नवरात्रि में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का महत्व
आदि शक्ति जगदंबा की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत वर्ष में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे वसंत व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।इस कर्म भूमि के सपूतों के लिए मां 'दुर्गा' की पूजा व आराधना ठीक उसी प्रकार कल्याणकारी है जिस प्रकार अंधेरे में घिरे हुए संसार के लिए भगवान सूर्य की एक किरण।नवरात्रि में दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन का बड़ा ही महत्व है। यह अष्टमी व नवमी की कल्याणप्रद, शुभ बेला श्रद्धालु भक्तजनों को मनोवांछित फल देकर नौ दिनों तक लगातार चलने वाले व्रत व पूजन महोत्सव के सम्पन्न होने के संकेत देती है।
मां दुर्गा की आराधना से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है। इतना ही नहीं बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व सम्पूर्ण विश्व के लिए भी मां भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है।इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विषेश महत्व है। पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजाना चाहिए तथा स्थापित समस्त देवी-देवताओं का आवाह्न उनके 'नाम मंत्रो' द्वारा कर षोडषोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायनी है। भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में महानवमी व दुर्गाष्टमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है। जिसमें नवमी व दुर्गाष्टमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है। यह पूजन प्रत्येक युगों, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वन्तरों आदि में भी प्रचलित था।