गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. महाशिवरात्रि
Written By WD

श्री वैद्यनाथ

श्री वैद्यनाथ -
WD
यह ज्योतिर्लिंग बिहार प्रांत के सन्थाल परगने में स्थित है शास्त्र और लोक दोनों में उसकी बड़ी प्रसिद्धि है। इसकी स्थापना के विषय में यह कथा कही जाती है- एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान्‌ शिव का दर्शन प्राप्त करने के लिए बड़ी घोर तपस्या की।

उसने एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किए। इस प्रकार उसने अपने नौ सिर वहाँ काटकर चढ़ा दिए। जब वह अपना दसवाँ और अंतिम सिर काटकर चढ़ाने के लिए उद्यत हुआ तब भगवान्‌ शिव अतिप्रसन्न और संतुष्ट होकर उसके समक्ष प्रकट हो गए। शीश काटने को उद्यत रावण का हाथ पकड़कर उन्होंने उसे ऐसा करने से रोक दिया। उसके नौ सिर भी पहले की तरह जोड़ दिए और अत्यंत प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा।

रावण ने वर के रूप में भगवान शिव से उस शिवलिंग को अपनी राजधानी लंका में ले जाने की अनुमति माँगी। भगवान्‌ शिव ने उसे यह वरदान तो दे दिया लेकिन एक शर्त भी उसके साथ लगा दी। उन्होंने कहा, तुम शिवलिंग ले जा सकते हो किंतु यदि रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जाएगा, तुम फिर इसे उठा न सकोगे।
  यह ज्योतिर्लिंग बिहार प्रांत के सन्थाल परगने में स्थित है शास्त्र और लोक दोनों में उसकी बड़ी प्रसिद्धि है। इसकी स्थापना के विषय में यह कथा कही जाती है- एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर भगवान्‌ शिव का दर्शन प्राप्त करने के लिए बड़ी घोर तपस्या की।      


रावण इस बात को स्वीकार कर उस शिवलिंग को उठाकर लंका के लिए चल पड़ा। चलते-चलते एक जगह मार्ग में उसे लघुशंका करने की आवश्यकता महसूस हुई। वह उस शिवलिंग को एक अहीर के हाथ में थमाकर लघुशंका की निवृत्ति के लिए चल पड़ा। उस अहीर को शिवलिंग का भार बहुत अधिक लगा और वह उसे सँभाल न सका। विवश होकर उसने शिवलिंग को वहीं भूमि पर रख दिया।

रावण जब लौटकर आया तब बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस शिवलिंग को किसी प्रकार भी उठा न सका। अंत में थककर उस पवित्र शिवलिंग पर अपने अँगूठे का निशान बनाकर उसे वहीं छोड़कर लंका को लौट गया। तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने वहाँ आकर उस शिव लिंग का पूजन किया। इस प्रकार वहाँ उसकी प्रतिष्ठा कर वे लोग अपने-अपने धाम को लौट गए। यही ज्योतिर्लिंग 'श्रीवैद्यनाथ' के नाम से जाना जाता है।

यह श्रीवैद्यनाथ-ज्योतिर्लिंग अनंत फलों को देने वाला है। यह ग्यारह अंगुल ऊँचा है। इसके ऊपर अँगूठे के आकार का ग़ड्डा है। कहा जाता है कि यह वहीं निशान है जिसे रावण ने अपने अँगूठे से बनाया था। यहाँ दूर-दूर से तीर्थों का जल लाकर चढ़ाने का विधान है। रोग-मुक्ति के लिए भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बहुत प्रसिद्ध है।

पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है। उस पर भगवान्‌ शिव की कृपा सदा बनी रहती है। दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट उसके पास भूलकर भी नहीं आते भगवान्‌ शंकर की कृपा से वह सारी बाधाओं, समस्त रोगों-शोकों से छुटकारा पा जाता है। उसे परम शांतिदायक शिवधाम की प्राप्ति होती है।