शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. कोरोना वायरस: लॉकडाउन हटाने के लिए संक्रमण दर जानना क्यों ज़रूरी है?
Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 12 मई 2020 (10:49 IST)

कोरोना वायरस: लॉकडाउन हटाने के लिए संक्रमण दर जानना क्यों ज़रूरी है?

Corona virus | कोरोना वायरस: लॉकडाउन हटाने के लिए संक्रमण दर जानना क्यों ज़रूरी है?
जेम्स गैलाघर (स्वास्थ्य एवं विज्ञान संवाददाता)
 
यूं तो किसी भी अक्षर की अहमियत कम नहीं होती लेकिन कोरोना वायरस से लड़ाई में अंग्रेजी के 'आर' यानी 'R' की भूमिका कुछ ज़्यादा ही अहम हो गई है।
 
इसी 'आर' के ज़रिए दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस के ख़तरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं और इसी के ज़रिए देशों की सरकारें ये जानने की कोशिश कर रही हैं कि अपने लोगों को बचाने के लिए वे क्या कदम उठाएं और लॉकडाउन कब और कैसे हटाएं?
इस 'आर' को कोरोना वायरस का 'री-प्रोडक्शन' नंबर या 'R वैल्यू' कहते हैं। किसी भी बीमारी के फैलने की दर को री-प्रोडक्शन नंबर यानी R नंबर कहते हैं। एक संक्रमित व्यक्ति से औसतन कितने लोगों में संक्रमण फैल सकता है, यही 'आर' नंबर है। आसान शब्दों में इसका मतलब होता है संक्रमण दर।
 
खसरे की संक्रमण दर सबसे अधिक हो सकती है। बग़ैर इम्युनिटी वाली आबादी में इसकी संक्रमण दर या 'आर' नंबर 15 है। यह काफी तेज़ी से फैल सकती है जबकि आधिकारिक तौर पर Sars-CoV-2 कहे जाने वाले नोवल कोरोना वायरस का री-प्रोडक्शन नंबर लगभग 3 है यानी ये 1 से 3 लोगों में फैल सकता है। हालांकि अलग-अलग आकलन में इसे लेकर थोड़ा अंतर हो सकता है।
 
संक्रमण दर 1 से ज़्यादा हुई तो हो सकता है ख़तरनाक
 
अगर किसी विषाणु की संक्रमण दर 1 से अधिक है तो इसका अर्थ है कि इसका संक्रमण तेज़ी से फैलता है यानी ये दोगुनी से अधिक रफ्तार से फैल सकता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो जिस तरह से क्रेडिट कार्ड का पेमेंट न करने पर ब्याज बढ़ता है, उसी तरह इसका संक्रमण भी बढ़ता है।
 
अगर संक्रमण दर 1 से कम है तो इसके कम लोगों तक पहुंचने की वजह से बीमारी के जल्द ख़त्म होने की संभावना होती है। इसलिए दुनियाभर के देशों की सरकारें इस संक्रमण दर को 3 से कम करने की कोशिश में हैं। यही वजह है कि लोगों को आपस में घुलने-मिलने से मना किया जा रहा है। रिश्तेदारों और परिवार वालों को भी एक-दूसरे से दूरी रखने के लिए कहा जा रहा। लोग दफ्तर की बजाय घरों से काम कर रहे हैं और बच्चों के स्कूल बंद हैं।
ब्रिटेन में कोरोना की संक्रमण दर
 
दरअसल, संक्रमण की दर कभी स्थिर नहीं रहती। लोगों के रहन-सहन में बदलाव, शरीर की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ इसमें भी परिवर्तन होता है। लंदन में मौजूद इंपीरियल कॉलेज के जानकार आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन लागू होने के साथ ही इस वायरस की संक्रमण दर पर पैनी नज़र रखने लगे थे। वो ये जानने की केशिश कर रहे थे कि ये दर कैसे बदलती है?
 
आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन जैसे कड़े कदम उठाने से पहले कोरोना वायरस की संक्रमण दर 1 से ज़्यादा थी और हालात बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने के माकूल थे। लेकिन एक के बाद एक पाबंदी लगाए जाने के बाद संक्रमण की गति धीमी पड़ी।
 
कुछ सप्ताह पहले तक 'आर' नंबर यानी संक्रमण 0.7 के आसपास थी लेकिन अनुमान है कि अब ये 0.75 से लेकर 1.0 के बीच होगी। केयर होम्स में आए मामलों के बढ़ने के कराण संक्रमण की दर में भी बढ़ोतरी हुई है। दूसरी जगहों पर संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं लेकिन केयर होम्स में मामले बढ़ने का सीधा असर देश में कोरोना की संक्रमण दर पर पड़ा है।
 
लॉकडाउन हटाने में संक्रमण दर की भूमिका?
 
