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Written By Author पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

कैसे करें मंत्र जप- भाग1

Mantra chanting | कैसे करें मंत्र जप- भाग1
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मनुष्य को अपनी कामना पूर्ति करने के लिए जप-तप मंत्र करना पड़ता है। इस बार आप देखें जप साधना कितने प्रकार से होती है, कैसे की जाती है?

यंत्र, मंत्र, तंत्र जप साधना : जप एक ऐसा साधना प्रयोग है जिससे शीघ्र मनुष्य अपनी जिज्ञासा को प्रभु के चरणों में रख सकता है एवं सिद्धि प्राप्त कर सकता है। परम विद्वानों ने इसको तीन प्रकार का बताया है, कुछ विद्वानों ने दो प्रकार के जप और बताए हैं। देखें जप के प्रकार :

1. वाचिक जप 2. मानस जप और 3. उपाभुं जप एवं कई विद्वानों ने निम्न दो जप और माने हैं।
1. सगर्भ जप 2. अगर्भ जप

वाचिक जप- जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है।

मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है। जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है वह मानस जप कहलाता है।

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उपांशु जप- जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।

मनुष्य ने उपरोक्त दिए हुए जप में से मानस जप का प्रयोग करना चाहिए जिससे शीघ्र लाभ मिलेगा।

दूसरे 2 जप निम्न हैं।

1. सगर्भ जप- जिस जप को करते समय प्राणायाम किया जाता है वह जप सगर्भ जप कहलाता है।

2. अगर्भ जप- जिस जप के पहले एवं अंत में प्राणायाम किया जाए वह जप अगर्भ जप कहलाता है।

मंत्र जप का प्रयोग मंत्र साधना में करना ही चाहिए, परंतु इसका प्रयोग तंत्र एवं यंत्र साधना में भी बहुत महत्व रखता है। जपों का फल भी जैसे किया जाता है, उसी आधार पर मिलता है।

मनुष्य को शीघ्र सिद्धि प्राप्ति के‍ लिए यह जानकारी दे दें कि वाचिक जप एक गुना फल प्रदान करता है, उपांशु जप सौ गुना फल देता है। यह जानना बहुत जरूरी है कि मानस जप हजार गुना फल देता है।