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Last Updated : शनिवार, 12 अगस्त 2023 (15:50 IST)

आजादी के 77 साल में बैंकों की विकासगाथा, UPI व Digitalization से आई क्रांति

डिजिटल नहीं होते बैंक तो ग्राहकों की लगती मीलों लंबी कतारें

आजादी के 77 साल में बैंकों की विकासगाथा, UPI व Digitalization से आई क्रांति - Development story of banks in 77 years of independence
15th August Independence Day: आजादी के बाद भारत ने जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा तरक्की की उनमें बैंकिंग सेक्टर भी शामिल था। आजादी के समय भारत में यूं तो 12 बड़े बैंक कार्य कर रहे थे लेकिन ये सभी बिखरे बिखरे से थे। भारतीय पैसों के मामले में पूरी तरह सूदखोरों पर निर्भर थे। जो पैसा उधार तो कम देते थे लेकिन ब्याज में मूल का कई गुना वसूल लेते थे। सूदखोरों की लूट से परेशान जनता को राहत देने के लिए बने भारतीय बैंकिंग सेक्टर ने देश में दिन दूती रात चौगुनी गति से तरक्की की। बदलते समय के साथ हर मोबाइल में बैंकिंग एप और यूपीआई के माध्यम से अपनी जगह बनाई।
 
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया : रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है। यह केंद्रीय बैंक भारत में बैंकिंग प्रणाली भी संचालित करता है। 1935 में रिजर्व बैंक की स्थापना रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट 1934 के अनुसार हुई थी। 1938 में RBI ने सबसे पहले 5 रुपए का नोट जारी किया। बाद में इसी वर्ष 10, 100, 1000 और 10,000 रुपए के नोट जारी किए गए। 1940 में 1 रुपए का नोट जारी हुआ और फिर 1943 में 2 रुपए का नोट जारी कर दिया गया।
 
आजादी से पहले आरबीआई स्वतंत्र बैंक हुआ करता था लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। पूरे भारत में रिज़र्व बैंक के कुल 29 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। बैंक का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। मौद्रिक नीति तैयार करना, उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना आदि महत्वपूर्ण कार्य रिजर्व बैंक के ही जिम्मे हैं। मुद्रा जारी करना, उसका विनिमय करना और परिचालन योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना भी RBI का काम है। आज भी देश में जारी हर नोट पर रिजर्व बैंक के गर्वनर के साइन होते हैं।
 
क्या है RBI की मुद्रा वितरण व्यवस्था : रिज़र्व बैंक अहमदाबाद, बेंगलुरू, बेलापुर, भोपाल, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जम्मू, कानपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली, पटना और तिरूवनंतपुरम स्थित 19 निर्गम कार्यालयों तथा कोच्चि स्थित एक मुद्रा तिजोरी के माध्यम से मुद्रा परिचालनों का प्रबंधन करता है।
 
बैंकों का राष्ट्रीयकरण : 1 जनवरी, 1949 को भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। कमर्शियल बैंकों को भारतीय बैंकिंग प्रणाली की रीढ़ की हड्डी कहा जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक का इन पर नियंत्रण रहता है। जुलाई 1969 में देश के 50 करोड़ रुपए से अधिक जमा राशि वाले प्रमुख 14 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण हुआ। इसी तरह 200 करोड़ रुपए से अधिक जमा राशि वाले और 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण अप्रैल 1980 को कर दिया गया।
 
राष्ट्रीयकरण से पूर्व सभी वाणिज्यिक बैंकों की अपनी अलग और स्वतंत्र नीतियां होती थीं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले किसानों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का हाल बेहाल था। हालांकि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद देश में सभी वर्गों के लोगों का विकास हुआ। 
 
बैंकों का आधुनिकीकरण : लगभग 30 साल बाद देश में प्राइवेट बैंकों का दौर शुरू हुआ। इसके साथ ही बैंकों का आधुनिकीकरण भी हो गया। पहले बैंकों का कंप्यूटरीकरण हुआ। फिर बैंकों के डिजिटलाइजेशन ने भारत के बैंकिंग सैक्टर को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया। मोबाइल से पैमेंट ने बैंकों की भीड़ कम कर दी। जैसे-जैसे प्राइवेट बैंक तरक्की करते गए बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों का दबदबा घटता चला गया। इधर बैंकों में तकनीक के प्रवेश ने भी प्राइवेट  बैंकों को  मजबूती दी। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, बैंकिंग एप्स से लेकर यूपीआई पेमेंट तक बैंकिंग आधुनिक होती चली  गई।
 
ATM ने आसान की बैंकिंग : ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम मशीन) और एटीएम कार्ड की बदौलत भारत में एक नई क्रांति आई। भारत में 1987 में देश का पहला एटीएम शुरू हुआ था। इसे मुंबई में HSBC बैंक ने लगाया था। 2000 आते-आते देशभर में एटीएम से नकद निकालने का चलन आम हो गया। इसने ग्राहकों के साथ ही बैंकों का भी काम आसान कर दिया। पहले बैंकों से कैश निकालने के लिए लोगों को घंटों परेशान होना होता था। एटीएम अब 24 घंटे खुले   रहते हैं। अत: आवश्यकतानुसार, कभी भी पैसा निकाला जा सकता है। वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक देश में सबसे बड़ा एटीएम सुविधा प्रदाता है। NFS नेटवर्क के तहत जनवरी 2022 तक देशभर में करीब 2 लाख 55 हजार एटीएम हैं।
 
