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सुपथ वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि आग्नेय कोण में ऊंची व वायव्य कोण एवं उत्तर दिशा में नीची है तो ऐसी भूमि को वास्तुशास्त्र में सुपथ वास्तु कहा गया है। ऐसी भूमि पर भवन निर्माण करना शुभ माना गया है।
स्थंडिल वास्तु, अगले पन्ने पर...
स्थंडिल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के नैऋत्य कोण की भूमि ऊंची एवं आग्नेय, वायव्य एवं ईशान कोण की भूमि नीची है तो ऐसी भूमि पर रहने वाले लोगों में क्रिएटिविटी बढ़ जाती है। नए-नए प्रयोग और नए-नए विचारों का जन्म होता है। ऐसी भूमि पर भवन बनाकर रहने वाले लोगों में लेखन, चित्रकला, अभिनय आदि में रुचि रहती है।
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अर्गल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि का नैऋत्य कोण एवं दक्षिण दिशा के मध्य नीची भूमि हो एवं उत्तर दिशा एवं ईशान कोण के मध्य ऊंची भूमि हो तो यह भूमि अर्गल वास्तु के अंतर्गत शुभ प्रभाव वाली मानी गई है। यह भूमि भूस्वामी के कष्ट एवं महापापों को नष्ट कर देती है। ऐसी भूमि पर अगर मंदिर बनाया जाए तो वह सिद्ध मंदिर होगा।
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पुण्यक वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा में ऊंची और पूर्व एवं ईशान कोण में नीची है तो ऐसी भूमि वास्तु शास्त्र अनुसार पुण्यक वास्तु के अंतर्गत आती है।
यह भूमि भवन निर्मण के लिए शुभ है किंतु यह भूमि आपकी विचारधारा को प्रभावित कर सकती है। निम्न प्रकार का विचार है तो निम्नतर होते जाएंगे। अत: इस पर निर्माण करते वक्त वास्तु का विशेष ध्यान रखें और विचार सकारात्मक रखें।
स्थावर वास्तु, अगले पन्ने पर...
चर वास्तु, अगले पन्ने पर...
चर वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान एवं वायव्य कोण और उत्तर दिशा की भूमि ऊंची तथा दक्षिण दिशा की भूमि नीची है तो यह चर वास्तु के अंतर्गत आती है। वास्तुशास्त्री से पूछकर ही इस भूमि पर भवन बनवाएं। हालांकि यह भूमि व्यवसाय के लिए उत्तम मानी गई है।
सुस्थान वास्तु, अगले पन्ने पर...
सुतल वास्तु, अगले पन्ने पर...
सुतल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के पूर्व दिशा की भूमि नीची तथा नैऋत्य एवं वायव्य कोण और पश्चिम दिशा की भूमि ऊंची है तो यह सुतल वास्तु कहलाएगी। वास्तुशास्त्री से पूछकर ही इस भूमि पर भवन बनवाएं। हालांकि यहां शासन-प्रशासन का भवन बनाना उत्तम होगा।
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रोगकर वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि का आग्नेय कोण एवं दक्षिण दिशा नीची और वायव्य कोण एवं उत्तर कोण ऊंचा है, तो यह रोगकर वास्तु के अंतर्गत आता है।
इस प्रकार के भूमि पर रहने वाले लोग हमेशा किसी न किसी रोग के शिकार होते रहते हैं और अंतत: किसी गंभीर रोग की चपेट में आ जाते हैं। अगर आपके भवन की भूमि या बनावट इसी प्रकार की है तो मकान के आग्नेय कोण में मुख्य द्वार का निर्माण करें जिससे रोगकर वास्तु दोष का बुरा प्रभाव खत्म हो जाएगा।
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श्येनक वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के आग्नेय कोण में भूमि नीची तथा नैऋत्य, ईशान और वायव्य कोण में भूमि ऊंची है तो यह श्येनक वास्तु के अंतर्गत है। यह वास्तु सभी प्रकार से अशुभ माना गया है। आग्नेय कोण को बगीचे के रूप में विकसित कर लेने से वास्तु दोषों से कुछ हद तक मुक्ति मिल सकती है।
शंडुल वास्तु, अगले पन्ने पर...
शंडुल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान कोण की भूमि ऊंची एवं आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य कोण की नीची है तो वास्तु शास्त्र के अनुसार इसे शंडुल वास्तु दोष कहते हैं। ऐसी भूमि पर वास्तु रचना करते समय भूमि को समतल कर लें अन्यथा ऐसी भूमि पर रहने वाली स्त्रियां संधि रोग से ग्रस्त रहेंगी।
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श्मशान वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की ईशान दिशा एवं पूर्व दिशा के बीच ऊंची भूमि तथा नैऋत्य कोण एवं पश्चिम दिशा में नीची भूमि है तो यह भूमि वास्तु शास्त्र अनुसार श्मशान भूमि कहलाती है। इस प्रकार की भूमि पर बने भवन में रहने वाला व्यक्ति भीषण संकट में फंस सकता है।
इस भूमि के वास्तु के कारण वंशवृद्धि रुक जाती है। साथ ही जीवित वंश भी नष्ट होने लग जाता है। ऐसी भूमि पर बने भवन का त्याग कर देना ही बुद्धिमानी है।
सम्मुख वास्तु, अगले पन्ने पर...
सम्मुख वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान, आग्नेय व पश्चिम दिशा में भूमि ऊंची एवं नैऋत्य कोण में नीची है तो इससे सम्मुख वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इस दोष से ग्रसित भवन में रहने वालों की आर्थिक दशा हमेशा दयनीय बनी रहती है। इस दोष को दूर करने के लिए अपने घर का मुख्य द्वार ईशान कोण में बनाएं एवं महालक्ष्मी की निरंतर आराधना करते रहें।
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स्वमुख वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के पश्चिम दिशा की भूमि नीची एवं ईशान, आग्नेय और पूर्व दिशा की भूमि ऊंची है तो इससे स्वमुख वास्तु का निर्माण होता है। ऐसी भूमि पर रहने वाले लोगों के पास स्थायी संपत्ति का सदैव अभाव रहता है। इस भूमि पर भवन निर्माण के पूर्व वास्तुशास्त्री की सलाह लें।
(समाप्त)