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मन की गली
- रेखा मैत्र
जब मन गलियारों में सफर करता है, तब आदमी बड़ा अकेला होता है! सुरंग-सी रेलगाड़ी उसमें सवार एकाकी दूर तक फैली खामोशी पटरी-सी बिछी होती है! चलती रेलगाड़ी की तरहघटनाएं तब आती-जाती हैंअपनी ही बातें, अपने तक आती हुई; बड़ी साफ दिख पड़ती हैं! आदमी रह जाता है घटनाओं का तटस्थ साक्षी! केवल तटस्थ साक्षी... '
मन की गली' काव्य संग्रह से