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कवि सूरदास के पद
प्रस्तुत हैं कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीला का अद्भुत वर्णन। दाऊ बहुत खिझायोमैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥ ***********भई सहज मत भोरीजो तुम सुनहु जसोदा गोरी।नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी॥हौं भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी।रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।जब गहि बांह कुलाहल कीनी तब गहि चरन निहोरी॥लागे लेन नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी।सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी॥ ****** कौन तू गोरीबूझत स्याम कौन तू गोरी।कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥ ************हरि पालनैं झुलावैजसोदा हरि पालनैं झुलावै।हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥ *********मुख दधि लेप किएसोभित कर नवनीत लिए।घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