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जेल में लश्कर प्रमुख का आलीशान 'ऑफ़िस'

जेल में लश्कर प्रमुख का आलीशान 'ऑफ़िस' - Zaki-ur-Rehman Lakhvi
-शहज़ाद मलिक, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
पाकिस्तान सरकार के चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई के दावों के बीच देश के सबसे चर्चित क़ैदियों में से एक ज़की-उर-रहमान लखवी, तमाम ऐशो आराम के साथ जेल मे रह रहे हैं। भारत सरकार लखवी को 2008 के मुंबई हमलों के प्रमुख साजिशकर्ताओं में मानती है। रावलपिंडी की विशाल जेल 'अद्याला' में जेलर के कार्यालय के एकदम बाद लखवी और उनके छह साथियों के कई कमरे हैं।
जेलर ने उन्हें टेलीविज़न, मोबाइल फोन, इंटरनेट और दिन भर में कई लोगों से मुलाकात की इजाज़त दे रखी है। एक जेल अधिकारी के मुताबिक लखवी किसी भी समय, रात-दिन और हफ्ते के सातों दिन कितने भी मेहमानों से मिल सकते हैं।
 
पेशावर हमला और ज़मानत : विश्व के किसी भी हिस्से में इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती, लेकिन पाकिस्तानी शासन में कुछ तत्व जेलों में रह रहे ऐसे चरमपंथी कमांडरों को खास सुविधाएं देते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि भविष्य में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों पर उनकी ज़रूरत पड़ सकती है।
 
दिसंबर 2008 में भारत ने लखवी को मुंबई (नवंबर 2008 के) हमलों में मुख्य अभियुक्त घोषित किया था, जिसके चार दिन बाद सात दिसंबर, 2008 को पाकिस्तान में लखवी को गिरफ्तार किया गया। मुंबई में 10 बंदूकधारियों ने दो भव्य होटलों, एक ट्रेन स्टेशन, एक अस्पताल, एक यहूदी सांस्कृतिक केंद्र और कुछ अन्य जगहों पर हमला कर 160 से ज़्यादा लोगों को मार दिया था।
माना जाता है कि लखवी को पाकिस्तान स्थित चरमपंथी गुट लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के प्रशिक्षण शिविर से गिरफ्तार किया गया। लश्कर पर आरोप है कि उसने भारत प्रशासित कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों के खिलाफ़ जंग छेड़ रखी है। इसके करीब छह साल बाद लखवी एक बार फिर सुर्खियों में आए जब मुंबई हत्याकांड की जांच कर रही एक आतंकवाद निरोधी अदालत ने उन्हें ज़मानत पर छोड़ने के आदेश दिए।
 
पाकिस्तान के पेशावर में एक स्कूल पर (16 दिसंबर 2014 को) आतंकवादी हमले और उसके बाद पाकिस्तान की सरकार और सेना के हर प्रकार के आतंकवाद के खात्मे के लिए संयुक्त अभियान चलाने की मांग किए जाने के बमुश्किल एक दिन बाद ही लखवी की रिहाई का फ़ैसला आया था। ऐसा लगा कि लखवी की ज़मानत ने उस घोषणा पर सवाल उठा दिए हैं।
 
पाकिस्तान पर हमेशा से भारत और अफगानिस्तान में अपने भू-सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ऐसे धार्मिक और चरमपंथी समूहों को बनाने और उन्हें पनाह देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि ऐसे कई संगठनों पर पाकिस्तान के ही खिलाफ भी जंग छेड़े जाने की बातें होती रही हैं। लश्कर भी ऐसा ही एक समूह है।
 
इस तरह जुड़ा लश्कर से लखवी... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 
 

कैसे बने लश्कर के सदस्य : 55 वर्षीय लखवी का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ओकारा ज़िले में हुआ था। यही मुंबई हमले में जीवित पकड़े गए एकमात्र हमलावर अजमल कसाब का भी ज़िला है।
 
साल 1990 में वह मध्य-पूर्व के पैसे से चलने वाले एक सलाफ़ी अभियान, जमात अह्ल-ए-हदीथ (जेएएच) में शामिल हुए थे। बाद में वह जमात की हथियारबंद चरमपंथी शाखा एलईटी के सदस्य बन गए।
जानकारों के अनुसार वे एलईटी के संस्थापक हाफ़िज़ मोहम्मद सईद के नज़दीकी रिश्तेदार हैं। साल 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने एलईटी पर प्रतिबंध लगाया तो सईद ने जमात उद दावा (जेयूडी) का गठन किया, जिसे एक इस्लामिक चैरिटी बताया जाता है। कई लोगों को लगता है कि जेयूडी, एलईटी का नागरिक चेहरा मात्र है। 1990 के दशक में लखवी ने पंजाब के मुरिद्के के नज़दीक एलईटी के मुख्यालय में काम किया जहां जेयूडी का भी मुख्यालय था।
 
