19 मई, शुक्रवार को शनि जयंती पर्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्यपुत्र भगवान शनि देव (Lord Shani) की पूजा-अर्चना करने से जीवन की समस्त कठिनाइयां दूर होती है। इस दिन भगवान शनिदेव को प्रसन्न करने लिए उनका चालीसा तथा स्तोत्र का पाठ करना अतिशुभ रहता है। इतना ही नहीं यदि आपको शनि साढ़ेसाती, ढैया या शनि की महादशा चल रही है तो शनि जयंती के दिन निम्न पाठ करना बहुत लाभदायी रहेगा। 
				  																	
									  
	 
	आइए यहां जानते हैं शनिदेव की आरती, चालीसा और दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ आदि के बारे में....
				  
	 
	भगवान शनि की आरती : Shani Dev Aarti
	 
	ॐ जय जय शनि महाराज, स्वामी जय जय शनि महाराज।
				  						
						
																							
									  
	कृपा करो हम दीन रंक पर, दुःख हरियो प्रभु आज ॥ॐ॥
	 
	सूरज के तुम बालक होकर, जग में बड़े बलवान ॥स्वामी॥
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	सब देवताओं में तुम्हारा, प्रथम मान है आज ॥ॐ॥1॥
	 
	विक्रमराज को हुआ घमण्ड फिर, अपने श्रेष्ठन का। स्वामी
				  																	
									  
	चकनाचूर किया बुद्धि को, हिला दिया सरताज ॥ॐ॥2॥
	 
	प्रभु राम और पांडवजी को, भेज दिया बनवास। स्वामी
				  																	
									  
	कृपा होय जब तुम्हारी स्वामी, बचाई उनकी लॉज ॥ॐ॥3॥
	 
	शुर-संत राजा हरीशचंद्र का, बेच दिया परिवार। स्वामी
				  																	
									  
	पात्र हुए जब सत परीक्षा में, देकर धन और राज ॥ॐ॥4॥
	 
	गुरुनाथ को शिक्षा फांसी की, मन के गरबन को। स्वामी
				  																	
									  
	होश में लाया सवा कलाक में, फेरत निगाह राज ॥ॐ॥5॥
	 
	माखन चोर वो कृष्ण कन्हाइ, गैयन के रखवार। स्वामी
				  																	
									  
	कलंक माथे का धोया उनका, खड़े रूप विराज ॥ॐ॥6॥
	 
	देखी लीला प्रभु आया चक्कर, तन को अब न सतावे। स्वामी
				  																	
									  
	माया बंधन से कर दो हमें, भव सागर ज्ञानी राज ॥ॐ॥7॥
	 
	मैं हूँ दीन अनाथ अज्ञानी, भूल भई हमसे। स्वामी
				  																	
									  
	क्षमा शांति दो नारायण को, प्रणाम लो महाराज ॥ॐ॥8॥
	 
	ॐ जय जय शनि महाराज, स्वामी जय-जय शनि महाराज।
				  																	
									  
	कृपा करो हम दीन रंक पर, दुःख हरियो प्रभु आज॥ॐ॥
	
	शनि चालीसा- Shree Shani Chalisa
				  																	
									  
	 
	दोहा
	 
	जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
				  																	
									  
	दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
	जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
				  																	
									  
	करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
	 
	जयति जयति शनिदेव दयाला।
				  																	
									  
	करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
	चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
	माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
				  																	
									  
	परम विशाल मनोहर भाला।
	टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
	कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
				  																	
									  
	हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
	कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
	पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
				  																	
									  
	पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
	यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
	सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
				  																	
									  
	भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
	जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
	रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
				  																	
									  
	पर्वतहू तृण होई निहारत।
	तृणहू को पर्वत करि डारत॥
	राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
				  																	
									  
	कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
	बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
	मातु जानकी गई चुराई॥
				  																	
									  
	लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
	मचिगा दल में हाहाकारा॥
	रावण की गति-मति बौराई।
				  																	
									  
	रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
	दियो कीट करि कंचन लंका।
	बजि बजरंग बीर की डंका॥
				  																	
									  
	नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
	चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
	हार नौलखा लाग्यो चोरी।
				  																	
									  
	हाथ पैर डरवायो तोरी॥
	भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
	तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
				  																	
									  
	विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
	तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
				  																	
									  
	हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
	आपहुं भरे डोम घर पानी॥
	तैसे नल पर दशा सिरानी।
				  																	
									  
	भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
	श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
	पारवती को सती कराई॥
				  																	
									  
	तनिक विलोकत ही करि रीसा।
	नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
	पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
				  																	
									  
	बची द्रौपदी होति उघारी॥
	कौरव के भी गति मति मारयो।
	युद्ध महाभारत करि डारयो॥
				  																	
									  
	रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
	लेकर कूदि परयो पाताला॥
	शेष देव-लखि विनती लाई।
				  																	
									  
	रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
	वाहन प्रभु के सात सुजाना।
	जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
				  																	
									  
	जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
	सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
	गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
				  																	
									  
	हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
	गर्दभ हानि करै बहु काजा।
	सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
				  																	
									  
	जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
	मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
	जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
				  																	
									  
	चोरी आदि होय डर भारी॥
	तैसहि चारि चरण यह नामा।
	स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
				  																	
									  
	लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
	धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
	समता ताम्र रजत शुभकारी।
				  																	
									  
	स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
	जो यह शनि चरित्र नित गावै।
	कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
				  																	
									  
	अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
	करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
	जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
				  																	
									  
	विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
	पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
	दीप दान दै बहु सुख पावत॥
				  																	
									  
	कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
	शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
	 
				  																	
									  
	दोहा
	 
	पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
				  																	
									  
	करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
	
	दशरथकृत शनि स्तोत्र : shani dev stotram
				  																	
									  
	 
	नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
	नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
				  																	
									  
	 
	नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
	नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
				  																	
									  
	 
	नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
	नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
				  																	
									  
	 
	नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
	नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
				  																	
									  
	 
	नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
	सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
				  																	
									  
	 
	अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
	नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
				  																	
									  
	 
	तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
	नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
				  																	
									  
	 
	ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
	तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
				  																	
									  
	 
	देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
	त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
				  																	
									  
	 
	प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
	एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
	
				  																	
									  
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