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Written By Author पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

सर्वविघ्नहरण मंत्र के लाभ

मंत्र साधक में हो खास विशेषताएँ

मंत्रों का प्रयोग
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मंत्रों का प्रयोग कैसे करना चाहिए एवं किस विधि से करना चाहिए। साधक बनने के नियम एवं किस स्थान मंत्र-साधना पर करना चाहिए आदि जानकारी जानिए -

साधना स्थल कैसा हो -

मंत्र साधना की सफलता में साधना का स्थान बहुत महत्व रखता है। जो स्थान मंत्र की सफलता दिलाता है। सिद्ध पीठ कहलाता है। मंत्र की साधना के लिए उचित स्थान के रूप में तीर्थ स्थान, गुफा, पर्वत, शिखर, नदी, तट-वन, उपवन इसी के साथ बिल्वपत्र का वृक्ष, पीपल वृक्ष अथवा तुलसी का पौधा सिद्ध स्थल माना गया है।

आहार - मंत्र साधक को सदा ही शुद्ध व पवित्र एवं सात्विक आहार करना चाहिए। दूषित आहार को साधक ने नहीं ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार प्रथम एवं द्वितीय जानकारी को ध्यान में रखकर किया गया मंत्र सिद्धकारी होता है। आपके एवं जनकल्याण के लिए कुछ प्रयोग दे रहे हैं।

सर्वविघ्नहरण मंत्र
ऊँ नम: शान्ते प्रशान्ते ऊँ ह्यीं ह्रां सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा

इस मंत्र को नियमपूर्वक प्रतिदिन प्रात:काल इक्कीस बार स्मरण करने के पश्चात मुख प्रक्षालन करने से तथा सायंकाल में पीपल के वृक्ष की जड़ में शर्बत चढ़ाकर धूप दीप देने से घर के सभी लोग शांतमय निर्विघ्न जीवन व्यतीत करते हैं। इसका इतना प्रभाव होता है कि पालतू जानवर भी बाधा रहित जीवन व्यतीत करता है।

उपरोक्त जानकारी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों पर आधारित है। पाठक इन पर स्वविवेक से विश्वास करें।