहुत अधिक खतरनाक है लेकिन उनका सोचना था कि इससे बहुत अधिक महान परिणाम हासिल होंगे।' बहुत से लोगों का मानना है कि सक्रिय ब्रह्मचर्य के नाम पर गांधी ने न केवल इन महिलाओं का उपयोग किया वरन इनसे किसी प्रकार की कोई सहमति लेने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने इन महिलाओं पर सेक्सुअल अत्याचार किया। उनकी शिकार महिलाओं के पास चुपचाप यह सब कुछ सहने के अलावा कोई चारा नहीं था।गांधी के जीवन पर आचार्य विनोवा भावे की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है। एक सच्चे ब्रह्मचारी और गांधी के सर्वाधिक समर्पित शिष्यों में से एक भावे का कहना था, 'गांधी को ब्रह्मचर्य को लेकर प्रयोग करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर गांधी सच्चे ब्रह्मचारी हैं तो उन्हें अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेने की कोई जरूरत नहीं है। और अगर वे झूठे ब्रह्मचारी हैं तो उन्हें सिद्धांत रूप में यह प्रयोग नहीं करना चाहिए थे।' लेकिन गांधी का कहना था कि उनके इन प्रयोगों से बहुत अच्छे परिणाम निकले हैं। दिसंबर, 1946 में गांधी नोआखाली गए और उस समय मनु उनके साथ सोती थीं। वे उस समय कहा करते थे कि नग्न मनु के साथ उन्हें नग्न सोने से उन्हें बहुत लाभ हुआ है। इससे उन्हें देश विभाजन और हिंदू मुस्लिम एकता जैसी गंभीर समस्याओं पर विचार करने में मदद मिली। वे कहा करते थे कि वे मनु के साथ उसकी मां की तरह से सोते हैं और आभा और मनु उनके चलने का सहारा हैं। तब मनु शादीशुदा थी और उसके पति का नाम सुरेन्द्र मशरूवाला था।
ब्रह्मचर्य के नाम पर सेक्स विकृति... आगे पढ़ें...
मार्च, 1945 में उन्होंने प्रेस रिपोर्ट्स से कहा था कि नग्न आभा और मनु के साथ सोकर उन्हें ब्रह्मचर्य के अपने प्रयोगों में बहुत सफलता मिली। पहले ये प्रयोग में कस्तूरबा के साथ करता था, लेकिन तब ऐसा परिणाम नहीं निकला था। स्वाभाविक है कि इन बातों से गांधी की तीखी आलोचना होती थी और ब्रह्मचर्य के नाम पर सेक्स की विकृति से उनके करीबी सहयोगी भी नाराज हो गए थे। एक दिन उनके स्टेनोग्राफर आरपी परशुराम ने उन्हें नग्न मनु के साथ लेटे देखा तो अपना इस्तीफा दे दिया और वे चले गए। उनको गांधी का जवाब था कि वे जो चाहते हैं वह करने के लिए स्वतंत्र हैं। वे आश्रम में रहें या जाएं।निर्मल कुमार बसु गांधी के बड़े करीबी सहयोगी थे और गांधी के नोआखाली दौरे पर वे उनके साथ थे। सत्रह दिसंबर की रात को एक ऐसी घटना घटी जिसने निर्मल कुमार को गांधी का कट्टर आलोचक बना दिया।
क्यों बने निर्मल गांधीजी के कट्टर आलोचक.... आगे पढ़ें...
उस रात भी गांधी सामान्यतया नग्न मनु और सुशीला नैयर के साथ सो रहे थे। भोर होने से पहले उन्हें ऐसा लगा कि जिस कमरे में गांधी, मनु और सुशीला के साथ सो रहे थे, उसमें कुछ आश्चर्यजनक, अस्वाभाविक बात हो गई है। उन्होंने देखा कि गांधी तीखी आवाज में चिल्ला रहे थे और अपने अपने माथे को दोनों हाथों से पीट रहे थे। न तो मनु और न ही सुशीला ने कभी इस बात का जिक्र किया कि उस रात को क्या हुआ था?लेकिन, इस बात का अंदाजा लगाना कठित नहीं है कि संभवत: क्या हुआ होगा। ज्यादातर संभावना इस बात की है कि गांधी ने सुशीला के साथ सेक्स संबंध बनाने की होगी, लेकिन उन्होंने अनिइच्छुक सुशीला से जबर्दस्ती करनी चाही। उन्होंने गांधी को रोकने की कोशिश की होगी और इस बात से नाराज, निराश होकर गांधी ने चीखना शुरू कर दिया जबकि सुशीला मदद के लिए चिल्लाई होंगी। पाठकगण खुद ही बेहतर समझ सकते हैं कि उस रात क्या हुआ होगा? निर्मल कुमार ने हमेशा के लिए गांधी को छोड़ दिया और एक पत्र लिखकर गांधी के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि वे अपनी युवा महिला सहयोगियों का जीवन बर्बाद कर रहे हैं। उनका कहना था कि यह बड़े शर्म की बात है कि सेक्स के मामले ऐसे विकृत व्यक्ति के लिए हम महात्मा शब्द का उपयोग कर रहे हैं।