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यूरो 2016 फुटबॉल में हिंसा और हुड़दंग

यूरो 2016 फुटबॉल में हिंसा और हुड़दंग - Violence in football
फ्रांस में जब यूरो कप फुटबॉल शुरू हो रहा था, तो आतंकवादी हमले की आशंका बनी हुई थी। पिछले साल नवंबर में आतंकवादी हमलों के दौरान पेरिस के एक फुटबॉल स्टेडियम को भी निशाना बनाया गया था। अमेरिका सहित कई देशों ने अपने नागरिकों को फ्रांस न जाने की चेतावनी भी दे दी। टूर्नामेंट शुरू होने के दो हफ्ते बाद आइसिस या अल कायदा की तरफ से तो कोई हमला नहीं हुआ, लेकिन फुटबॉल फैन्स ने इस आयोजन को हिंसा का गढ़ बना दिया।
 
यूरोप में जिस तरह फुटबॉल की परंपरा है, कुछ उसी तरह हुड़दंगियों की भी परंपरा है। इंग्लैंड खास तौर पर अपने फुटबॉल हुड़दंगियों की वजह से बदनाम है। लेकिन इस बार उसके फुटबॉल समर्थकों को रूसी हुड़दंगियों के गुस्से का निशाना बनना पड़ा। रूस और इंग्लैंड के बीच ग्रुप मैच से पहले दोनों टीमों के समर्थक भिड़ गए और इसमें रूस के समर्थकों ने मर्साई शहर में खूब तमाशा किया। कई लोगों को गहरी चोटें आईं और फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। रूस के 50 हुड़दंगियों को फ्रांस से निकाल दिया गया।
 
हिंसा के कई मामले : टूर्नामेंट शुरू होने के साथ ही हुई इस घटना ने पूरे यूरो कप पर असर डाला है। आए दिन हिंसा की खबरें आ रही हैं। क्रोएशिया और चेक रिपब्लिक के मैच के दौरान क्रोएशियाई समर्थकों ने स्टेडियम में जलती हुई आतिशबाजी फेंक दी और बुझाते वक्त इसमें मामूली विस्फोट हो गया। एक कर्मचारी बाल बाल बचा। फ्रांस और हंगरी के समर्थकों ने भी हंगामा किया और जर्मनी तथा यूक्रेन के बीच मैच से पहले भी दोनों देशों के समर्थक भिड़ गए।
 
फुटबॉल में हुड़दंग नई बात नहीं। इंग्लैंड के हुड़दंगी खास तौर पर फुटबॉल के दौरान दंगा करने के लिए बदनाम हैं। साल 1985 में यूरोपीय लीग के फाइनल में इंग्लैंड के लिवरपूल और इटली के युवेंटस टीमों के बीच मुकाबला था। यह मैच बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स के हेसेल स्टेडियम में खेला जाना था। मैच से एक घंटा पहले लिवरपूल के हुड़दंगियों की वजह से वहां जो भगदड़ मची, उसमें 39 फुटबॉल फैन्स की जान चली गई। इनमें से ज्यादातर इतालवी थे, जबकि 600 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। इस घटना के बाद इंग्लैंड के सभी क्लबों को पांच साल तक यूरोपीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से पाबंदी लगा दी गई। लिवरपूल को एक अतिरिक्त साल के लिए यह पाबंदी झेलनी पड़ी।
 
हुड़दंग और नस्ली भावना : इंग्लैंड में हुड़दंग के पीछे एक वजह नस्ली भेदभाव भी था। जिन टीमों ने अश्वेत खिलाड़ियों को शामिल करना शुरू किया, उन्हें इस हिंसा का शिकार होना पड़ा। तंग कपड़ों में सिर मुंडाए हुड़दंगियों की दूर से पहचान हो जाती थी। उन्होंने खास तौर पर अश्वेत लोगों को निशाना बनाया और उन पर फुटबॉल मैचों के दौरान हमले किए। धीरे धीरे दूसरे देशों में भी क्लबों के साथ हुड़दंगियों की टीम तैयार होने लगी। इनका संबंध आम तौर पर दक्षिणपंथी पार्टियों से होता है। ये पार्टियां और संगठन विदेशियों और अश्वेतों के खिलाफ हैं। जर्मनी के हुड़दंगियों ने 1998 में फ्रांस के एक पुलिस अधिकारी को इतना पीटा कि उसका ब्रेन डेड हो गया। इस घटना को जर्मनी के फुटबॉल जगत में काले धब्बे के तौर पर देखा जाता है। घटना के बाद पांच जर्मनों को सजा मिली।
 
