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मॉम : फिल्म समीक्षा

मॉम : फिल्म समीक्षा | Mom Movie Review
बलात्कार और बदला पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं। कानून और पुलिस का साथ नहीं मिलता और बलात्कारी मुस्कुराते हुए छूट जाते हैं। इसे देख कभी प्रेमी का खून खौलता है तो कभी पति का। कभी पिता का तो कभी 'मॉम' का। चिर-परिचित प्लॉट पर आधारित होने के बावजूद श्रीदेवी अभिनीत मॉम आपको शुरू से लेकर अंत तक बांध कर रखती है।
 
हाल ही में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर दृश्यम, पिंक और मॉम जैसी फिल्में आई हैं। ये फिल्में दर्शाती है कि अपराधियों को छोड़ना नहीं चाहिए। पिंक में एक होनहार वकील अपराधियों को सलाखों के पीछे करता है तो दृश्यम में एक पिता अपने तरीके से बेटी को बचाता है। समाज में महिलाओं को अपनी सुरक्षा को लेकर जो चिंता है वो इन फिल्मों से व्यक्त हो रही है।
 
दिल्ली में देवकी (श्रीदेवी) एक टीचर है। उसकी दो बेटियां हैं जिसमें से बड़ी आर्या सबरवाल (सजल अली) की उम्र 18 वर्ष के करीब है। अपने दोस्तों के साथ एक पार्टी में वह जाती है जहां पर उसका क्लास मेट मोहित, उसका भाई और दो अन्य लोग बलात्कार करते हैं। सबूतों के अभाव में ये अपराधी छूट जाते है। 
 
पुलिस अफसर मैथ्यु फ्रांसिस (अक्षय खन्ना) चाह कर भी देवकी और आर्या की मदद नहीं कर पाता। देवकी और उसका पति बेहद दु:खी हैं। ऐसे समय दया शंकर (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) नामक एक प्राइवेट जासूस देवकी की मदद के लिए आगे आता है। किस तरह से देवकी अपराधियों को सबक सिखाती है, यह फिल्म का सार है। 
 
इस फिल्म को रवि उदयावर, गिरीश कोहली और कोना वेंकट राव ने लिखा है। बलात्कार और बदले के साथ उन्होंने कुछ उप-कहानियां भी मुख्य कहानी से जोड़ी है। मसलन मां और बेटी के रिश्ते में तनाव, युवा लड़की की सुरक्षा को लेकर उसके माता-पिता की चिंता, बलात्कार को लेकर लचर कानून, जैसी कुछ बातें फिल्म को अलग लुक देती है। 
 
फिल्म को दो भागों में बांटा गया है। पहला भाग बलात्कार होने के बाद की पीड़ा को दर्शाता है और यह काफी दर्दनाक है। बलात्कार पीड़िता को ताउम्र इस दर्द से गुजरना पड़ता है, साथ ही उसके परिवार का हर सदस्य इस दर्द को भोगता है। फिल्म का यह हिस्सा आपको बैचेन कर देता है। आर्या के खौफ और दर्द को सिनेमाघर में बैठा हर दर्शक महसूस करता है और यह निर्देशक रवि उदयावर की कामयाबी है। 
 
आप आर्या के माता-पिता की असहायता को भी महसूस करते हैं कि वे कुछ नहीं कर पाते। यहां निर्देशक ने एक उम्दा दृश्य रखा है। अपराधियों को अदालत बेकसूर करार देती है तो आर्या के पिता एक बलात्कारी को घूसा जड़ देते हैं और उन्हें सजा हो जाती है। देवकी कहती है कि इस देश में रेपिस्ट छूट जाते हैं और उन्हें एक चांटा मारने वाले को सजा हो जाती है। यह सीन हमारे समाज, देश और कानून के बारे में काफी कुछ कह जाता है। 
 

