1974 में मनोज कुमार ने 'रोटी कपड़ा और मकान' बनाई थी जिसके जरिये दर्शाया गया था कि हर भारतीय की यह मूलभूत जरूरत है। वक्त में बदलाव नहीं आया है और आज करोड़ों भारतीय अभी भी इससे वंचित हैं। अब बेसिक नीड्स में एक और चीज जुड़ गई है- इंटरनेट। तो समीकरण बन गया है रोटी कपड़ा मकान और इंटरनेट। ज़ोया अख्तर की फिल्म 'गली बॉय' में फिल्म का हीरो मुराद जब रात अपने साथियों के साथ शहर की दीवारों को रंगने निकलता है तो यही वाक्य लिखता है क्योंकि आज का युवा इंटरनेट के बिना जी नहीं सकता।
ज़ोया की फिल्म एक 'अंडरडॉग' की कहानी है जो प्रतिभा से भरपूर है और इस तरह की कहानी बॉलीवुड फिल्मों में नई बात नहीं है। लेकिन इस साधारण कहानी को जिस तरीके से ज़ोया अख्तर ने पेश किया है वो फिल्म को देखने लायक बनाता है। साथ ही कहानी को धार देने के लिए कई बातें इसमें जोड़ी गई है। समाज में आर्थिक अंतर, सपना पूरा करने की जिद, पैरेंट्स का बच्चों पर दबाव बनाना जैसी बातें फिल्म की मुख्य कहानी के साथ दौड़ती रहती है और इसी कारण फिल्म में पूरे समय मन लगा रहता है।
मुराद (रणवीर सिंह) मुंबई स्थित धारावी में रहता है। उसके पिता (विजय राज) ड्रायवर हैं जो किसी तरह अपने बड़े परिवार का खर्चा चलाते हुए मुराद को पढ़ा-लिखा रहे हैं। मुराद रैपर बनना चाहता है और परिवार से छिपकर अपना शौक पूरा करता है। सफीना (आलिया भट्ट) मुराद की गर्लफ्रेंड है जो डॉक्टर बनना चाहती है और मुराद को बेहताशा चाहती है।
मुराद को एमसी शेर (सिद्धांत चतुर्वेदी) और स्काय (कल्कि कोचलिन) जैसे दोस्तों का साथ मिलता है और वो ऐसी दुनिया में पहुंच जाता है जिसका उसने सपना भी नहीं देखा था, लेकिन इसके पहले उसके रास्ते में कई रूकावट आती हैं।
ज़ोया अख्तर और रीमा कागती ने मिलकर फिल्म स्क्रिप्ट लिखी है और उन्होंने हर सीन को बहुत मेहनत के साथ लिखा है। फिल्म का हर दृश्य अपने आप में खूबी लिए हुए है। यह जानते हुए भी आगे क्या होने वाला है फिल्म से दर्शक जुड़े रहते हैं। फिल्म में एक सीन हैं जिसमें मुराद अपने मालिक की बेटी को लेकर घर जा रहा है और वो रो रही है। मुराद उसे चुप कराना चाहता है, लेकिन उसकी हैसियत नहीं है, यह सोच कर रूक जाता है। उसके दर्द को बयां करती कुछ लाइनें गूंजती हैं और यह सीन देखने लायक बन जाता है। ज़ोया ने इन्हीं लाइन के जरिये अमीर और गरीब के फासले को भी दिखाया है।
फिल्म के किरदारों और परिस्थितियों को भी डिटेल्स के साथ दर्शाया गया है। माचिसनुमा घर में मुराद रहता है जहां पर घर के सदस्यों को प्राइवेट बात करना होती है तो वे घर से बाहर निकल कर बात करते हैं। स्काय के घर जब मुराद जाता है तो उसका बाथरूम देख दंग रह जाता है। वह बाथरूम की लंबाई नापता है मानो उसके घर से बड़ा तो स्काय का बाथरूम है। ऐसे छोटे-छोटे दृश्यों के जरिये फिल्म में कई बातें की गई हैं जो कहानी के स्तर को ऊंचा करती रहती हैं।
सैफीना का किरदार जबरदस्त लिखा गया है। वह बिलकुल आग का गोला लगती है और जिंदगी के प्रति उसकी सोच बिलकुल स्पष्ट है। कब और कैसे काम निकालना है यह वे बहुत अच्छे से जानती हैं। इस तरह रैपर एमसी शेर का किरदार फिल्म पर गहरा असर छोड़ता है। स्काय के किरदार को लेकर थोड़ा कन्फ्यूजन नजर आता है। उसका और मुराद का एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होने वाला प्रसंग महज फिल्म की लंबाई बढ़ाता है।
रैपर्स के मुकाबले वाले सीन उम्दा हैं और इनकी लाइनें बहुत अच्छी लिखी गई हैं। जावेद अख्तर ने मुराद की लाइनें लिखी हैं और ये कमाल की हैं। विजय मौर्या के संवाद तारीफ के काबिल हैं और कई जगह गहरे अर्थ लिए हुए हैं।
ज़ोया अख्तर का निर्देशन शानदार है। ज़ोया ने अब तक जो फिल्में बनाई हैं उसमें उन्होंने समाज के श्रेष्ठि वर्ग का चित्रण किया है। इस बार उन्होंने उपेक्षित और संघर्षरत वर्ग को अपनी फिल्म में जगह दी है। उन्होंने फिल्म को बहुत अच्छे से डिजाइन किया है और उनकी डिटेलिंग शानदार है। बहुत ही आक्रामक तरीके से उन्होंने कहानी को पेश किया है और दर्शकों को सहज नहीं होने दिया। रैप सांग के जरिये उन्होंने कहानी को आगे बढ़ाया है और कहानी पर सांग्स को हावी नहीं होने दिया। फिल्म की लंबाई पर उनका कुछ जगह नियंत्रण छूटता नजर आता है।
बाजीराव, खिलजी और सिम्बा जैसे लार्जर देन लाइफ किरदार के बाद रणवीर सिंह ने बिलकुल रियलिस्टिक किरदार निभाया है। उनका लुक, हेअरस्टाइल, ड्रेस सब बिलकुल साधारण है। इसके बावजूद उनका अभिनय निखर कर सामने आया है। कुछ कर गुजरने की छटपटाहट को उन्होंने अपने अभिनय से खूब व्यक्त किया है। वे स्टार बन चुके हैं और उनका अच्छा टाइम आ चुका है।
आलिया भट्ट फिल्म दर फिल्म चौंकाती जा रही हैं। इस फिल्म में उन्होंने अपना काम इतनी सफाई से किया है कि कभी भी नहीं लगता कि वे एक्टिंग कर रही हैं। सिद्धांत चतुर्वेदी एमसी शेर के रोल में हैं और उन्होंने क्या खूब अभिनय किया है। एक रैपर के एटीट्यूड और स्टाइल को उन्होंने बारीकी से पकड़ा है। कल्कि, विजय राज, विजय वर्मा, शीबा चड्ढा सहित अन्य कलाकारों का अभिनय भी शानदार है।
जय ओझा का कैमरावर्क धारावी की गलियों में खूब घूमा है और दर्शक बस्ती और गलियों को महसूस करते हैं। फिल्म की एडिटिंग उम्दा है। रैप सांग का थोड़ा और उपयोग किया जाता तो बेहतर होता।