आलोक श्रीवास्तव की रचना 6 : ख़्वाब तुम्हारे लेकर
झिलमिलाते हुए दिन रात हमारे लेकर,
कौन आया है हथेली पे' सितारे लेकर.
हम उसे आंखों की देहरी नहीं चढ़ने देते,
नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे लेकर.
रात लाई है सितारों से सजी कंदीले,
सरनिगूं1 दिन है धनक वाले नज़ारे लेकर.
रात, शबनम से भिगो देती है चहरा-चहरा,
दिन चला आता है आंखों में शरारे लेकर.
एक दिन उसने मुझे पाक नज़र से चूमा,
उम्र भर चलना पड़ा मुझको सहारे लेकर.
1. नतमस्तक