फिल्म का दूसरा भाग थ्रिलर में परिवर्तित हो जाता है, जिसमें देवकी अपराधियों को अपने तरीके से सजा देती है। यह भाग थोड़ा अविश्वसनीय है। अपराधियों को जिस तरह से देवकी सबक सिखाती है, यह देख अच्छा जरूर लगता है, लेकिन जिस तरह से वह यह सब करती है उस पर यकीन कम होता है। निर्देशक रवि यहां थोड़ा बहक गए और उन्होंने श्रीदेवी पर कुछ ज्यादा ही फोकस कर दिया। इससे नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अक्षय खन्ना के किरदारों को उभरने का अवसर नहीं मिल पाया। बावजूद इसके ‍फिल्म के खत्म होने तक रूचि बनी रहती है। 
 
फिल्म में देवकी और उसके परिवार का सम्पन्न दिखाया गया है। वे साधन-सम्पन्न हैं और हर तरह की मदद लेकर अपराधियों को सजा दे सकते हैं, लेकिन देश में कई ऐसी बलात्कार पीड़ित महिलाएं होंगी जो साधन सम्पन्न नहीं हैं क्या उन्हें न्याय मिलता होगा? क्या सबकी 'मॉम' इतनी शक्तिशाली है? क्या कानून को 'मॉम' जैसा ताकतवर नहीं होना चाहिए? ऐसे सवाल फिल्म देखते समय दिमाग में उभरते हैं।  
 
फिल्म में प्रतिभाशाली कलाकारों का समूह है। श्रीदेवी का अभिनय शानदार है। उन्हें अपने अभिनय में कई रंग दिखाने का अवसर मिला है और जिसका उन्होंने भरपूर फायदा उठाया है। अस्पताल में जब पहली बार अपनी बेटी का बलात्कार होने के बाद मिलती हैं, उस सीन में उनका अभिनय देखने लायक है। उनकी संवाद अदायगी जरूर कहीं-कहीं दोषपूर्ण है।
 
नवाजुद्दीन सिद्दीकी जब-जब स्क्रीन पर आते हैं, तनाव से भरी इस फिल्म में थोड़ी राहत मिलती है। एक अलग ही हुलिया और अभिनय का अंदाज उन्होंने अपनाया है और हमेशा की तरह उनका अभिनय जबरदस्त रहा है। आर्या के रूप में सजल अली खूबसूरत लगीं और श्रीदेवी के अभिनय के स्तर को उन्होंने 'मैच' किया है। अक्षय खन्ना के पास ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं था, लेकिन कड़क पुलिस ऑफिसर के रोल में वे जमे। आर्या के पिता के रूप में अदनान सिद्दीकी और खलनायक जगन के रूप में अभिमन्यु सिंह का अभिनय उल्लेखनीय है। 
 
फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक एआर रहमान ने दिया है और तारीफ करनी होगी रहमान के संगीत की, जिसके कारण 'मॉम' को ताकत मिली है। प्रोडक्शन डिजाइन, सिनेमाटोग्राफी तारीफ के काबिल है। संपादन दूसरे भाग में थोड़ा ढीला है और यहां पर फिल्म को छोटा किया जा सकता था। 
 
मॉम को वास्तविकता के निकट रखने की कोशिश की गई है, लेकिन जो हल सुझाया गया है वो वास्तविक नहीं लगता, बावजूद इसके यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है। 
 
बैनर : ज़ी स्टुडियो, मैड फिल्म्स, थर्ड आई पिक्चर्स
निर्माता : बोनी कपूर, सुनील मनचंदा, नरेश अग्रवाल, मुकेश तलरेजा, गौतम जैन
निर्देशक : रवि उदयावर
संगीत : ए.आर. रहमान
कलाकार : श्रीदेवी, अक्षय खन्ना, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सजल अली, अदनान सिद्दीकी, अभिमन्यु सिंह 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 27 मिनट 43 सेकंड
रेटिंग : 3/5