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Last Modified: मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017 (10:59 IST)

जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों की नींद हराम

जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों की नींद हराम | Rohingya Muslims in Jammu
- मोहित कंधारी (जम्मू से)
 
भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में रहने वाले म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान मोहम्मद युसुफ ने मंदिरों के इस शहर में खुद को कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया। मदरसा में पढ़ाने वाले 36 साल के मोहम्मद पिछले 11 साल से जम्मू के सीमाई इलाके में रह रहे हैं। उन्होंने हमेशा जम्मू को अपना दूसरा घर माना, लेकिन आज हालात बदल गए हैं।
जम्मू के अलग-अलग इलाकों में रोहिंग्या को निशाना बनाते हुए 'जम्मू छोड़ो' के पोस्टर लगाए जाने के बाद युसुफ की रातों की नींद हराम हो गई है। अपना भविष्य 'अनिश्चित' नजर आने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचआरसी) ने मोहम्मद को जो 'शरणार्थी कार्ड' दिया था वो भी इस 13 फरवरी को ख़त्म हो गया।
 
जम्मू में इन पोस्टरों ने म्यांमार से आकर बसने वाले रोहिंग्या मुसलमानों के होश उड़ा दिए हैं। ये पोस्टर जम्मू और कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी यानी जेकेएनपीपी ने लगाए हैं। इन पोस्टरों पर लिखा है, 'डोगरा की विरासत, संस्कृति और पहचान बचाने के लिए, आइए हम जम्मूवासी एकजुट हों।' हालांकि सूबे की विधानसभा में पैंथर्स पार्टी का कोई मंत्री नहीं है।
 
युसुफ कहते हैं, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि जम्मू में हमारे रहने की बात पर अचानक इतनी हायतौबा क्यों मचाई जा रही है। राजनीतिक दल हम पर यहां सोच समझ कर आने और बसने का आरोप लगा रहे हैं। ये सच नहीं है। यहां तो हमें हमारा भाग्य ले आया है।"
 
मोहम्मद युसुफ़ याद करते हैं वो सफर, म्यांमार से जम्मू पहुंचने का सफर। वे बताते हैं, "सीमा पार करते समय हमने अपने एजेंट को कहा था कि वो ध्यान रखे कि भारतीय सीमा के भीतर हमारा प्रवेश सुरक्षित हो। हम बांग्लादेश से होते हुए कोलकाता पहुंचे और अलग-अलग ट्रेनों में चढ़े। हमें तब मालूम नहीं था कि कहां जाना है। हममें से कई हैदराबाद गए, तो कुछ अलीगढ़। और हम लोग जम्मू पहुंच गए। जम्मू रेलवे स्टेशन पर ऑटो ड्राइवर को कहा कि वो हमें मुसमानों की बस्ती ले चले। और हम यहां आ गए। यहां रहते हुए 11 साल हो गए हैं। मुझे आज तक कभी किसी ने परेशान नहीं किया।"
 
जम्मू में बसने वाले अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। कुछ स्क्रैप डीलर हैं। बच्चे रीसाइकल होने वाली चीजों को इकट्ठा करने में घरवालों की मदद करते हैं। रोहिंग्या परिवार की कुछ महिलाएं दूसरों के घरों और आसपास के कारखानों में काम करके कमाई करती हैं।
मोहम्मद की तरह एक और मदरसा टीचर हैं कैफ़ियत उल्लाह। कैफ़ियत उल्लाह बताते हैं, "हमारे खिलाफ जब से ये नफरत फैलाई जा रही है। हम यहां कितने साल से रह रहे हैं, कैसे रह रहे हैं इसकी जांच-परख करने अब तक कोई भी पुलिस नहीं आई है। ना ही अब तक किसी ताजा रजिस्ट्रेशन के आदेश आए हैं।"
 
एक और म्यांमार शरणार्थी एजाज़ उल हक़ ने कहा, "हम यहां गैरकानूनी तरीके से नहीं रह रहे हैं। हमें शरणार्थियों के संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त ने शरणार्थी कार्ड जारी किए हैं।" "हमने कानून-व्यवस्था के लिए कोई समस्या पैदा नहीं की। न ही स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। और न ही हम कोई अपराधी हैं।"
 