दुनिया के तमाम देश इन दिनों इसी उधेड़बुन में हैं कि लॉकडाउन हटाएं तो कैसे? अगर लॉकडाउन हटाना है तो इन देशों को अपये यहां संक्रमण दर को नीचे लाना होगा। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉक्टर एडम कुचार्स्की कहते हैं, 'यह एक बड़ी चुनौती है। आपको यह देखना होगा कि आप बहुत ज्यादा राहत तो नहीं दे रहे हैं। संक्रमण की रफ्तार तेज़ तो नहीं हो रही है।'
लेकिन ब्रिटेन में पाबंदियां लगाए जाने के बाद संक्रमण की दर 3 से 0.7 हो गई थी। कोरोना की संक्रमण दर को 0.7 तक लाने का मतलब है कि इसको रोकने के लिए अच्छी कोशिश की गई है। डॉक्टर कुचार्स्की कहते हैं कि इस संक्रमण दर को कम रखना अपने आप में बड़ी चुनौती है, इसके लिए ज़्यादा मौक़े नहीं मिलते। इससे पहले अप्रैल की शुरुआत में जर्मनी में कोरोना की संक्रमण दर 0.7 तक पहुंच गई थी।
 
लेकिन रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट का कहना है कि हाल के दिनों में यह दर बढ़ रही है और अब फिर 0.75 तक आ गई है। इंस्टीट्यूट के चीफ़ प्रोफ़ेसर लोथर वीलर का कहना है कि 'इस दर को 1 से नीचे रखना बहुत बड़ा लक्ष्य है।'
 
किन मामलों में ढील दी जा सकती है?
 
डॉक्टर कुचार्स्की कहते हैं, 'दरअसल इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है कि आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन वायरस को फैलने से रोकने में कितना सफल है। इस बारे में अभी तक सब कुछ अनुमान पर ही आधारित है। मामला स्कूल या दफ्तर खोलने का हो या फिर लोगों को मिलने-जुलने की छूट देने का- ये समझना मुश्किल है कि इनसे संक्रमण दर में कितना इज़ाफ़ा हो सकता है।'
 
वो कहते हैं कि दूसरा मुद्दा यह है कि अगर वक्त के साथ लोगों के रहन-सहन का तरीका बदलता है तो लॉकडाउन में छूट न देने पर भी संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं। इसलिए संक्रमण को क़ाबू करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग और ट्रेसिंग या फिर लोकेशन ट्रैकिंग एप्स के इस्तेमाल जैसे नए तरीके अपनाए जाने की जरूरत है। इन तरीकों से एक तरफ लोगों को राहत दी जा सकती है, साथ ही दूसरी तरफ संक्रमण की दर को कम रखने में भी मदद मिल सकती है।
 
क्या संक्रमण दर यानी 'आर' नंबर सबसे अहम है?
 
कोरोना वायरस से निपटने में जिन 3 नंबरों का महत्व सबसे अधिक है, उनमें से एक संक्रमण दर यानी 'आर' नंबर है। इसमें दूसरा नंबर है तीव्रता का। अगर आपको मामूली लक्षण हैं, जो ज़्यादा परेशान करने वाले नहीं हैं तो आप राहत महसूस कर सकते हैं।
 
लेकिन दुर्भाग्य की बात तो ये है कि कोरोना वायरस और इसके कारण होने वाली बीमारी कोविड-19 बेहद घातक और जानलेवा है। आख़िरी नंबर है कोरोना के मामलों की संख्या। यही संख्या तय करती है कि लॉकडाउन जैसे फ़ैसले हटाए जाएं या नहीं? अगर संक्रमण के मामलों की संख्या ज़्यादा है और प्रतिबंधों में छूट दी जाती है और संक्रमण दर फिर से बढ़ सकती है।
ये भी पढ़ें
World Telecommunication Day: क्‍यों पूरी दुनिया में 17 मई को विश्व दूरसंचार दिवस मनाया जाता है?