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Last Modified: मंगलवार, 26 अप्रैल 2016 (12:16 IST)

'मोदी ने पूछा सरकारी नौकरी, फौज में कितने मुसलमान हैं'

'मोदी ने पूछा सरकारी नौकरी, फौज में कितने मुसलमान हैं' - PM Modi asks, How many muslims are there in army
नितिन श्रीवास्तव
भारत की अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि दो हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी नौकरियों में मुस्लिम भागीदारी का डाटा मांगा है।
 
बीबीसी हिंदी से एक खाास बातचीत में कैबिनेट मिनिस्टर हेपतुल्ला ने कहा कि भारत में मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए भाजपा नहीं, बल्कि पुरानी सरकारें ज़िम्मेदार रही हैं।
 
उन्होंने कहा, 'नरेंद्र मोदी ने पता करना चाहा है कि आखिर सरकारी नौकरियों और सर्विसेस (फ़ौज) में मुसलमानों समेत अल्पसंख्यक समुदाय के कितने लोग काम कर रहे हैं। मोदी जानना चाहते हैं मुस्लिमों के कम प्रतिनिधित्व की आखिर वजह क्या रही है?'
 
दशकों तक कांग्रेस पार्टी की सांसद और अब भाजपा की वरिष्ठ मंत्री नजमा हेपतुल्ला का मानना है कि भारत के अल्पसंख्यक समुदायों पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उससे कहीं कम दिया गया है।
 
उन्होंने कहा, 'मेरे पास हज मंत्रालय भी है और मेरी मुश्किल का अंदाजा इस बात से लगाइए कि मैं पिछले कई दिनों से एक संयुक्त सचिव जैसे वरिष्ठ अफसर की तलाश में हूं क्योंकि हज का मामला है और वहां आना-जाना भी होगा। इसीलिए मुझे मुस्लिम अफसर चाहिए, जो कि मुझे ढूंढने पर भी नहीं मिल पा रहा है।'
 
नजमा हेपतुल्लाह ने इन आरोपों का भी खंडन किया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता संंभालने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय में अपनी सुरक्षा को लेकर कथित बेचैनी बढ़ी है।
 
बहरहाल, 2005 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था जिसने भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक और सरकारी प्रतिनिधित्व पर एक रिपोर्ट संसद में पेश की थी।
 
2006 में पेश हुई इस रिपोर्ट के अनुसार ब्यूरोक्रेसी में मुसलमानों का प्रतिशत मात्र 2.5 फीसदी था जबकि उस समय भारत की आबादी में उनका हिस्सा 14 फीसदी से भी ज्यादा था।
 
उस रिपोर्ट के आठ वर्ष बाद जेएनयू के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू के नेतृत्व में एक और कमेटी का गठन हुआ था जिसने 2014 अक्टूबर में अपनी रिपोर्ट पेश की थी।
 
अल्पसंख्यक समुदाय की मौजूदा स्थितियों का विश्लेषण करने वाली इस रिपोर्ट के भी मुताबिक सच्चर कमेटी के बाद से इन समुदायों पर सरकारों का ध्यान तो बढ़ा है लेकिन अभी भी वो पर्याप्त नहीं है।