मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सिंहस्थ 2016
  3. प्रमुख धार्मिक स्थल
  4. Religious Place Bhartahari ki gufa
Written By WD

रहस्यमयी है राजा भर्तृहरि की गुफा

रहस्यमयी है राजा भर्तृहरि की गुफा - Religious Place Bhartahari ki gufa
डॉ. राजशेखर व्यास 

कालिकाजी के निकट उत्तर में खेत से एक फर्लांग की दूरी पर श्री भर्तृहरि की गुफा है। बड़ा शांत और रम्य स्थल है। यहां भर्तृहरि की समाधि है। परम तप: पूत महाराज भर्तृहरि सम्राट विक्रम के ज्येष्ठ भ्राता थे। ये संस्कृत-साहित्य के प्रकांड पंडित थे। उनका रचित 'शतकत्रय ग्रंथ' अपनी जोड़ का एक ही है। राग से विराग लेकर उन्होंने नाथ संप्रदाय की दीक्षा ले ली थी। पिंगला, पद्माक्षी आदि उनकी पत्नी थीं। पिंगला पर अधिक प्रेम था। उसकी अकाल मृत्यु से भर्तृहरि को अत्यंत वैराग्य उत्पन्न हो गया था। यह उसी महामहिम महामान की गुफा है।







समाधि स्थल के पश्चात अंदर जाकर एक संकुचित द्वार से जीने के द्वार गुहा में प्रवेश करने का मार्ग है। यहां योग-साधन करने का स्थल धूनी है। इसी तरह अंदर ही अंदर चारों धाम जाने का एक मार्ग बतलाया जाता है, जो बंद है। इसी तरह काशी के निकट चुनारगढ़ नामक पहाड़ी-स्थान है। इस टीले पर भी गुफा है, वहां भी भर्तृहरि का स्थान बतलाया जाता है और वहां की गुफा के अंदर एक मार्ग है, जो उज्जैन तक आने का बतलाया जाता है। गुफा के अंदर ही पत्थर का एक पाट टूटा हुआ लटकता हुआ दिखाई देता है। यह भर्तृहरि ने हाथ का टेका लगाकर रोक दिया था। यह कहा जाता है कि दक्षिण में गोपीचंद की मूर्ति है। पश्चिम की तरफ काशी जाने का मार्ग है। शिप्रा नदी के तट पर इस स्थान की शोभा देखने योग्य ही है। इस समय 'नाथ' संप्रदाय के साधुओं के अधिकार में है। यहां कुछ मूर्तियां, जैसे खंबे जैनकालीन मालूम होते हैं। संभवत: पीछे यह जैन-विहार भी रहा हो। अंदर कुछ मूर्ति भी जैन-चिह्न सहित हैं। आजकल यहां प्रवेश के लिए शुल्क लिया जाने लगा है। सिंहस्थ के दौरान इस गुफा में प्रवेश निषेध रहेगा। लेकिन राजा भर्तहरि की स्मृतियों को संजोए यह गुफा कई रहस्य बयां करती है। 



 
गुफा के पास ही ऊपर खेत में एक प्राचीन मुसलमानी मकबरा है। कहते हैं कि पहले कोई प्रसिद्ध धनाढ्य तुर्की सौदागर यहां आकर मर गया था। उसी की स्मृति में उसने अन्य साथियों ने इसे बनवाया है, जो कि 4-5 सौ वर्ष का पुराना मालूम होता है। गुफा से थोड़ी दूरी पर 'पीर' मछन्दर की 'कब्र' नाम से विख्यात टीले पर सुन्दर दरगाह बनी हुई है। मालूम होता है कि यह गोरखनाथ अथवा मत्स्येन्द्र की समाधि होगी। 'पीर मछन्दर' नाम से यही ध्वनि निकलती है।

नाथ-संप्रदाय के जो गद्दीधर होते हैं, उन्हें आज भी पीर कहा जाता है। संभव है ये भी वैसे ही हों। परंतु पीछे मु‍स्लिम काल में ‍य‍वनाधिकार में यह स्थान चला गया। स्थान बहुत रम्य है। यह शिप्रा नदी हरित क्षेत्र के निकट बहते हुए इस टीले के पास अपना सफेद आंचल बिछाए हुए आसपास हरी दूब की गोट लगाए हुए ऐसी मनोहर मालूम होती है कि चित्त वहां से हटने को नहीं चाहता। प्रात:काल तथा सायंकाल-सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य भी अपूर्व छटा दिखाता है। इस स्थान के निकट खुदाई होने से अवश्य ही पूर्व संस्कृति अवशेष उपलब्‍ध होने की संभावना है। हिन्दू-मुसलमान भाई यहां पर शारदोत्सव मनाने एकसाथ एकत्रि‍त होते हैं।