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Last Modified: बुधवार, 13 जनवरी 2016 (14:07 IST)

जिन्हें वो दफनाता था, वो सपनों में आते थे

जिन्हें वो दफनाता था, वो सपनों में आते थे - graveyard digger profile
- माजिद जहांगीर (श्रीनगर से)
 
आज की भागमभाग वाली दुनिया में कोई शख्स सालों तक अनजानी और नामालूम लाशों को सुपुर्द-ए-खाक करता रहा। शायद आप इस बात पर यकीन न करें। लेकिन भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर में यह बात किसी से पूछें, तो हर कोई आपको अता मोहम्मद खान के बारे में कुछ न कुछ जरूर बताएगा। जितने मुंह उतनी बातें।
यही वजह है कि 75 साल की उम्र में अता मोहम्मद खान का जब निधन हुआ, तो श्रीनगर से 90 किलोमीटर दूर चाहाल बेनियर उरी गांव में उनके घर लोगों का तांता लग गया।
 
अता मोहम्मद बीते तीन साल से गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे। उन्होंने बीते कई साल से नामालूम लाशों को सुपुर्द-ए-खाक करने के लिए कब्रें खोदने का काम किया। इस वजह से उनका नाम देश-दुनिया में चर्चित हो गया था।
 
आठवीं तक पढ़े अता मोहम्मद ने 11 साल तक सूबे के बिजली विभाग में काम किया था। बाद में उनकी नौकरी जाती रही। लेकिन कब्रें खोदने का सिलसिला थमा नहीं। घर के पास ही कब्रिस्तान था, जहां वह यह काम करने लगे। साथ में खेती-बाड़ी भी थी।
उन्होंने 2002 से 2007 के बीच चाहाल बेनियर उरी गांव में 235 ऐसी कब्रें उन लोगों के लिए खोदीं, जिनके बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं था।
 
अता मोहमद के बड़े बेटे मंजूर अहमद खान बताते हैं, 'उस जमाने में यहां एनकाउंटर बहुत ज्यादा होते थे। पिताजी को भारतीय सेना और पुलिस के लोग हर दिन कब्रें खोदने को कहते थे।'
 
मंजूर ने बताया कि जब भी उनके पिता किसी अनजान शख्स की कब्र खोदते और उसे दफनाते, उसके बाद वह बहुत परेशान रहते थे।
 
वह बताते हैं, 'वह अक्सर कहते कि जिन बेनाम लोगों को मैं दफनाता हूं, वे मेरे सपनों में आते हैं। जो लाशें उनके पास लाई जाती थीं, उनमें से कोई जली होती थी तो किसी का चेहरा नहीं होता था। इन हालात में पिताजी के दिल और दिमाग़ पर काफी दबाव रहता था।'
 
मंजूर अहमद कहते हैं कि वह अपने पिता की विरासत आगे बढ़ाएंगे। मंजूर ने बताया कि सेना और पुलिस ने कभी कब्रें खोदने का मेहनताना नहीं दिया, बल्कि उल्टे वो उनको धमकाते थे।
अता मोहम्मद के रिश्तेदार और गांव के नंबरदार मुफ्ती कय्यूम खान कई बार अता मोहम्मद के साथ कब्रिस्तान जाते और लाशें दफनाए जाने तक उनके साथ रहते थे।

वह कहते हैं, 'मेरा उनके साथ गहरा लगाव था। कभी-कभी वह मुझे उस समय बुलाते जब उनको किसी बेनाम लाश को दफनाना होता था। उन्होंने मुझसे कह रखा था कि मेरे लिए अपने हाथों से कब्र खोदना।'
 
कय्यूम खान एक वाकया बताते हैं जब अता मोहम्मद को एक दिन में नौ शव दफनाने पड़े थे। वह कहते हैं, 'उस दिन नौ बेनाम लाशें सेना और पुलिस लेकर आई थी। अता मोहम्मद को सबके लिए कब्रें खोदनी पड़ी थीं। वह उसके बाद बहुत परेशान हो गए थे।'
 
साल 2008 में अता मोहमद कश्मीर में उस समय बहुत मशहूर हुए जब एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपियर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) ने बेनामी लाशों और उनकी कब्रों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की।