हालांकि सुरक्षा बल पाकिस्तान से सटे और चरमपंथ से प्रभावित राज्य के लिए रोहिंग्या मुसलमानों को ख़तरे के रूप में देखते हैं। जम्मू में हाल के दिनों में लोग रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। दरअसल अक्तूबर 2016 में दक्षिण कश्मीर में हुई एक मुठभेड़ में मारे गए दो विदेशी चरमपंथियों में से एक पड़ोसी देश म्यांमार का मूल निवासी निकला।

तब विश्व हिंदू परिषद् की राज्य इकाई ने रोहिंग्या शरणार्थियों को 'जम्मू की सुरक्षा के लिए खतरा' बताते हुए 'राज्य से बाहर करने' मांग की थी। कुछ दक्षिणपंथी नेताओं ने प्रेस को दिए गए बयान में नगरोता, सांबा और दूसरे कई इलाकों पर हुए चरमपंथी हमलों में शरणार्थियों का हाथ बताया। 
 
जेकेएनपीपी के अध्यक्ष हर्षदेव सिंह ने बताया, "क्या राज्य के किसी भी हिस्से में रोहिंग्या के बसने के लिए क़ानून इजाजत देता है? संविधान की धारा 370 के अनुसार जम्मू कश्मीर में किसी का आकर बसना ग़ैरक़ानूनी है। अगर राज्य सरकार उन्हें बाहर नहीं करती तो हम ये काम करेंगे।"
जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों के बच्चों को आवास प्रमाणपत्र देने के मुद्दे पर जब से हो-हल्ला शुरू हुआ है तभी से जम्मू के सीमाई इलाकों में रोहिंग्या के बसने के मसले पर राजनीतिक दलों की गहमागहमी बढ़ गई है। केंद्रीय अर्ध सैनिक बल और भारतीय सेना में भर्ती अभियान में शामिल होने के लिए ये प्रमाणपत्र मांगे जाते हैं।
 
पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों के 19,000 से अधिक परिवारों ने राज्य में रजिस्ट्रेशन करवाया है। ये शरणार्थी 1947 में जम्मू कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में चले गए थे। इन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता तो दी गई है लेकिन वे जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं माने जाते हैं। बल्कि अब तक वे राज्य विधानसभा चुनावों में भी मतदान के अधिकार से वंचित हैं। जम्मू कश्मीर विधानसभा के बजट सत्र के दौरान इस मसले पर भारी विवाद खड़ा हुआ था।
 
नौशेरा से भाजपा विधायक रविंद्र रैना कहते हैं, "अगर पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों को तीन पीढ़ियों के बाद भी अब तक नागरिकता नहीं दी गई तो रोहिंग्या मुसलमानों को राज्य में रहने की इजाजत कैसे दी जा सकती है।" उन्होंने विधानसभा में ये बात इन विस्थापित लोगों की गिनती करने की मांग करने के पहले कही।
 
राज्य गृह विभाग की ज़िम्मेदारी संभाल रहीं मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में इस बात का जवाब दिया। उन्होंने सदन में बताया कि राज्य में कुल 5,743 रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं और अब तक उनकी ओर से किसी भी तरह की कट्टरता या हिंसा की ख़बर नहीं मिली है।
 
महबूबा मुफ्ती ने भाजपा विधायक सत शर्मा के सवाल का जवाब देते हुए कहा, "राज्य में हुई चरमपंथी से जुड़ी किसी भी घटना में किसी भी रोहिंग्या मुसलमान का हाथ नहीं पाया गया है। हालांकि अपराध के अलग अलग मामलों में 38 रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ 12 एफ़आईआर दर्ज किए गए हैं।"
 
राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस भी भारतीय जनता पार्टी पर जमकर बरसी। आरोप लगाया कि गैरकानूनी तरीके से बसने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह भाजपा नेता सुर्खियां बटोरने में लगे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रवक्ता मदन मंटू सवाल करते हैं, "केंद्र में भाजपा की सरकार है, जम्मू कश्मीर में पीडीपी-भाजपा की गठबंधन सरकार है। तो फिर उन्हें बांग्लादेश और रोहिंग्या मामले को सुलझाने से कौन रौक रहा है।"
 
मदन ने ये भी बताया कि उनकी पार्टी ने फॉरनर्स एक्ट के तहत गैरकानूनी तरीके से बसे लोगों के निर्वासन की मांग कई बार की है। जम्मू और कश्मीर के प्रदेश कांग्रेस कमिटी यानी जेकेपीसीसी ने केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा से कहा है कि वे निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए बार बार बयान देने की बजाय राज्य में रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों के मामले पर कार्रवाई करने के मामले में ठोस कदम उठाए।
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