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Last Modified: बुधवार, 3 दिसंबर 2014 (10:10 IST)

इंसान को खत्म कर देंगी 'स्मार्ट मशीनें'

इंसान को खत्म कर देंगी 'स्मार्ट मशीनें' - artificial_intelligence_human
- रोरी सेलान-जोंस
विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स सोचने वाली मशीन के अविष्कार की कोशिशें इंसानी वजूद के लिए खतरा हो सकती हैं। उन्होंने बीबीसी को बताया, 'पूरी तरह विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) मानव जाति की विनाश कथा लिख सकती है।'


उन्होंने यह चेतावनी उस सवाल के जवाब में दी जो उनके बात करने के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीक को दुरुस्त करने को लेकर था, जिसमें शुरुआती स्तर की एआई शामिल हो। लेकिन अन्य लोग एआई की संभावनाओं को लेकर बहुत आशंकित नहीं हैं।

'सकारात्मक ताकत' : सैद्धांतिक भौतिकीविद् हॉकिन्स को मोटर न्यूरॉन बीमारी एमियोट्रोफिक लेटरल स्कलेरोसिस (एएलएस) है और वह बोलने के लिए इंटेल के विकसित एक नए सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं।

ब्रितानी कंपनी स्विफ्टकी के मशीन लर्निंग विशेषज्ञ भी इसे बनाने में शामिल रहे हैं। उनकी तकनीक- जो कि पहले ही स्मार्टफोन के कीबोर्ड ऐप में इस्तेमाल हो रही है- यह सीखती है कि प्रोफेसर क्या सोचते हैं और ऐसा शब्द प्रस्तावित करती हैं जो वह संभवतः बोलने वाले हों।

प्रोफेसर हॉकिन्स कहते हैं कि अब तक विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता के शुरुआती प्रकार बेहद उपयोगी साबित हो चुके हैं लेकिन उन्हें डर है कि इसका असर ऐसी चीज बनाने में पड़ सकता है जो इंसान जितनी या उससे ज्यादा बुद्धिमान हों।

वह कहते हैं, 'यह अपना नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा और फिर खुद को फिर से तैयार करेगा जो हमेशा बढ़ता ही जाएगा।' 'चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमा होता है, वह प्रतियोगिता नहीं कर पाएगा और पिछड़ जाएगा।'

क्लेवरबॉट के निर्माता, रोलो कारपेंटर कहते हैं, 'मुझे लगता है कि हम अच्छे-खासे समय तक तकनीक के नियंत्रणकर्ता बने रहेंगे और दुनिया की समस्याओं को सुलझाने में इसकी क्षमताओं का अहसास हो जाएगा।'

क्लेवरबॉट का सॉफ्टवेयरअपनी पिछली बातचीत से सीखता है और ट्यूरिंग टेस्ट में काफी ऊंचे स्कोर हासिल कर चुका है। इससे कई लोग यह धोखा खा चुके हैं कि वह किसी इंसान से बात कर रहे हैं।

कारपेंटर कहते हैं कि हम पूरी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित करने के लिए कंप्यूटिंग क्षमता हासिल करने से बहुत दूर हैं। हालांकि उन्हें यकीन है कि कुछ दशकों में यह आ जाएगी।

वह कहते हैं, 'हम दरअसल नहीं जानते कि जब मशीन हमारी बुद्धिमत्ता से ज्यादा हासिल कर लेगी तो क्या होगा। इसलिए हम नहीं जनते कि वह हमें अनंत मदद करेगी, या दरकिनार कर देगी या जैसा कि माना जाता है नष्ट कर देगी।'

हालांकि वह दावा करते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक सकारात्मक ताकत होगी।

'बच्चों की पसंद' : लेकिन प्रोफेसर हॉकिन्स अकेले नहीं हैं जो भविष्य के प्रति आशंकित हैं। हाल फिलहाल में यह चिंता बढ़ी है कि ऐसे काम जो अब तक इंसान ही करते थे उन्हें करने के काबिल चतुर मशीनें चुपके से लाखों नौकरियां खा रही हैं।

तकनीक उद्यमी एलॉन मस्क चेताते हैं कि दीर्घकाल में कृत्रिम बुद्धमत्ता ही 'हमारा सबसे बड़ा मौजूदा खतरा' है। बीबीसी को दिए साक्षात्कार में प्रोफेसर हॉकिन्स ने इंटरनेट के फायदों और खतरों के बारे में भी बात की।

उन्होंने जीसीएचक्यू के निदेशक को उद्धृत किया कि इंटरनेट आतंकवादियो का कमांड सेंटर बन रहा है, 'इस खतरे से बचने के लिए इंटरनेट कंपनियों को और काम करना होगा, लेकिन मुश्किल यह है कि ऐसा आजादी और निजता को बचाते हुए करना होगा।'

हालांकि वह सभी तरह की संचार तकनीकों को उत्सुकता से ग्रहण करते रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि नए सिस्टम से वह ज्यादा तेजी के साथ लिख सकेंगे। लेकिन एक तकनीकी पक्ष- उनकी कंप्यूट्रीकृत आवाज, ताजा अपडेट में भी नहीं बदली है।

प्रोफेसर हॉकिन्स मानते हं कि यह थोड़ी रोबोटिक लगती है, लेकिन जोर देकर कहते हैं कि वह ज्यादा सहज आवाज नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा, 'यह मेरा ट्रेडमार्क बन गया है और मैं इसे ब्रितानी लहजे वाली ज्यादा सहज आवाज के साथ नहीं बदलूंगा।'

'मुझे बताया गया कि जो बच्चे कंप्यूटर की आवाज चाहते हैं, वे ज्यादातर मेरी तरह की चाहते हैं।'