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Last Modified: बुधवार, 6 मई 2015 (11:53 IST)

चीन को मेक इन इंडिया से प्यार क्यों?

चीन को मेक इन इंडिया से प्यार क्यों? - make_in_india_vs_make_in_china
- एसडी गुप्ता (वरिष्ठ पत्रकार)
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' नारे में चीन ने एक बड़ी कारोबारी संभावना खोज ली है। चीन का प्रस्ताव बहुत ललचाने वाला है। वहीं भारतीय कारोबार जगत के कई लोग इसे बेहतरीन पहल मान रहे हैं।
नरेंद्र मोदी जब 14 मई को चीन जाएंगे तो उन पर नई मशीनों और निवेश से जुड़े चीन के प्रस्ताव को स्वीकार करने का काफी दबाव होगा। इस मामले में उन पर कारोबार जगत के साथ-साथ भारत की जमीनी जरूरतों का भी दबाव होगा, इससे भले ही देश का निर्यात बिल और कर्ज बढ़ जाए।
 
एक चीनी मंत्री पहले ही सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वो मेक इन इंडिया और मेक इन चाइना का विलय चाहते हैं। लेकिन भारत का शुरुआती उत्साह अब मंद पड़ता दिख रहा है। शायद उसे लग रहा है कि चीन के प्रस्ताव के पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा है?
 
भारत के बारे में चीन का ज्ञान : चीन ने अपने जादू का पिटारा पहली बार कुछ साल पहले तब खोला जब चाइना डेवलपमेंट बैंक (सीडीबी) ने करीब 10 अरब डॉलर का लोन रिलायंस कम्यूनिकेशन को दिया। उसके बाद इस बैंक ने कई भारतीय कंपनियों को लोन दिया।
 
बैंकर किसी देश की खूबी और खामी को बहुत बारीकी से समझते हैं। वो कारोबारी खाता-बही के अंदर भी झांक लेते हैं। उन्हें पता होता है कि किस राजनीतिक निर्णय का किसी कंपनी की सफलता या विफलता पर क्या असर होगा। सीडीबी चीन का सरकारी नियंत्रण वाला बैंक है। भारत के बारे में उसकी गहरी जानकारी का लाभ चीनी नीति निर्माताओं को सीधे मिला होगा।
 
संभावनाओं का आकलन : जब कोई चीनी मंत्री मेड इन इंडिया और मेड इन चाइना के विलय करने के बारे में बात करे तो इसका मतलब है कि उन्होंने सभी संभावनाओं को खंगाल लिया है और निवेश की योजना भी बना ली है।
 
मोदी को अपने आगामी चीन दौरे में उसकी इसी योजना से निपटना होगा। मोदी की चीन यात्रा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गृह नगर शियान से शुरू होगी। ठीक वैसे ही जैसे शी जिनपिंग ने सितंबर, 2014 में अपनी भारत यात्रा अहमदाबाद से शुरू की थी।
 
मोदी चीन की राजधानी बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली केकियांग से कई बैठकें करेंगे। माना जा रहा है कि चीन में भारत के पूर्व राजदूत और वर्तमान विदेश सचिव एस जयशंकर भी इस यात्रा में मोदी के साथ रहेंगे।
भारतीय कारोबार की जरूरत : भारत और चीन के रोमांस को समझने के लिए सबसे आसान है दोनों देशों की जरूरतों को समझना। इसी से हम मेक इन इंडिया और मेक इन चाइना के विलय की वास्तविक संभावनाओं को परख सकेंगे।
 
यह अब कोई रहस्य की बात नहीं रही कि भारतीय कारोबारी जगत का बड़ा हिस्सा इस समय एक तरह की जड़ता का शिकार हो गया है। जिसकी मुख्य वजह मानी जाती है मशीनों और उत्पादन प्रक्रिया का अत्याधुनिक न होने के साथ-साथ कुशल कामगारों की कमी।
 
