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Written By BBC Hindi

परमाणु हमला क्यों करना चाहता है उत्तर कोरिया?

ध्रुती शाह (बीबीसी संवाददाता)

उत्तर कोरिया
BBC
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम ने अमेरिका और दक्षिणी कोरिया सहित पश्चिमी देशों के साथ उसके रिश्ते को बार-बार टूटने के कगार पर ला खड़ा किया है। मौजूदा तनाव से पहले साल 1994 में अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन के शासनकाल में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध लगभग तय था।

साल 2002 में भी यह तनाव तब फिर से भड़क उठा जब गुपचुप परमाणु हथियार विकसित किए जाने की शिकायत मिलने पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु पर्यवेक्षक इसकी जांच के लिए उत्तर कोरिया पहुंचे। वहां उन्हें जांच करने से रोक दिया गया।

उत्तर कोरिया अपने परमाणु योजनाओं के जरिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बार-बार उल्लंघन से बाज़ नहीं आया।

लेखक और उत्तर कोरिया मामलों के विशेषज्ञ पॉल फ्रेंच के अनुसार, "कोरियाई संघर्ष आज भी खत्म नहीं हुआ है। कम से कम प्योंगयांग के अनुसार, पुरानी दुश्मनी कायम है।"

परमाणु परीक्षण :
पॉल फ्रेंच कहते हैं, "पहले ‘महान नेता’ किम द्वितीय-सांग, फिर उनके बेटे ’प्रिय नेता’ किम जांग इल और अब पोता ‘परम प्रिय नेता’ किम जांग-उन परमाणु हमले को तुरुप के पत्ते के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं।"

पर संभवतः 1960 में शुरु हुआ परमाणु कार्यक्रम 1990 के दशक में एकाएक महत्वपूर्ण क्यों हो उठा?

पूर्व राजदूत जॉन एवराड के अनुसार, "चूंकि पूरा अंतरराष्ट्रीय माहौल उत्तर कोरिया के विपरीत नजर आ रहा था इसलिए यहां के नेताओं ने परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व की सुरक्षा की लिए इस्तेमाल करना शुरु कर दिया।"

दरअसल उत्तर कोरिया को जन्म साम्यवाद और पूंजीवाद के बीच के शीत युद्ध ने दिया और इस इतिहास से उत्तर कोरिया अपना पीछा कभी नहीं छुड़ा पाया।

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद कोरिया, जापान के दशकों लंबे शासन से मुक्त हुआ। इस युद्ध में मित्र राष्ट्र अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और सोवियत संघ की मदद से कोरिया ने अपनी आजादी हासिल की।

लेकिन सोवियत संघ और अमेरिका के बीच युद्ध के समय का सहयोग खत्म होते ही दो एकदम अलग-अलग मुल्कों का जन्म हुआ, और आजाद होने के बाद उत्तर कोरिया सोवियत संघ के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के संरक्षण में आ गया।

पहला उत्तरी हिस्से में नेता किम द्वितीय जांग के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट डेमोक्रेटिक पीपल्स गणराज्य कोरिया बना और दूसरा दक्षिण हिस्से में अमेरिका समर्थित कोरिया गणराज्य।

टकराव की शुरुआत :
साल 1950 में दक्षिण कोरिया ने खुद को आजाद देश घोषित कर दिया, पर उत्तर कोरिया को उनकी यह आजादी बिलकुल रास नहीं आई।

उसने सोवियत संघ और चीन की मदद से तुरंत दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया। इस टकराव से कोरियाई युद्ध भड़क उठा जो तीन साल तक चला।

दक्षिण कोरिया के पूसन राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रॉबर्ट केली बताते हैं, "अमेरिका ने इस युद्ध में तुरंत हस्तक्षेप किया। उसे डर था कि कहीं यहां साम्यवादी गुट का कब्जा हो गया तो इसका विश्वव्यापी प्रभाव पड़ सकता है।"

रॉबर्ट केली आगे बताते हैं, "अगर अमेरिका दक्षिण कोरिया के आगे घुटने टेक देता तो एशिया में साम्यवाद का विस्तार हो सकता था और इसका खतरा वे नहीं उठाना चाहते थे।"

साल 1953 में, काफी संघर्ष के बाद कोरियाई युद्धविराम समझौते पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किया। 38 पैरेलल के साथ ही सैन्य रहित क्षेत्र (डीएमजेड) की स्थापना की गई।

लेकिन यह कदम शांति स्थापित करने में लगभग नाकाम साबित हुआ। दोनों सरहदों पर तनाव कायम रहे। बाद के सालों में उत्तर कोरिया चीन और सोवियत संघ की मदद से तरक्की करता गया।

सरहदों पर तनाव :
लेकिन जैसे ही दक्षिण कोरिया में औद्योगिकीकरण और आर्थिक तरक्की में बढोत्तरी होने लगी सीमा पार के तनाव भी बढने लगे।

केली बताते हैं, "1970 के दशक में दक्षिणी कोरिया तो वाकई अमीर मुल्क बन गया लेकिन उत्तर कोरिया स्टालिन की नीतियों का ठेठ अनुनायी बना रहा और जल्द ही इसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाना शुरू हो गई।"

1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद इससे मिलने वाली मदद को बड़ा झटका लगा। 1992 में चीन के आने से उत्तर कोरिया और भी अलग-थलग पड़ने लगा।

पॉल फ्रेंच कहते हैं, "सोवियत गुट के विघटन के बाद उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई।"

पॉल फ्रेंच आगे बताते हैं, "देश की कृषि व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई और यहां के लोगों को 1990 के मध्य में अकाल का भी सामना करना पड़ा।"

इसी दौर में शुरू हुआ परमाणु परीक्षण का दौर जो अब ना जाने किस हद तक जाकर थमेगा।