शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By सीमान्त सुवीर

'कांटों की राह' पर कैसे करें ओलंपिक स्वर्ण की उम्मीद...

'कांटों की राह' पर कैसे करें ओलंपिक स्वर्ण की उम्मीद... - Rio Olympics, India, India's performance, PV Sindhu, Sakshi Malik
रियो ओलंपिक खेलों की खुमारी उतरने में अभी दो या चार दिन का और वक्त लगेगा...जब तक कि दो पदकवीर लड़कियों के गले में डलीं मालाओं के फूल सूख नहीं जाते, इसके बाद अगले ओलंपिक तक आप उनके सिर्फ नाम याद रखेंगे कि हैदराबाद की पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में रजत और हरियाणा के रोहतक जिले के एक गांव की लड़की साक्षी मलिक ने महिला कुश्ती में कांसे का पदक अपने गले में पहना था...इससे ज्यादा आपको कुछ याद नहीं रहने वाला है... 
आपको यह भी याद नहीं रहेगा कि 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ में 4 घंटे से ज्यादा लगातार दौड़ने वाली ओपी जैशा पानी न मिलने के अभाव में फिनिशिंग लाइन पर आकर बेहोश हो गई थीं और यह बेहोशी 3 घंटे तक चली...आप ये भी भूल जाएंगे कि केंद्रीय खेलमंत्री विजय गोयल अपने लवाजमे को लेकर ब्राजील के शहर रियो गए थे और खिलाड़ियों की समस्या सुलझाने की बजाय वे सेल्फी का आनंद लेते रहे, जिसकी वजह से उन्हें ओलंपिक अधिकारियों की चेतावनी तक मिली थी...
खेलों का कुंभ ओलंपिक जरूर खत्म हो गया और भारत के अब तक के सबसे बड़े ओलंपिक दल के 118 सदस्यों में से केवल दो खिलाड़ी पोडियम तक पहुंच पाए और दो पदक जीतने में सफल रहे। लंदन के पिछले ओलंपिक में हमने 6 पदक जीते थे और दावे किए जा रहे थे कि भारत रियो में 12 पदक तो जीतेगा ही, लेकिन जो परिणाम आए हैं, वे आप सबके सामने हैं। 
 
भारत की जर्सी पहनने के सफर से अनजान : ये सब भारत में ही संभव है कि जब खिलाड़ी ओलंपिक का पदक जीतता है तो उसकी कुंडली खंगाली जाती कि वो किन मुश्किल हालातों का सामना करने के बाद अपना गले में पदक सजाने में कामयाब हुआ है, लेकिन उसके पहले तक न तो किसी नेता का, न किसी सरकार का और न ही किसी उद्योगपति का ध्यान जाता है कि एक खेल प्रतिभा किन हालातों से गुजरकर भारत की जर्सी पहनने में सफल हुई है। 
 
भारत रहा 67वें स्थान पर : जो लोग पदक तालिका में आबादी के मान से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत को 67वें स्थान पर देखकर और महज एक रजत और एक कांस्य पदक टंगे रहने पर नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए यह बताना निहायत जरूरी है कि मेडल टेली में अमेरिका के कुल 121 पदक के साथ ब्रिटेन 67 पदक लेकर दूसरे नंबर पर रहा। ब्रिटेन का यह प्रदर्शन 2012 के ओलंपिक से बेहतर है, जो उसने अपने घर में आयोजित किया था, उसके बाद भी वो अमेरिका, चीन के बाद तीसरे नंबर पर था। 
 
पदक तालिका में ब्रिटेन के नंबर दो पर रहने का राज  : ब्रिटेन ने रातोंरात ऐसा क्या चमत्कार किया कि वो पदक तालिका में दूसरे नंबर पर आ गया? नहीं, नहीं... ये कोई चमत्कार नहीं था, बल्कि एक सुनियोजित ढंग से तैयारियों का फल उसे मिला। इसका सबसे बड़ा कारण ब्रिटेन की ओलंपिक समिति के अध्यक्ष की कुर्सी पर एक खिलाड़ी (सेबेस्टियन को) का होना है।

चार बरस पहले सेबेस्टियन ने सरकार को एक योजना सौंपी, जिसमें अगले ओलंपिक की तैयारियों का जिक्र था। सरकार ने इस योजना को मंजूरी दी और रियो ओलंपिक पर ब्रिटेन ने कुल 2 हजार 351 करोड़ रुपए की राशि खर्च की यानी उसे रियो का एक पदक करीब 48 करोड़ में पड़ा, जबकि भारत सरकार ने ओलंपिक पर केवल 800 करोड़ रुपए खर्च किए। 
 
कौन है नारायणा रामचन्द्रन  : आप तो भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष नारायणा रामचन्द्रन को भी नहीं जानते होंगे, जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और आईपीएल सट्‍टेबाजी में आरोपों से घिरे एन. श्रीनिवासन के छोटे भाई हैं। रियो ओलंपिक के पहले और न ही बाद में रामचन्द्रन का चेहरा कभी सामने आया। ठेठ गांव का बच्चा भी विराट, सचिन और धोनी के नाम को जानता होगा, लेकिन उसे ये नहीं पता होगा कि भारतीय ओलंपिक का मुखिया कौन है? ऐसे में आप कैसे सोच सकते हैं कि हमारे खिलाड़ी ओलंपिक के मंच पर पदक जीतें?  
 
