खंडूरी के सामने थी बड़ी चुनौती
चुनाव से मात्र कुछ महीने पहले भाजपा आलाकमान ने भुवनचंद खंडूरी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर बैठाया तो इसका सिर्फ एक मतलब था कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की उम्मीदों को जिंदा रखना और सत्ता में बरकरार रहना। शायद यही वजह रही कि भाजपा ने पूरे चुनाव अभियान को खंडूरी तक सीमित रखा और ‘खंडूरी हैं जरूरी’ का नारा दिया।यह बात दीगर है कि पार्टी को कांग्रेस के समक्ष खड़ा रखने वाले खंडूरी अपना चुनाव खुद हार गए लेकिन उन्होंने कड़ी टक्कर दी और अपनी प्रतिद्वन्द्वी से मात्र एक सीट ही पीछे रह गए।पार्टी के इस प्रदर्शन का भी श्रेय सेना में अधिकारी रहे 78 साल के खंडूरी को जाता है क्योंकि कांग्रेस की आसान जीत की संभावना जताई जा रही थी। चुनाव बाद सर्वक्षणों में भी कांग्रेस को काफी आगे बताया जा रहा था।बीते साल सितंबर में भाजपा आलाकमान और पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने रमेश पोखरियाल निशंक को हटाने और उनके स्थान पर खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। चुनाव से लगभग छह महीने पहले यह फैसला उस वक्त लिया गया, जब निशंक पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे।भाजपा ने पूरे चुनावी अभियान को इस बात पर केंद्रित रखा कि उत्तराखंड के विकास के लिए खंडूरी सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं और सरकार बनने की स्थिति में खंडूरी पार्टी की पहली पसंद बनेंगे, हालांकि वह अपनी कोटद्वार की सीट खुद गवां चुके हैं।उत्तराखंड की सभी सीटों पर कड़े मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही थी। कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिलने की उम्मीद थी, हालांकि ‘खंडूरी फैक्टर’ भाजपा के लिए संजीवनी बन गया और पार्टी कांग्रेस से महज एक सीटे पीछे रही। कांग्रेस को 32 तो भाजपा को महज 31 सीटें मिली हैं। दोनों पार्टियां बहुमत के लिए जरूरी 35 सीटों से पीछे रह गई और उन्हें सरकार बनाने के लिए किसी न किसी का सहारा लेना पड़ेगा।मुख्यमंत्री बनने के बाद खंडूरी ने लोकायुक्त कानून पारित कराया, जिसकी टीम अन्ना ने भी जमकर तारीफ की। इसे पार्टी ने चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा भी बनाया।भाजपा ने इस चुनाव में खंडूरी को अपने नेता के रूप में पेश किया। लेकिन कोटद्वार में कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नेगी ने सुयोनियोजित ढंग से खंडूरी के खिलाफ अभियान चलाया। नेगी ने लोगों से कहा कि चुनाव के बाद खंडूरी देहरादून चले जाएंगे और जनता की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं रहेगा।नेगी अपने चुनावी अभियान में कामयाब रहे। उन्होंने खंडूरी को 4,632 मतों के अंतर से पराजित किया। कोटद्वार में जातिगत समीकरण भी खंडूरी पर भारी पड़ा। नेगी समाज का दखल इस इलाके में काफी है और भाजपा के ही कुछ लोग खंडूरी के अभियान में बड़ी परेशनी बनें। (भाषा)