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Written By ND

अमृता शेरगिल : रंग और सौन्दर्य का संगम

अदभुत चितेरी पर रचा गया महाग्रंथ

Amrita Shergil | अमृता शेरगिल : रंग और सौन्दर्य का संगम
विनोद भारद्वाज
ND
पिछले दिनों राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहाल, जयपुर हाउस, नई दिल्ली में 'अमृता शेरगिल : सेल्फ-पोर्ट्रेट इन लैटर्स एंड राइटिंग्स' पुस्तक का विमोचन भारतीय कला साहित्य की दुनिया में एक बड़ी घटना है। अमृता शेरगिल के चित्रों का एक विशाल समूह भी जयपुर हाउस में ही है। आठ सौ से ऊपर पृष्ठों के इस महाग्रंथ को पाठकों की सुविधा के लिए दो खंडों में कर दिया गया है।

तूलिका द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का संपादन, परिचय और व्याख्या सुपरिचित कलाकार विवान सुंदरम ने की है। अमृता शेरगिल (1913-41) की बहन इंदिरा के बेटे विवान चित्रकार और इंस्टॉलेंशन आर्टिस्ट के रूप में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान बना चुके हैं लेकिन इस ग्रंथ के काम में वह तीस साल से लगे हुए थे। इस ग्रंथ के डिजाइन का काम ही चार साल से चल रहा था और बहुत से बदलाव डिजाइनिंग के दौरान भी हो रहे थे।

प्रमुख चित्रकार गुलाम मोहम्मद शेख ने पुस्तक के विमोचन के अवसर पर ठीक ही कहा कि यह काम एक पुरातात्विक खुदाई की तरह है। इन पत्रों को पढ़ते हुए महसूस होता है कि अमृता शेरगिल के पास कला का एक एजेंडा था और यह एजेंडा आज के कलाकारों की सोच और सरोकारों से भी जुड़ा हुआ है।

अमृता शेरगिल के पिता सरदार उमराव सिंह एक दार्शनिक, फोटोकार, चिंतक, क्रांतिकारी सभी कुछ थे। अमृता की माँ सारी एतोएनेते हंगेरियन थीं। अमृता गर्भस्थ लाहौर में हुई थीं और उनका जन्म हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में । अट्ठाईस साल की छोटी सी जिंदगी में उन्होंने आधुनिक भारतीय कला की बुनियाद में एक निर्णायक भूमिका निभाई।

जीवन का आधे से भी कुछ अधिक समय उन्होंने यूरोप में बिताया पर उनकी कला ने अंत में पिकासो, मातीस आदि महान पश्चिमी कलाकारों की दुनिया को छोड़कर अजंता और भारतीय लघुचित्र कला की समृद्ध परंपरा से एक सार्थक रिश्ता बनाया। पश्चिमी कला से अमृता का समय पर मोहभंग हो गया और पेरिस में कला के प्रशिक्षण और पर्याप्त सफलता के बाद उन्होंने भारतीय कला और जीवन से एक अलग तरह का रिश्ता बना लिया।

रेखांकनों, जलरंग चित्रों के अलावा अमृता शेरगिल के 172 तैल चित्र हमें बताते हैं कि भले ही इस अद्भुत चितेरी ने उम्र कम पाई पर काम इतना अधिक और अच्छा किया कि वह आज आधुनिक भारतीय कला के इतिहास की 'मास्टर' कलाकारों में गिनी जाती हैं। अमृता शेरगिल का निजी जीवन भी बिंदास और बोहेमियन था और लाहौर में अचानक उनकी मृत्यु का रहस्य आज भी पूरी तरह से खुल नहीं पाया है। पंडित नेहरू अमृता से मिले भी थे और उनके प्रशंसक भी थे।

विवान सुंदरम का जन्म 1943 में शिमला में हुआ था यानी तब तक उनकी मौसी का निधन हो चुका था । वर्ष 1948 में हंगरी मूल की उनकी नानी ने आत्महत्या कर ली। नाना की स्मृति धीरे-धीरे जवाब देने लगी। उमराव सिंह बहुत अच्छे फोटोकार भी थे। वह अपने घर के सदस्यों की ही तस्वीरें खींचते थे लेकिन आज इन्हीं तस्वीरों की अद्भुत आर्काइव ने अमृता शेरगिल के 260 से अधिक पत्रों, कुछ लेखों, डायरी के पन्नों आदि को और भी नया विस्तार दे दिया।

वर्ष 1972 में 'मार्ग' पत्रिका के ऐतिहासिक अमृता शेरगिल विशेषांक में अमृता शेरगिल की कुछ चिट्ठियों ने कलाप्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया था पर उन दिनों विवान ने उन पत्रों के निजी संदर्भों को संपादित कर दिया था। लेकिन इस पुस्तक में उन्होंने मूल पत्रों को संपादित नहीं किया है। पुस्तक के दाहिने पन्ने पर पत्र, लेख आदि हैं और बाईं ओर टिप्पणियाँ, संदर्भ-संकेत, पेंटिंग, रेखांकन, मूल पत्रों की कुछ अनुकृतियाँ, फोटोग्राफ टीकाएँ आदि हैं बल्कि एक बार तो इस पुस्तक के श्वेत-श्याम अद्भुत छायाचित्रों को देखने के स्वतंत्र रचनात्मक आनंद के रूप में भी लिया जा सकता है।

फिल्मकार कुमार शाहनी लंबे समय तक अमृता शेरगिल पर फिल्म बनाने का अधूरा सपना देखते रहे। उस प्रोजेक्ट के लिए भी विवान सुंदरम ने बड़ी रिसर्च की थी। पेरिस, बुडापेस्ट, लाहौर, शिमला, सरैया, (गोरखपुर) आदि जगह अमृता शेरगिल के जीवन का हिस्सा थीं। सलमान रुश्दी ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है।

अँगरेजी, हंगेरियन, फ्राँसीसी भाषाओं में चिट्ठियाँ लिखने वाली अमृता ने एक बार अपने पिता को अपनी सफाई में हिंदी में एक पंक्ति लिखी थी- 'मैं कोई ऐसी बात नहीं कहूँगी या करूँगी जिससे आपको दुख पहुँचे।' सलमान रुश्दी ने इस पंक्ति को अपनी भूमिका में उद्धृत किया है। यूरोपीय बोहेमियन जिंदगी जीने वाली अमृता अक्सर भारतीय संस्कारों और सोच से संघर्ष करने लगती थीं और यह संघर्ष उनकी कला में भी है।