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Written By BBC Hindi
Last Updated : शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021 (08:04 IST)

कोरोनाः क्या है ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर, क्या बच सकती है इससे जान

कोरोनाः क्या है ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर, क्या बच सकती है इससे जान - Corona : What is oxygen concentrator
विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश के लखनऊ के बटलर चौराहे के नज़दीक अंजलि यादव की एसएसबी फ़ार्मास्युटिकल्स में ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर बेचे या किराए पर दिए जाते हैं। लेकिन पिछले कई हफ़्तों से 15,000 मासिक किराए पर दी गई उनकी 15 से 20 मशीनों को लोग लौटाने का नाम नहीं ले रहे हैं। लौटाने की जगह लोगों ने कंसन्ट्रेटर की बुकिंग को आगे बढ़ा दिया है।

देश के अलग-अलग हिस्सों में सड़कों पर, अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन की कमी से तड़पकर मरते लोगों की कहानियां सुनकर और तस्वीरें देखकर लोगों में डर और घबराहट फैल गई है कि कहीं उनकी भी यही हालत न हो।

प्रदेश में फिलहाल ऑक्सीजन सिलेंडर की इतनी किल्लत है कि ब्लैक में एक सिलेंडर 50 हज़ार रुपए से एक लाख रुपये में मिल रहा है। ऐसे में जान बचाने के लिए कई लोग ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर को सीमित समय में इस्तेमाल होने वाले महत्वपूर्ण विकल्प की तरह देख रहे हैं।

ऑक्सीजन सिलेंडर का विकल्प?
ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर एक ऐसी मशीन है जो हवा से ऑक्सीजन इकट्ठा करती है। इस ऑक्सीजन को नाक में जाने वाली ट्यूब के ज़रिए लिया जाता है।
 
जानकारों के मुताबिक़ इससे निकलने वाली ऑक्सीजन 90 से 95 फीसदी तक साफ़ होती है। ऐसे वक्त जब अस्पतालों में बिस्तर के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे हैं और सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं, माना जा रहा है कि लोगों की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर महत्ववूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके एक लाख ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर खरीदने की बात कही है। जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों से भी भारत की मदद के लिए ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर भेजे जा रहे हैं। निजी संस्थाएं और लोग भी ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर ज़रूरतमंदों और अस्पतालों को मुहैया करवाने की कोशिश कर रहे हैं।

जान बचाने में ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर की भूमिका
अपोलो अस्पताल में पल्मनरी मेडिसिन के वरिष्ठ कंसलटेंट डॉक्टर राजेश चावला कहते हैं, "अगर किसी का ऑक्सीजन स्तर नीचे जा रहा है तो अस्पताल में भर्ती होने तक आप ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर की मदद से काम चला सकते हैं।"
 
ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर ज़्यादा बीमार मरीज़ों या आईसीयू में भर्ती मरीज़ों के लिए नहीं है क्योंकि उस माहौल में मरीज़ों को इसके मुक़ाबले प्रति घंटा कई गुना ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है जो ये मशीनें पैदा नहीं कर सकती। कोरोना वायरस फेफड़ों पर हमला करता है जिससे लोगों में ऑक्सीजन स्तर के गिरने का ख़तरा रहता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर का इस्तेमाल उन लोगों को ज़्यादा ऑक्सीजन देने में होता है जिन्हें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी बीमारी होती है। लेकिन कोरोना काल में इसका महत्व और व्यापक हो गया है।

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मुनरी डिज़ीज़ फेफड़ों की एक ख़ास बीमारी होती है जिसमें उस तक पहुंचने वाले ऑक्सीजन का रास्ता बंद हो जाता है और मरीज़ को सांस लेने में परेशानी होती है।

डॉक्टर चावला कहते हैं कि ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर की मदद से बहुत सारे लोग घर में अपना इलाज करवा सकते हैं।
डॉक्टर चावला के मुताबिक़ अगर मरीज़ का ऑक्सीजन स्तर 90 से नीचे जाता है तो उसे ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर के इस्तेमाल के बारे में सोचना चाहिए।

वो ये भी कहते हैं कि अगर ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर मरीज़ के ऑक्सीजन स्तर को 88 या 89 के स्तर तक कायम नहीं रख पा रहा है तो उसे असरदार नहीं माना जा सकता।
 
ऑउट ऑफ़ स्टॉक
लेकिन बिजली से चलने वाले ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर के बारे में सोचा तब जाए, जब आपके पास पैसा हो या फिर ये बाज़ार में आसानी से उपलब्ध हो।
 
डॉक्टर चावला के मुताबिक़ पांच लीटर प्रति घंटा ऑक्सीजन बनाने वाली एक कंसन्ट्रेटर की क़ीमत लगभग 50 हज़ार रुपये तक है और 10 लीटर ऑक्सीजन प्रति घंटा बनाने वाली मशीन की क़ीमत करीब एक लाख रुपये तक।
 
आदमी उसके लिए पैसा भी जुगाड़ कर ले लेकिन फिलहाल हर जगह ये मशीन ऑउट ऑफ़ स्टॉक है, चाहे वो ऑनलाइन मार्केट हो या फिर ऑफ़लाइन बाज़ार। एक ऑनलाइन पोर्टल पर सात लीटर प्रति घंटे की एक ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर मशीन 76,000 रुपए में उपलब्ध थी लेकिन उसके लिए भी जुलाई तक का इंतज़ार था।

लखनऊ की अंजली यादव के पास कम से कम 500 लोगों के नाम और नंबर हैं जो ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर खरीदना चाहते हैं और कतार में हैं। उनका स्टॉक अमेरिका से आता है और उन्हें बताया गया है कि अगला स्टॉक मई में आएगा। लेकिन उन्हें ये नहीं पता नहीं कि उनके हिस्से आने वाली मशीनें उन्हें ऑर्डर के मुताबिक़ मिलेंगी या फिर उससे कम।
 
वो कहती हैं, "हमें काम करते करते 8-9 साल हो रहे हैं। हमने ऐसा वक्त और ऐसी स्थिति आज से पहले कभी नहीं देखी।"
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