गुरुवार, 21 नवंबर 2024
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Written By स्मृति आदित्य

इन्द्रधनुषी रंगों की मोहक दुनिया है प्यार

इसे दिवस के नाम पर दिग्भ्रमित न कीजिए

इन्द्रधनुषी रंगों की मोहक दुनिया है प्यार -
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न जाने कौन-सा जादू है इन ढाई अक्षरों में कि पढ़ते, सुनते या बोलते ही रग-रग में शहद की मधुरता दौड़ने लगती है। जिसे हुआ नहीं उसकी हार्दिक इच्छा है कि हो जाए, जिसे हो चुका है वह अपनी सारी कोशिश उसे बनाए रखने में लगा रहा है। प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत, नेह, प्रीति, अनुराग, चाहत, आशिकी। ओह! कितने-कितने नाम। और अर्थ चरम गहनता के स्तर पर मोहक, मादक और मधुर। आज प्यार जैसा सुकोमल शब्द उस मखमली आत्मीयता का सहज अहसास नहीं कराता जो वह अतीत में कराता रहा है और आज जिसकी उससे अपेक्षा है।

जो इस विलक्षण सुकुमार स्निग्ध अनुभूति की नाजुक पगडंडियों से गुजर चुका है वही जानता है कि प्यार क्या है? कभी नर्म नन्ही हरी दूब का शीतल अभिस्पर्श है तो कभी शुभ्र चन्द्रमा की सौम्य ज्योत्सना। इस विराट आकाश को प्रिय के सान्निध्य में रहकर ही जाना जा सकता है कि कितनी मंदाकिनियाँ (आकाशगंगा) इसमें आलोडि़त हो रही हैं।

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सच्चा प्यार दैहिक आकर्षण कतई नहीं है, बल्कि इन्द्रधनुषी रंगों की मनमोहक दुनिया है प्यार। प्रिय की एक झलक मात्र देख लेने की 'गुलाबी' आकुलता है प्यार। 'उसकी' अनुभूति (अहसास) को स्मृ‍ति में लाने की केसरिया ललक है प्यार। उसकी आवाज सुनने को तरसते कानों की रक्तिम गुदगुदी है प्यार। उसके रूमाल की खुशबू में भीगा हुआ जामुनिया मन है प्यार।

उसकी मुस्कान के लाल छींटे पर दिल में गुलाल की उद्दाम लहरों का उठना है प्यार। उसके पास से गुजरने पर नीली-नीली धड़कनों का रुक जाना है प्यार। उसकी गहरी आँखों से झरती भूरि-भूरि प्रशंसा पर पसीने से सराबोर हो जाना है प्यार। उसकी बादामी फुसफुसाहट पर दिल में चहक उठने वाली चंचल चिड़िया है प्यार। उसके पहले उपहार से लजीली आँखों की बढ़ जाने वाली चमकीली रौनक है प्यार।

सूखे हुए फूल की झरी हुई पाँखुरी है प्यार। किसी किताब के कवर में छुपी चॉकलेट की पन्नी भी प्यार है और बेरंग घिसा हुआ लोहे का छल्ला भी। प्यार कुछ भी हो सकता है। कभी भी हो सकता है। बस, जरूरत है गहरे-गहरे और बहुत गहरे अहसास की। इतना गहरा कि उसकी पवित्रता का प्रकाश रोम-रोम से फूटकर बह निकले।

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प्यार वास्तव में इतना पवित्र होता जैसे हवन की सुगंधित समिधा। जैसे दुल्हन की कोमल हथेलियों पर सजी मेहँदी। इतना जीवंत और झंकृत मानो नवोढ़ा (नवविवाहिता) की कुमकुम से रचपच एड़ियों में रुनझुन करती चाँदी की मोटी पायल। प्यार का अर्थ सिर्फ और सिर्फ देना है। और देने का भाव भी ऐसा कि सब कुछ देकर भी लगे कि अभी तो कुछ नहीं दिया।

प्यार किसी को पूर्णत: पा लेने की स्वार्थी मंशा नहीं है, बल्कि सुशांत एकांत में एक-दूजे को देखते रहने की भोली इच्छा है प्यार। तंग कपड़ों में बाइक पर अपने साथी से लिपट जाना नहीं है प्यार, बस एक-दूसरे की मर्यादा का आदर करते हुए सुरक्षित घर पहुँचाने की सुशिष्ट चिंता है प्यार। उधार लेकर महँगे गिफ्ट खरीदना नहीं है प्यार, बल्कि अपनी कमाई से खरीदा भावों से भीगा एक सुर्ख गुलाब है प्यार। प्यार को और क्या उपमा दी जाए, वह तो बस प्यार है, उसे पनपने के लिए एक सभ्य परिवेश दीजिए। दिवस के नाम पर दिग्भ्रमित न कीजिए।