पदक विजेताओं पर धनवर्षा : रियो में पदक जीतने वाली भारत की दोनों लड़कियों पर इनामों की बरसात हो रही है। इन दोनों ने तो अपनी आने वाली कई पीढ़ियों को उबार दिया लेकिन उन खिलाड़ियों क्या, जो आज भी बदहाली में किसी तरह अपने खेल के जुनून को कायम रख रहे हैं, इस उम्मीद में कि एक न एक दिन वो भी खेलों के कुंभ में डुबकी लगाएंगे और देश के सम्मान के लिए अपने गले को पदक से सजाएंगे...
 
24 रुपए सालाना में कैसे तैयार होंगे ओलंपिक चैम्पियन : हाल ही में खबर पढ़ी कि भारत में सरकारी स्कूल स्तर पर खेलों के नाम पर प्रत्येक छात्र को 2 रुपए महीना देने होते हैं यानी 24 रुपए सालाना...क्या 24 रुपए सालाना में आप ओलंपिक चैंपियन पैदा कर सकते हैं? ओलंपिक में खिलाड़ी का मुकाबला होता है, तब तमाम राष्ट्रीय मीडिया सवा सौ करोड़ लोगों की उम्मीदों की दुहाई देते हुए पदक की आस लगाता है तो कुछ लोग भावना में बहकर हवन करवाने के अलावा मंदिरों की शरण में पहुंच जाते हैं।
 
विमान यात्रा में भी भेदभाव :  जिन भारतीय खिलाड़ियों से हम पदक की आस लगाते हैं, उन्हें कैसी सुविधाएं दी जाती हैं, इसका पता धाविका दुती चंद की उस फेसबुक पोस्ट से भी लगता है, जिसमें उन्होंने रियो जाने के सफर के दौरान सौतेले व्यवहार का बखान किया। इस शिकायत भरी पोस्ट में दुती चंद ने बताया कि हैदराबाद से रियो की 36 घंटे की यात्रा में प्रबंधकों व अन्य को बिजनेस क्लास सीट दी गई लेकिन खिलाड़ियों को इकोनॉमी क्लास सीट से ही सफर करना पड़ा। वे इस सफर के दौरान इतनी 'सफर' हुई कि ठीक ढंग से नींद भी नहीं ले सकीं। यदि खिलाड़ियों के साथ ऐसा बर्ताव किया जाएगा तो ओलिंपिक में उनसे कैसे पदक की उम्मीद की जाए? 
 
औद्योगिक घराने प्रतिभाओं को गोद लें : होना तो यह चाहिए कि रियो ओलंपिक में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले वो खिलाड़ी जो बहुत कम अंतर से पदक की पायदान से फिसल गए, उन्हें देश के औद्योगिक घराने गोद लें और उनकी ट्रेनिंग और कोचिंग का खर्च वहन करें। यकीनन ऐसा करने में वे सफल हुए तो कोई हैरत की बात नहीं कि टोक्‍यो ओलंपिक में भारत की पदक संख्या न बढ़े...। 
 
देश में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं, जिनके घर पर काम करने वाले मुलाजिमों की तनख्वाह पर वे जितना खर्च करते हैं, उससे कहीं कम खर्च में वे किसी खेल प्रतिभा का भाग्य बदलने की कूवत रखते हैं। यदि वाकई ऐसा होता है तो भविष्य में पदक तालिका में भारत का नाम भी सम्मानजनक पायदान पर होगा। 
 
तिरंगा यात्रा  से क्या हासिल होगा : हाल ही युवाओं में देशभक्ति का जज्बा जगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने देश में तिरंगा यात्रा निकालने का आव्हान किया। उनके इस आव्हान के बाद सांसद, विधायक और स्थानीय नेता मोटरसाइकल पर युवाओं की टोली लेकर तिरंगा यात्रा निकाल अपनी 'शक्ति' का प्रदर्शन कर रहे हैं। सवाल यह है कि बेवजह पेट्रोल की बर्बादी, आम लोगों को परेशानी और हुड़दंगबाजी से क्या उनमें देशभक्ति की भावना जागेगी? शायद क्षणिक, ठीक उसी तरह जैसे 26 जनवरी और 15 अगस्त को पूरा राष्ट्र देशभक्ति से ओतप्रोत हो जाता है और उसके बाद सब कुछ शांत... 
 
ऐसे जागेगी असली देशभक्ति : असल में देशभक्ति की भावना तो तब जगती है, जब भारत का कोई खिलाड़ी ओलंपिक का फाइनल खेल रहा होता है और उसकी जीत पर पूरी दुनिया के सामने हमारे राष्ट्रगान के साथ-साथ मंद गति से तिरंगा ऊंचा होता चला जाता है। इस तरह के विजयी लम्हों से देश के युवाओं में राष्ट्रभक्ति की भावना का संचार होता है और इस सम्मान में खिलाड़ी के साथ पूरा देश खुद-ब-खुद खड़ा हो जाता है। क्या चार बरस बाद टोक्यो ओलंपिक में हम इस प्रसंग को पोडियम पर देखेंगे? 
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