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Written By Author डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
Last Updated : गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017 (16:01 IST)

कर्जमाफी : राहुल गांधी की गलतबयानी

कर्जमाफी : राहुल गांधी की गलतबयानी - Rahul Gandhi, Uttar Pradesh assembly elections 2017
'27 साल यूपी बेहाल' की 'खटिया सभा' से लेकर गठबंधन तक राहुल गांधी उद्योगपतियों के कर्जमाफी का मुद्दा उठाते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बड़े उद्योगपतियों का हिमायती और अपने को गरीबों, किसानों का मसीहा साबित करने पर ही उनका पूरा जोर होता है। 
प्रत्येक जनसभा में वे नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने चुनिंदा 50 उद्योगपतियों का 1 लाख करोड़ से ज्यादा का ऋण माफ कर दिया। इस आरोप के माध्यम से वे नरेन्द्र मोदी की नकारात्मक छवि बनाने का प्रयास करते हैं। वे बताना चाहते हैं कि मोदी को गरीबों व किसानों की चिंता नहीं है। वे केवल 50 बड़े उद्योगपतियों की मलाई चाटते हैं।
 
इस आरोप के दूसरे पहलू में राहुल परोक्ष रूप से आत्मप्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि मैं किसानों के ऋण माफ करने की बात करता हूं। राहुल अपने को भी गरीबों की श्रेणी में दिखाना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने अपना फटा कुर्ता दिखाया था। केवल उप्र ही नहीं, अन्य राज्यों में ऐसी कोई जनसभा नहीं हुई जिसमें राहुल ने मोदी पर कर्जमाफी का आरोप न लगाया हो।
 
यह मानना होगा कि भाजपा ने राहुल के इस आरोप का जवाब देने में विलंब किया। राहुल पिछले कई महीनों से प्रत्येक अवसर पर यह आरोप दोहराते रहे हैं लेकिन भाजपा प्रवक्ताओं ने इसका माकूल जवाब नहीं दिया इसलिए सैकड़ों बार दोहराने से एक गलत बात भी सच जैसी दिखाई देने लगती है। राहुल के आरोप पर यह कहावत चरितार्थ हो रही थी।
 
अंतत: केंद्रीय वित्तमंत्री ने यह कमान संभाली। देर से ही सही और राहुल को ऐसा जवाब मिला कि वे खुद कटघरे में आ गए। अरुण जेटली ने दावे के साथ कहा कि 26 मई 2014 अर्थात जिस दिन मोदी सरकार ने शपथ ली थी, तब से लेकर आज तक देश में किसी भी उद्योगपति का 1 रुपया कर्ज भी माफ नहीं किया गया। राहुल को या तो जानकारी नहीं है या सब कुछ जानते हुए भी वे गलतबयानी कर रहे हैं।
 
जेटली के अनुसार यह मामला बिलकुल उल्टा है। संप्रग सरकार ने चुनिंदा बड़े उद्योगपतियों पर बेहिसाब मेहरबानियां कीं। उनको बड़े कर्ज दिए गए, कर्ज पर ब्याज बढ़ता जा रहा है, यह कर्ज किसानों की कर्जमाफी से बहुत ज्यादा था। इसका मतलब है कि संप्रग के कारनामों की परेशानी वर्तमान सरकार को उठानी पड़ रही है।
 
अब यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि भगोड़े विजय माल्या पर भी संप्रग सरकार बड़ी मेहरबान थी। उसका आर्थिक साम्राज्य उसी दौरान बना था। बताया जाता है कि मेहरबानियों के लिए माल्या ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री चिदंबरम को धन्यवाद का पत्र भी लिखा था जबकि वर्तमान सरकार के समय उस पर बकाये से ज्यादा रकम प्रवर्तन निदेशालय वसूल चुका है।
 
एक बनाम अनेक 'वे' चुनाव में जीत के लिए राजनीतिक दल अर्थात मार्ग तलाशते हैं। उप्र के मुख्यमंत्री अखिलश यादव ने इसके लिए आगरा एक्सप्रेस-वे पर विश्वास किया है। वे प्रत्येक भाषण में इसका उल्लेख करते हैं। 5 वर्षों की अपनी उपलब्धि गाथा में इसका उल्लेख सबसे ऊपर होता है। 
 
अखिलेश का दावा रहता है कि रिकॉर्ड समय में एक्सप्रेस-वे बनवा दी। यह बात अलग है कि कुछ दिन पहले एक नागरिक ने इसे लेकर न्यायपालिका में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि उस एक्सप्रेस-वे का काम बहुत अधूरा है, उसे उपलब्धि के रूप में पेश करना गलत है। न्यायपालिका ने इसे चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था, क्योंकि यह चुनाव से संबंधित मसला था।
 
यदि मान भी लें कि एक्सप्रेस-वे अखिलेश सरकार की उपलब्धि है तो वर्तमान केंद्र सरकार तो इस मामले में बहुत आगे है। ढाई वर्ष में उसकी 240 किमी एक्सप्रेस-वे पूरी होने को है। सड़कों का निर्माण पिछली सरकार के मुकाबले 2-3 गुना बढ़ गया है।
 
अखिलेश का आरोप, जेटली का जवाब
 
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव केंद्र सरकार पर पर्याप्त आर्थिक सहायता न देने का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन वित्तमंत्री इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं। अरुण जेटली के जवाब में दम भी नजर आता है। एक तो उनकी सरकार ने केंद्रीय सहायता में पहली बार राज्यों का हिस्सा इतना बढ़ाया है। अब 42 प्रतिशत पर राज्यों का हक दिया गया है। 
 
दूसरी बात यह कि सरकार वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों को हिस्सा देती है। 1 रुपया भी नहीं रोका जाता। केंद्र पर आरोप लगाना गलत है। ऐसा आरोप लगाने वाले अपनी विफलता छिपाना चाहते हैं। केंद्रीय ऊर्जामंत्री पीयूष गोयल भी कहते हैं कि राज्य सरकार को जितनी सहायता दी गई, वह उसका अधिकांश हिस्सा खर्च ही नहीं कर सकी।
 
वैसे चुनाव में इस प्रकार के मुद्दे अवश्य उठने चाहिए। इससे एक तो विकास को प्राथमिकता मिलेगी और जाति-मजहब के मुद्दे स्वत: ही पीछे हो जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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