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Last Modified: शनिवार, 10 दिसंबर 2016 (12:20 IST)

#100 Women: ऑटो चलाने वाली ये जाबांज़ औरतें

#100 Women: ऑटो चलाने वाली ये जाबांज़ औरतें - tribal woman auto drive in ranchi
- नीरज सिन्हा (रांची से)
 
इस गैंग में लगभग दर्जन भर महिलाएं शामिल हैं और इन आदिवासी और चंद गैर आदिवासी महिला ऑटो ड्राइवरों को संकट के समय महिलाओं और लड़कियों की मदद करने के लिए रांची पुलिस ने सम्मानित किया है। झारखंड की राजधानी रांची में मोनिका देवी और उनके जैसों को जनता इसलिए भी सराह रहे क्योंकि वो किसी भी जरूरतमंद की मदद को कभी भी तैयार रहती हैं।
जब मैं मोनिका देवी से सुबह में मिलने पहुंचे, तो वे बस्ती की स्लकवाग्रस्त बूढ़ी सोमारी कच्छप को लेकर बैंक जा रही थीं। बताया, इन्हें वृद्धापेंशन निकालना है। कई दिनों से कह रही थीं, जिसे टाल नहीं सकी। भाड़े के बारे में पूछने पर वो कहती हैं, 'इन मामलों में हम मोल-भाव नहीं करते। वैसे भी पांच सौ, हज़ार रुपए की कमाई जरूर हो जाती है।'
 
मोनिका पहले नौकरी करती थीं। दिहाड़ी मज़दूरी करनेवाले पति को कभी काम मिलता, कभी नहीं, सो अकसर फांका। तब पेट भरना मुश्किल था। लेकिन अब हालात बेहतर हैं। बेटे रोहन के दोस्तों से ये कहते खुशी होती है कि उनकी मां ऑटो चालक है। हालांकि उसे तब चिंता होती है और बुरा भी लगता है जब मां मना करने पर भी संकट में फंसी किसी सवारी को लेकर रात में भी निकल जाती हैं।
 
मोनिका की तरह रजनी, फूलमनी, किरण कच्छप, विनीता, अनिता, उषा, किरण देवी, सावित्री और कई वो नाम हैं जो ग्रीन गैंग का हिस्सा हैं। मर्दों का काम समझे जानेवाले ऑटो चलाने के साथ-साथ ये लोगों की मदद हमेशा मदद करती हैं- बिना किसी मोल-तोल के, निजी फ़ायदे के। रांची हवाईअड्डे के पास पोखर टोली की रहने वाली फूलमनी कच्छप पहले दाई का काम करती थीं।
 
उनकी सहेली दीपा बताती हैं कि प्रसव पीड़ा से कराहती एक ग़रीब महिला सुषमा को वक्त पर फूलमनी ने न सिर्फ अस्पताल पहुंचाया, बल्कि उनके साथ किसी महिला के नहीं होने पर सारा काम वही संभालती रहीं। बाद में फूलमनी ने उन्हें अस्पताल से घर भी लाया।
फूलमनी इससे ख़ुश हैं, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। खूंटी की रहने वाले किरण देवी कहती हैं कि वो भी दौर था, जब एक साबुन के लिए तरसती थीं पर अब बिंदास जीती हूं। सच कहिए तो ऑटो ने जिंदगी की रफ़्तार बदल दी। चारों तरफ मर्द ऑटो वाले के होने से परेशानियों का सामना करना होता होगा, इस सवाल पर वो कहती हैं, "कभी एहसास नहीं हुआ, औरतें कमज़ोर हैं। हम सब आपस में सुख-दुख भी साझा करते हैं।"
 
रांची के यातायात पुलिस अधीक्षक संजय रंजन कहते हैं कि दुर्घटना में घायल महिला या लड़कियां सड़क किनारे पड़ी होती हैं और भीड़ तमाशबीन रहती है, तब रजनी टूटी, विनीता केरकेट्टा, अनिता उरांव सरीखे ऑटो चालक उन्हें अस्पताल पहुंचाती हैं, उनके घर वालों और पुलिस को ख़बर करती हैं। ये क्या कम है।
 
ग़रीब, लाचार तथा शोषित पीड़ित महिलाओं के हक़ और अधिकार को लेकर संघर्ष करने वाली नारी शक्ति संघ की आरती बेहरा ने इन महिलाओं को इस मुक़ाम तक पहुंचाने की राह दिखाई है। 
 
आरती बताती हैं कि संगठन से जुड़ने के बाद इन महिलाओं ने ऑटो चलाने की ट्रेनिंग ली। इसके बाद इन्हें बैंक से कर्ज दिलाया गया। वे बताती हैं कि राजधानी में बीस हज़ार से अधिक ऑटो के बीच हरा- गुलाबी ऑटो चलाने वाली महिलाओं की संख्या पचास होगी, पर ये अपने कुशल व्यवहार और अक्सर सवारियों की मदद करने की वजह से लोगों के बीच चर्चित हैं।
 
वे किरण कच्छप से हमें मिलवाती हैं, जिन्होंने हाल ही में एक बीमार महिला को भर्ती कराने के लिए चार अस्पतालों के चक्कर लगाए, पर बीच रास्ते में नहीं छोड़ा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कुलदीप दि्वेदी कहते हैं कि ये महिलाएं लीक से हटकर काम कर रही हैं। हम उनका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं, ताकि यातायात का माहौल बेहतर बने।
 
एक महिला सवारी ऋतु प्रधान बताती हैं कि इनकी ऑटो खड़ी हुई कि सीट फुल। इन्हें तेज़ भागती ज़िंदगी में शामिल होता देख कर फ़ख़्र होता है। वहीं कॉलेज की छात्रा पल्लवी कहती हैं, "इनके साथ हम बेफ़िक्र होते हैं, क्योंकि ये महिलाओं या परिवार वालों को ही बैठाती हैं और लूज टॉक नहीं करतीं।"
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