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Last Modified: शनिवार, 1 जुलाई 2017 (15:54 IST)

नज़रिया: 'चीन अगर हमारी सीमा में घुसा तो उसका बुरा हाल होगा'

नज़रिया: 'चीन अगर हमारी सीमा में घुसा तो उसका बुरा हाल होगा' - India China  Army
भारत हर लिहाज़ से 1962 से आगे निकल चुका है। चाहे वो वित्तीय स्थिति हो या फिर सामरिक स्थिति हो, भारत काफ़ी बेहतर स्थिति में पहुंच चुका है। 1962 की धमकी चीन बार-बार देता है, लेकिन उसे समझना होगा कि ये 55 साल पुरानी बात है। चीन को भी थोड़ा याद रखना चाहिए। 1962 के बाद 1967 में नाथुला पास में भारत और चीन के बीच झड़प हुई थी, तब भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
 
इसके बाद 1987 में सुंदरम चु के अंदर, चीनी सैनिकों ने भारत के इलाके में घुसने की कोशिश की थी, तो भारत के तत्कालीन सेना अध्यक्ष जनरल सुंदरजी ने तत्काल कार्रवाई करके चीन को ऐसे पेच में डाल दिया था कि उनके सैनिकों को चुपके से जाना पड़ा था। इसके अलावा चीन को ये भी याद रखना चाहिए था कि उसने जब 1979 में वियतनाम को सबक सिखाने की कोशिश की थी तब उसे ख़ुद सबक सीखना पड़ा था। इसलिए चीन को फालतू और बचपने की धमकियां नहीं देनी चाहिए।
 
1962 में भारतीय के राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य अभियान का मामला अपने हाथ में ले लिया था, कई जनरलों ने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई थी, इसलिए भारत को हार का सामना करना पड़ा था। 1962 युद्ध के बारे में जितनी किताबें सामने आ रही हैं, उन सब से ज़ाहिर होता है कि सेना ने सारी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री नेहरू और उनके रक्षा मंत्री वी। के। कृष्ण मेनन पर छोड़ दिया था।
 
उस वक्त भारतीय सेना को तैयारी करने का कोई मौका नहीं मिला था। ना तो भारतीय सेना के पास कपड़े थे और ना ही हथियार थे। ना ही बर्फ़ीले मौसम से तालमेल बैठाने की ट्रेनिंग थी। इन सबके बीच में नेहरू और मेनन का भरोसा इस बात में ज़्यादा था कि वे इसका राजनीतिक तरीके से मामले का हल निकाल लेंगे। संयुक्त राष्ट्र में भाषण पिलाकर चीन को पीछे हटने पर मज़बूर कर देंगे। ऐसा कुछ नहीं हो पाया था।
पर अब वो बात नहीं रही। बीते 55 साल में भारतीय सेना ने काफ़ी गहराई से अपनी तैयारी की है। हर किस्म की तैयारियां हुई हैं। हमारे सैनिक मोर्चे बहुत अच्छी से तैयार किए गए हैं। अब हमारी सेना के पास एयर फ़ोर्स की पावर भी मौजूद है। 1962 में हमने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था। हमारे पास ये सब ताक़त जुड़ गई हैं। हम चीन का ना केवल मुक़ाबला कर सकते हैं, बल्कि हम उनको रोक सकते हैं। हां, हम चीन पर पूरा कब्ज़ा नहीं कर सकते, लेकिन उनका मुक़ाबला कर सकते हैं।
 
ये बात ज़रूर है कि चीन एक आर्थिक और सामरिक ताक़त है, इस लिहाज से वो भारत से बेहतर स्थिति में है। आण्विक क्षमता में भी चीन भारत से बेहतर स्थिति में है। लेकिन जिस क्षेत्र में मौजूदा समय में तनाव चल रहा है वहां चीन बहुत मज़बूत स्थिति में नहीं है। इसकी बुनियादी वजहें हैं। पहली वजह तो यही है कि चीनी सेना की लॉजिस्टिक लाइन अप (रसद सामाग्री पहुंचाने और सहायता पहुंचाने की लाइन अप) को काफ़ी पीछे से आना पड़ता है।
 
इसके अलावा पहाड़ों पर डिफेंड करने वाली सेना को उखाड़ने के लिए कम से कम दस गुना ताक़त लगानी पड़ती है। भारत मौजूदा समय में तनाव वाले इलाके में डिफ़ेंडर की भूमिका में है। यानी भारत चीन की तरह आक्रामक भूमिका में नहीं है। ज़मीन हड़पने की नीति पर भारत काम नहीं कर रहा है। चाहे वो भारत चीन की सीमा हो या फिर साउथ चाइना सी हो। चीन ज़मीन पर हड़पने की नीति पर का काम कर रहा है। लेकिन भारतीय डिफ़ेंडरों से निपटने के लिए चीनी सैनिकों को बहुत दम लगाना पड़ेगा। चीन को इतना दम लगाने से पहले कई बार सोचना होगा।
 
इसकी तीसरी वजह भी है, चीन 14 देशों से घिरा हुआ है। ऐसे में अगर चीन भारत के साथ लड़ाई का माहौल बनाएगा उस वक्त चीन के बाक़ी दुश्मन चुप रहेंगे, ये चीन सोच भी नहीं सकता। कम से कम जापान और वियतनाम तो इस मामले में चुप नहीं बैठेंगे। कुछ और देश जो भारत के साथ रिश्ता रखते हैं वो चीन के ऊपर ही दबाव डालेंगे। ऐसे में चीन को ख़्वाब देखना छोड़ देना चाहिए।
मौजूदा स्थिति में एक और बात 1962 से अलग है। इस समय भारतीय सेना का मनोबल काफ़ी बढ़ा हुआ है। हमारे कमांडर वैसे नहीं हैं, जैसे 1962 में थे। उस वक्त जनरल कौल हुआ करते थे, कोर कमांडर थे, उन्होंने कभी किसी ट्रूप को कमांड नहीं किया था, उनकी एक ही ख़ासियत थी कि वे नेहरू के क़रीबी थे।
 
ऐसे स्थिति इन दिनों नहीं हैं। कमांडर अच्छे हैं, हथियार अच्छे हैं। सैनिकों की काफ़ी ट्रेनिंग हुई है। आर्टेलरी, मिसाइल, एयर फोर्स सबमें इतनी ताक़त है जिससे हम अपनी ज़मीन और सीमा के इलाके की सुरक्षा बेहतर तरीके से कर सकते हैं।
 
हमारा इरादा चीन पर कब्ज़ा करने का नहीं है, लेकिन चीन अगर हमारी सीमा में घुसने की कोशिश करेगा तो उसका बुरा हश्र होगा। ऐसे में अरूण जेटली ने जो कहा है, उससे ज़्यादा उन्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें अपने कमांडरों और थल सेनाध्यक्ष पर मामला छोड़ देना चाहिए जो इस हालात से निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं।
 
(बीबीसी संवाददाता प्रदीप कुमार से बातचीत पर आधारित।)
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