शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. चुनाव 2022
  2. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  3. न्यूज: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  4. Issue of Brahmins in Uttar Pradesh Election 2022
Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

UP में ब्राह्मणों का मुद्दा उछालकर भाजपा के 'जाल' में तो नहीं फंस गया विपक्ष

UP में ब्राह्मणों का मुद्दा उछालकर भाजपा के 'जाल' में तो नहीं फंस गया विपक्ष - Issue of Brahmins in Uttar Pradesh Election 2022
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार का शंखनाद हो चुका है। सभी दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियां बनाना शुरू कर दिया है। सबसे खास बात यह है कि इस बार चुनाव में चर्चा के केन्द्र में ब्राह्मण समाज है। अन्यथा कोई भी चुनाव हो दलित, पिछड़े और अल्पसंख्‍यकों की ही चर्चा ज्यादा होती है। सपा, बसपा समेत सभी विपक्षी दल ब्राह्मणों को लुभाने में जुट गए हैं। ये दल कहीं न कहीं भाजपा और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी के रूप में पेश करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।
 
बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने दावा भी कर दिया है कि राज्य के ब्राह्मण बसपा के साथ हैं और वे 2022 में भाजपा को यूपी की सत्ता से उखाड़ फेंकेंगे। बसपा ने अपने ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत ही अयोध्या में रामजी के दर्शन के साथ की थी। हालांकि ब्राह्मणों को लेकर भाजपा की 'चुप्पी' जरूर लोगों को आश्चर्य में डाल रही है। वहीं, सपा-बसपा में ब्राह्मणों को अपने खेमे में लाने की होड़ मची हुई है। कांग्रेस भी इस दौड़ में शामिल है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्‍यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया था, लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी से उसका समझौता हो गया था। हालांकि कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि बसपा महासचिव सतीश मिश्रा भाजपा के इशारे पर ही काम कर रहे हैं।
 
जानकार मानते हैं कि अयोध्या और राम के मुद्दे पर यूपी के ब्राह्मणों का बड़ा वर्ग भाजपा के साथ ही जाएगा। हालांकि यह हो सकता है कि बसपा या अन्य पार्टियां यदि ब्राह्मणों को टिकट देती हैं तो उन्हें जातिगत वोट अवश्य मिलेंगे। लेकिन, यह कहना कि ब्राह्मण मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं तो यह पूरी तरह सही नहीं है। ऐसा भी माना जा रहा है कि विपक्षी दल ब्राह्मणों का मुद्दा उछालकर एक तरह से भाजपा के जाल में फंस गए हैं। इसके पीछे जानकार तर्क दे रहे हैं कि इससे पिछड़े और दलितों का झुकाव भाजपा की ओर हो सकता है। 
 
यूपी की राजनीतिक नब्ज पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि भाजपा ब्राह्मणों के मामले बहुत ही चतुराई से काम कर रही है। भाजपा की ओर से इस संबंध में एक भी बयान नहीं आया है। शुक्ला कहते हैं कि विकास दुबे जैसे कुख्यात अपराधी को ब्राह्मणों के सम्मान से जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि विकास दुबे ने जिस पुलिस क्षेत्राधिकारी को मारा था, वह स्वयं मिश्रा (ब्राह्मण) थे। वे कहते हैं कि विकास दुबे ने जिन लोगों की हत्याएं की थीं, उनमें करीब 90 फीसदी लोग ब्राह्मण ही थे। दरअसल, ब्राह्मणों के नाम पर अपराधियों का महिमामंडन किया जा रहा है।  
शुक्ला कहते हैं कि यूपी चुनाव में सबसे बड़ी भूमिका पिछड़े वर्ग की होगी, जिसकी संख्‍या राज्य में सबसे ज्यादा है। यूपी में करीब 40 फीसदी आबादी पिछड़ों की हैं। पिछले चुनाव में भी भाजपा को सत्ता में लाने में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही थी। वास्तव में राजनीति दल मुद्दे नहीं तलाश कर पा रहे हैं। एक वक्त वह भी था जब जमीनी कार्यकर्ताओं से चर्चा कर मुद्दे तलाशे जाते थे। वही मुद्दे चुनाव में भी दिखाई पड़ते थे। 
 
राज्य में पिछड़े वर्ग की संख्‍या करीब 40 फीसदी है, जबकि 23 फीसदी के लगभग अगड़ों की संख्या हैं। इनमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण ही हैं। यही कारण है कि हर दल ब्राह्मणों को रिझाने में जुटा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि ब्राह्मण किसी एक पार्टी के पक्ष में झुकते हैं तो कई सीटों पर वे निर्णायक साबित हो सकते हैं। सपा और रालोद के गठजोड़ को भी कम करके नहीं आंक सकते क्योंकि सपा के साथ जहां यादवों का बड़ा वर्ग है, वहीं जाटों का झुकाव रालोद की ओर हो सकता है। हालांकि अभी चुनाव के लिए 6 माह से ज्यादा वक्त है और इस अवधि में कई समीकरण बन और बिगड़ सकते हैं। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 312 सीटें जीतकर इतिहास रचा था।