भारतीय कारोबारी जगत में एकाउंटेंटों, स्टॉक मार्केट वालों और राजनीतिक संपर्क रखने वाले फिक्सरों का दबदबा बढ़ गया है, लेकिन प्रोडक्शन मैनेजरों का प्रभाव घटा है।
 
चीन ने मशीनों के नवीनीकरण के साथ ही, जो लोग उनकी कीमत नहीं चुका सकते उन्हें उधार देने की भी पेशकश की है। यह भी ध्यान रहे कि चीन में बनी मशीनें जापान, जर्मनी या अमेरिका में बनी मशीनों से 40-70 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।
 
निवेश का न्योता : इतना ही नहीं चीन ने भारतीय उद्योग-धंधों समेत अन्य कारोबारी उद्यमों में निवेश करने का भी प्रस्ताव दिया है। सबसे अड़ियल कारोबारी के लिए भी ये ललचाने वाली पेशकशें हैं। कई कारोबारी पहले ही इसे स्वीकार कर चुके हैं। कई और भारतीय कारोबारी भविष्य में चीनी विक्रेताओं के खुले निमंत्रण को स्वीकार कर सकते हैं।
 
पिछले कुछ सालों में भारत की तीन-चौथाई नई बिजली परियोजनाएं और लगभग सभी निजी बिजली कंपनियां चीनी जेनरेटरों का इस्तेमाल करती हैं। भारत की बिजली की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए चीन उसे इससे जुड़ी और भी मशीनें बेचना चाहता है।
 
चीन क्या चाहता है? : चीन की अर्थव्यवस्था उसे लगे हालिया झटके से उबरने के लिए बेचैन है। पिछले कुछ सालों में चीन की विकास दर 10-11 प्रतिशत से फिसल कर सीधे 7.5 प्रतिशत पर आ गई है।
ज्यादातर चीनी कंपनियां निर्यात में कमी के संकट से जूझ रही है। दक्षिण चीन के ज्यादातर कारखाने सिमटते बाजार के साथ ही कच्चे माल और मजदूरी की बढ़ती लागत के दबाव में हैं। नतीजन चीन अब भारत और वियतनाम जैसे देशों को सामान बेचने की नीति बदल कर सीधे कारखाने ही बेचना चाहता है।
 
सालों की बचत की वजह से चीन के पास नगद मुद्रा भंडार भी काफी है। चीन की स्थानीय बैंक और सरकारी एजेंसियां विदेशी उद्यमों में निवेश को तैयार हैं। चीन को अपनी मशीनों और निवेश के लिए विदेशी बाजार चाहिए। भारत उसके लिए सबसे मुफीद देश है क्योंकि दोनों देशों की जरूरतें कमोबेश पूरक हैं।
 
भारत के लिए खतरा : नरेंद्र मोदी अपनी चीन यात्रा के दौरान चीन की मनचाही नीतियों पर चलेंगे इसकी बहुत कम संभावना है। चीन का निवेश स्वीकार करने में कुछ गंभीर खतरे भी हैं।
 
इनमें से एक है मशीनों के कल-पुर्जों के लिए चीन पर निर्भर हो जाने का खतरा। बिजली उद्योग के लिए ये बड़ी चिंता रही है। दोनों देशों के संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं ऐसे में कल-पुर्जों की कमी से बिजलीघरों के ठप होने की आशंका बनी रहेगी।
 
आलोचकों का कहना है कि कई चीनी कंपनियां वही मशीनें भारत को देंगी जिनपर प्रदूषण की वजह से चीन में प्रतिबंध है।
 
दरअसल, बीजिंग स्थित ग्लोबल टाइम्स ने यह कहकर पहले ही शंकाओं का पिटारा खोल दिया है कि भारतीयों को सेकेंड हैंड मशीनों को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि विकासशील देश की औद्योगिक क्षमताएं ऐसे ही बढ़ती हैं।