इस दौरान वह लगातार जंग में शामिल रहे। भारतीय सुरक्षा बलों के अनुसार बाद में भारत प्रशासित कश्मीर में युद्ध अभियानों की योजना बनाने लगे। 90 के दशक के आख़िर तक वह एलईटी के ऑपरेशन हेड बन गए थे। लखवी और अन्य छह पर मामला मुंबई हमलों के सिलसिले में भारत सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए सबूतों के आधार पर दर्ज किया गया।
 
इन सबूतों में अजमल कसाब के क़बूलनामे के साथ ही सैटेलाइट फ़ोन का डाटा भी था जिसे भारतीय जांच एजेंसियों ने उस नाव से बरामद किया था जिसे हमलावरों ने कराची से मुंबई के रास्ते में अगवा किया था। भारतीय अधिकारियों के अनुसार लखवी ने हमलावरों से यात्रा के दौरान बात की थी और संभवतः हमले के दौरान भी उनके संपर्क में थे।
 
उन्होंने कहा कि कसाब ने लखवी को पहचान लिया था और कहा था कि उन्होंने 'हमलों के बारे में बताने में मदद की थी।' लेकिन इसके बाद दो ऐसी बातें बताई गईं जिनके आधार पर लखवी को ज़मानत मिल गई।
 
जेल से ही सक्रिय : साल 2012 में भारत ने पाकिस्तान के न्यायिक आयोग को (जिसमें लखवी के वकील, सरकारी वकील और अदालत के अधिकारी शामिल थे) मुंबई में कसाब से जिरह करने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया।
 
इसके बाद सरकारी पक्ष का एक गवाह, जो एक प्राथमिक शिक्षक था और जिसने कसाब को बचपन में पढ़ाया था, अपने बयान से पलट गया और कहा कि कसाब ज़िंदा है और उन्होंने उसे देखा है।
लखवी के वकील ने उस शिक्षक के बयान का सहारा लिया और कहा कि यह मनगढ़ंत आरोप हैं जो अंतरराष्ट्रीय दबाव में लगाए गए हैं। पाकिस्तान में कई लोग मानते हैं कि लखवी को शुरुआत में इसलिए गिरफ़्तार किया गया था क्योंकि कसाब का सबूत बहुत घातक था।
 
विश्लेषकों का कहना है कि तूफ़ान के गुज़र जाने के बाद पाकिस्तानी शासन अपनी मूल भूमिका पर लौट आया और एलईटी से एक सहयोगी की तरह बर्ताव करने लगा। बहरहाल लखवी को ज़मानत का भारत ने तीखा विरोध किया और भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को इस फ़ैसले को बदलने के लिए कदम उठाने को कहा।
 
अमेरिकी, चीनी धड़े नाराज़ हुए : अधिकारियों का कहना है कि इससे अमेरिका और चीन में भी कुछ धड़े नाराज़ हो गए थे क्योंकि लखवी की रिहाई से एक बड़ा बवाल होने की आशंका थी। पाकिस्तान सरकार ने कानून व्यवस्था बनाए रखने के कानून (एमपीओ) के तहत लखवी को हिरासत में रखकर और उनकी ज़मानत को ऊपरी अदालत में चुनौती देकर मामले को ठंडा करने की कोशिश की है।
लेकिन लखवी तक लोगों की बेरोकटोक आवाजाही, मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल और इंटरनेट पहुंच के चलते वह एलईटी में अपनी भूमिका सक्रियता से निभा रहे हैं।
 
एक जेल अधिकारी ने कहा कि लखवी की गिरफ़्तारी के बाद से एलईटी के रोज़मर्रा के काम एक कामचलाऊ अध्यक्ष अहमद देख रहे हैं और लखवी अब भी इस गुट के ऑपरेशन चीफ़ हैं। उन्होंने कहा कि औसतन रोज़ उनसे 100 लोग मिलने आते हैं। उन्हें उनके निजी कक्ष तक ले जाया जाता है जहां वह गार्ड्स की देखरेख के बिना आपस में बात कर सकते हैं और जब तक चाहें वहां रह सकते हैं।"