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Written By अवनीश कुमार
Last Updated : मंगलवार, 12 मई 2020 (12:38 IST)

Corona का दंश : भूखे मरने से अच्छा था कि घर का रास्ता ही तय करें....

Corona का दंश : भूखे मरने से अच्छा था कि घर का रास्ता ही तय करें.... - Corona effect : story of labours returning to home
लखनऊ। कोरोना महामारी के चलते अन्य राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार व्यवस्था करने में लगी हुई है। हालांकि उत्तराखंड के गंगोत्री में मजदूरी करने वाले यूपी के सहारनपुर के कुछ मजदूर ऐसे भी थे जो सरकार की इस व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन पाए। उन्हें अपने मंजिल तक आने के लिए 300 किलोमीटर का पैदल ही रास्ता तय करना पड़ा। 
 
यह रास्ता कितना कठिन था यह बताते हुए इन मजदूरों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह मजदूर सरकार को नहीं, बल्कि अपनी किस्मत को दोषी मानते हैं। कहते हैं दो वक्त की रोटी की तलाश में घर छोड़ कर परदेस जाने को मजबूर किया था और अब इस महामारी ने दो वक्त की रोटी तो छीन ली। साथ ही घर आने को मजबूर कर दिया। इन सभी का कहना है अब यह कुछ भी कर लेंगे लेकिन अब परदेस नहीं जाएंगे।
 
ऐसे ही कुछ मजदूरों से वेबदुनिया के संवाददाता ने जब बातचीत की तो किसने क्या कहा आइए आपको बताते हैं...
 
बहुत कठिन था सफर : सहारनपुर के रहने वाले मुल्कीराज, बाल सिंह, मोनू, सोमपाल, सुंदर इत्यादि लोगों मजदूरी करने के लिए उत्तराखंड के गंगोत्री गए थे और वही रहकर मजदूरी करते थे। 22 मार्च के बाद करोना महामारी के चलते देश में लगाए गए लॉक डाउन ने इन सभी मजदूरों की कमर तोड़ दी।
 
यह मजदूर बताते हैं कि कुछ दिन तक तो हमारे पास रखे पैसे से हम सब खाना खाते रहे लेकिन जब पैसे खत्म होने लगे तो हम सभी ठेकेदार के पास गए लेकिन ठेकेदार ने भी काम न चलने की बात कहते हुए अपनी मजबूरी बयां कर दी। हम सभी के पास कोई भी रास्ता नहीं बचा था कि हम यहां पर रहकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेते हैं। हम सभी मजदूर किसी तरह एक-एक दिन काट रहे थे।
 
मजदूरों ने बताया कि हमने 21 दिन एक वक्त खाना खाकर गुजार लिए लेकिन जब पता चला कि लॉक डाउन फिर से बढ़ा दिया गया है तो हम सब की कमर टूट गई। हमारे पास घर वापसी करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा था। हम सभी मजदूरों ने पहले वहां पर मौजूद पुलिसकर्मियों से मिन्नतें की कि हमें घर भिजवा दिया जाए।
 
पुलिस वालों ने सरकार के दिशा निर्देश बताते हुए अपनी मजबूरी बया कर दी तब हम सभी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था और भूखे मरने से अच्छा था कि घर के रास्ते को तय करें हम सभी ने एक साथ मिलकर 300 किलोमीटर दूर अपने घर जाने का फैसला लिया।
 
4 मई की सुबह लगभग 3:00 बजे उत्तराखंड के गंगोत्री से जंगल के रास्ते सहारनपुर गांव के लिए निकल पड़े उन्होंने बताया कि शुरुआत तो बेहद अच्छी रही लेकिन बीच रास्ते का दर्द इतना कठिन था कि हम लोग चिल्ला चिल्ला कर रोते भी थे और अपनी गरीबी को कोसते भी थे और मन में आता था कि गांव क्यों छोड़ा। लेकिन हम सब ने हिम्मत नहीं आ रही खाली पेट चलते रहे 7 तारीख के बीच हम लोग लगभग 100 किलोमीटर से भी ऊपर का रास्ता तय कर चुके थे और आगे चलने के लिए शरीर जवाब दे रहा था।
 
इसी बीच जंगल के रास्ते से गुजरते गुजरते एक गांव मिला जहां पर कुछ लोगों ने हम पर तरस खाकर हम लोगों को खिचड़ी खिला दी। खिचड़ी खाने के बाद हम फिर निकल पड़े अपने आगे के सफर के लिए रास्ता इतना कठिन था कि जो इस जिंदगी में भुलाए नहीं भूलेगा।
 
आखिरकार 10 तारीख की रात को हमें हमारा गांव का घर नसीब हो गया और हम 300 किलोमीटर के सफर को तय करते हुए सहारनपुर में अपने गांव आलमपुर अमादपुर, नागलमाफी, मढ़ती व कोतवाली बेहट क्षेत्र के रतनपुर कल्याणपुर गांव पहुंच गए।तो वही जिला प्रशासन को इनकी जानकारी होते ही इन सभी मजदूरों की प्राथमिक जांच करते हुए गांव में ही क्वारनटीन कर दिया गया है।