पूर्व बैंकर श्रीदयाल काला ने बताया कि बैंकिंग सेक्टर में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग बढ़ेगा। आजकल 90 प्रतिशत काम ऑनलाइन हो जाते हैं मात्र 10 फीसदी कामों के लिए बैंक जाना पड़ता है। पेमेंट ही नहीं लोन भी अब ऑनलाइन प्रोसेस होने लगे हैं। बैंकिंग नए दौर में पहुंच गई है। UPI से क्रेडिट कार्ड एड होने से VISA, Mastercard जैसी दिग्गज कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई है। 
 
1 मार्च 2023 तक देश में 12 सरकारी और 21 प्राइवेट बैंक है। सरकारी बैंकों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को  छोड़कर सभी की आजादी से पहले से काम कर रहे हैं। भारत में सबसे ज्यादा 22,219 शाखाएं एसबीआई की है। इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक (10,769), बैंक ऑफ बड़ौदा (9693), कैनरा बैंक (9677) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (9315)  का नंबर है। जबकि HDFC और ICICI दोनों की 5000 से ज्यादा ब्रांचेस हैं। 2022 में सरकारी बैंकों में 770000  कर्मचारी कार्यरत थे तो प्राइवेट बैंक में कर्मचारियों की संख्‍या बढ़कर 7,90,000 तक पहुंच गई।
 
बैंक पैसा कैसे कमाता है : बैंकों का प्रोडक्ट भी पैसा है और इनकम भी पैसा। यह पैसा करंट अकाउंट, सेविंग अकाउंट,  FD, RD में जमा लोगों का पैसा है। यही बैंक की पूंजी है। बैंकों के पास सस्ता पैसा कासा (करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट) से आता है। इस पर इन्हें कम ब्याज लगता है। जिस बैंक के पास जितने अधिक कासा अकाउंट है उसे उतना ही फायदा है। कासा पर कम ब्याज देना होता है जबकि लोन देने पर ज्यादा ब्याज मिलता है। जमा और लोन के इसी खेल से होने वाला लाभ बैंकों की कमाई है।
 
सरकारी से आगे निकले प्राइवेट बैंक : 2005 में सरकारी बैंकों में लोगों को ज्यादा भरोसा था। कुल जमा का 85 प्रतिशत इन बैंकों के पास था। इस पैसे को लोन पर देकर यह बैंक तगड़ा मुनाफा कमाते थे। धीरे धीरे प्राइवेट बैंक बढ़ने लगे। लोगों को भरोसा भी प्राइवेट बैंकों में बढ़ने लगा। सरकारी बैंक अभी भी आगे हैं लेकिन धीरे धीरे प्राइवेट बैंक आगे निकल रहे हैं। मार्केट कैप की बात की जाए तो HDFC, ICICI और SBI देश के 3 सबसे बड़े बैंक हैं।  
 
असेट क्वालिटी मामले में भी प्राइवेट बैंकों का परफॉर्मेंस सरकारी से बेहतर है। सरकारी बैंकों का पैसा प्राइवेट की अपेक्षा ज्यादा डूबता है। रिकवरी के मामले सरकारी बैंकों की अपनी सीमा है। प्राइवेट बैंक अपना पैसा नहीं छोड़ती, वसूली के लिए हरसंभव प्रयास करती है इसलिए उसका NPA सरकारी की अपेक्षा कम है। प्राइवेट बैंक मिनिमम 10 हजार चार्जेस ज्यादा लेती है। खर्चे कम है। लोन के मामले में भी लोगों का भरोसा प्राइवेट बैंकों में बढ़ रहा है। इस तरह इनका प्राफिट हमेशा ज्यादा ही रहती है।
 
क्या है अंतर : पूर्व बैंक कर्मी श्रीदयाल काला कहते हैं कि सरकारी और प्राइवेट दोनों ही बैंक समान तकनीक इस्तेमाल कर रहे हैं। अंतर दोनों के क्लाइंट बैस का है। प्राइवेट बैंक का फोकस बड़े खातों पर है तो सरकारी बैंकों के पास जीरों बैलेंस खातों की भरमार है। उस पर सरकार का प्रेशर है। अगर यह प्रेशर खत्म हो जाए तो दोनों में कोई अंतर नहीं  रहेगा।
 
UPI ने बदली बैंकिंग : NPCI ने डिजीटल इंडिया ने तहत 2016 में यूपीआई पेमेंट की शुरुआत की थी। यह एक प्रकार का एक पेमेंट मेथर्ड है। इसमें यूपीआई आईडी के माध्यम से कही भी कभी भी पेमेंट कर सकते हैं। 2016 में नोटबंदी का  इसे फायदा मिला। 2017 में गूगल और फोन पे को अ‍नुमति मिली। कोरोना काल में यूपीआई हर मोबाइल तक पहुंच गया। 2022 में भारत डिजिटल पेमेंट के मामले में नंबर 1 बन गया। अब दुनिया के कई देश भारत की इस तकनीक को अपनाना चाहते हैं।
 
77 सालों में भारतीय बैंकों की विकास गाथा वाकई में हैरान करने वाली है। अगर बैंकों का डिजिटलाइजेशन नहीं हुआ होता तो आज बैंकों के सामने कैश निकालने के लिए लंबी-लंबी कतारें दिखाई देती। बैंककर्मी पैसे जमा करने में भी व्यस्त रहते और लोगों के लिए लोन लेना भी काफी मुश्किल होता। बैंकिंग में लोगों का कितना समय बर्बाद होता इसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती। बहरहाल इस क्रांति ने भारतीय बैंकिंग की दिशा ही बदल दी।
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