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सोमवार, 10 सितम्बर 2007 (21:58 IST)
केन एस्टन : 'रेड' और 'यलो' कार्ड के जनक
- वीरेन्द्र ओंकार इंग्लैंड की सेना में ले. कर्नल थे केन एस्टन और दूसरे महासमर में एशिया उनकी कर्मस्थली था। अधिकांश समय सेना में गुजार चुके एस्टन स्वाभाविक रूप से अनुशासन प्रिय थे और फुटबॉल के मैच में रैफरी की भूमिका भी निभा लेते थे।
इस भूमिका को निभाते हुए उनका सोच कुछ इस प्रकार का था- 'इस खेल को टू-एक्ट प्ले जैसा होना चाहिए, जिसमें स्टेज (मैदान) पर 22 खिलाड़ी हों, जिनका डायरेक्टर रैफरी हो। इस नाटक में कोई स्क्रिप्ट नहीं, कोई प्लाट नहीं, नाटक के अंत का किसी को पता नहीं, फिर भी इसे होना चाहिए मनोरंजन से भरपूर।'
अपने दायित्व का निर्वाह करते समय एस्टन ने महसूस किया कि वैसे तो इस खेल (फुटबॉल) में खिलाड़ियों का आपस में टकराना स्वाभाविक है, परंतु कई बार इस स्वाभाविकता की आड़ में खिलाड़ी एक-दूसरे को सुनियोजित तरीके से बाधा पहुँचाते हैं।
ऐसे में यदि रैफरी खेल पर या खिलाड़ियों पर नियंत्रण रख पाने में असफल रहता है तो खेल का स्वरूप ही बदल जाता है तब खेल, खेल न रहकर युद्ध का मैदान हो जाता है। एस्टन हमेशा यह सोचा करते थे कि खिलाड़ियों को नियंत्रित रखने का कोई ऐसा उपाय होना चाहिए, जिससे खिलाड़ी अपने आप पर संयम रख सकें।
'एक बार जब मैं केनिंग्सटन हाई स्ट्रीट पर अपनी कार से जा रहा था।' -एस्टन कहते हैं 'तब ट्रैफिक सिग्नल के लाल हो जाने पर मुझे रुकना पड़ा' और मानो न्यूटन ने सेब के जमीन पर गिरने से गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पा लिया।
एस्टन मन ही मन आर्किमिडीज के से यूरेका, यूरेका रटते हुए आगे बढ़ लिए। पीली लाइट यानी संयम रखें और लाल लाइट यानी रुक जाएँ मतलब बाहर। केन एस्टन ने 1967 में यलो एवं रेड कार्ड की योजना बनाई।
1963 में एफए कप फाइनल में केन ने अंतिम बार रैफरशिप की। 1970 में फीफा ने उन्हें रैफरीज कमेटी का चेयरमैन बनाया तब उन्हें अपनी योजना को मूर्त रूप देने का अवसर मिला।
फीफा द्वारा इसे स्वीकार कर लिया गया तथा रैफरियों के हाथ में खिलाड़ियों को नियंत्रित करने के संसाधन (रेड व यलो कार्ड) आ गए। 23 अक्टूबर 2001 में 86 वर्ष की पकी उम्र में केन एस्टन का निधन हुआ।