लेकिन हाल के दिनों में सबसे खतरनाक रूस के फुटबॉल समर्थक दिखे हैं। अपने लीग क्लबों का समर्थन करने वाले युवा रूसी मैचों के दौरान और उससे पहले आए दिन हिंसक हो जाते हैं और तोड़ फोड़ करते हैं। यूरो 2016 के दौरान भी रूस के हुड़दंगियों से खास परेशानी हो रही है। घटना के बाद यूरोपीय फुटबॉल ने रूस के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं और उस पर 1 लाख 50 हजार यूरो का जुर्माना लगा दिया है। इसके अलावा रूस को यूरो कप से निष्कासित भी कर दिया गया है, लेकिन इस फैसले को निलंबित रखा गया है। रूसी फुटबॉल संगठन ने इसके खिलाफ कोई अपील नहीं की है।
 
फुटबॉल और राजनीति : फुटबॉल के दौरान हिंसा का राजनीतिक फायदा भी खूब उठाया जाता है। रूस पश्चिमी यूरोप का विरोधी देश माना जाता है। इस घटना का राजनीतिक और कूटनीतिक फायदा उठाते हुए हुड़दंगियों को राष्ट्रपति पुतिन से जोड़ दिया गया। ब्रिटेन के गार्डियन अखबार ने रिपोर्ट छापी है कि हुड़दंग करने वालों को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की शह मिली हुई है। रूसी राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन ने इस घटना की निंदा की है, पर पुतिन ने चुटकी भी ली है, “समझ में नहीं आता कि सिर्फ 200 रूसी फुटबॉल समर्थकों ने हजारों की संख्या वाले ब्रिटिश फुटबॉल समर्थकों को कैसे पीट दिया।”
 
हाल के दिनों में सुरक्षा की नजर से और फुटबॉल में हिंसा की किसी घटना को टालने के ख्याल से कई तरह के उपाय किए गए हैं। इनमें हथियारों या खतरनाक चीजों के साथ स्टेडियम में घुसने पर मनाही हो गई है। जो घोषित हुलिगन (हुड़दंगी) हैं, उन्हें स्टेडियम में नहीं जाने दिया जाता है। फुटबॉल के स्टेडियमों में सभी दर्शकों को सीट पर बैठना जरूरी है। पहले हजारों दर्शक खड़े होकर मैच देखते थे, जहां भगदड़ की ज्यादा संभावना होती थी।
 
अगला विश्व कप रूस में : बहरहाल यूरो 2016 की घटना के बाद रूस पर दबाव बढ़ गया है। आयोजकों का कहना है कि अगर दोबारा ऐसी घटना होती है, तो रूस को टूर्नामेंट से बाहर कर दिया जाएगा। दो साल बाद 2018 में रूस में फुटबॉल वर्ल्ड कप होना है। यूरोप के कई देशों ने अभी से कहना देना शुरू कर दिया है कि वे अपने फुटबॉल प्रेमियों को रूस न जाने की हिदायत देंगे। यह भी कहा जा रहा है कि अगर रूस के हुड़दंगी नहीं सुधरे तो उससे वर्ल्ड कप का आयोजन छीना जा सकात है।
 
यूरोपीय देशों के फुटबॉल प्रशासन को इस मामले पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। यूरोप का हर देश फुटबॉल का दीवाना है और यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की एक मजबूत कड़ी भी है। फुटबॉल के आयोजनों से करोड़ों की कमाई होती है। आयोजकों को फुटबॉल प्रेमियों की सुरक्षा का ख्याल रखना होगा।
 
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