भारत में चाणक्य से पूर्व कई महान नीतिज्ञ हुए। भीष्म नीति, विदुर नीति, मनु नीति (मनुस्मृति), चर्वाक, शुक्र नीति, बृहस्पति नीति, परशुराम नीति, गर्ग नीति आदि अनेकों नीतिज्ञ हुए हैं। चाणक्य के बाद भी कई महान नीतिज्ञ हुए हैं जैसे भर्तृहरि, हर्षवर्धन, बाणभट्ट आदि। विदुर धृतराष्ट्र के सौतेले भाई थे जो एक दासी के पुत्र थे।
विदुर नीति के अंतर्गत नीति सिद्धांतों का सुंदर वर्णन किया गया है। युद्ध के अनंतर विदुर पांडवों के भी मंत्री हुए। हिन्दी नीति काव्य पर विदुर के कथनों एवं सिद्धांतों का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है। युद्ध के पूर्व महाराजा धृतराष्ट्र अपने सलाहकार विदुर को बुलाकर अच्छे और बुरे के बारे में चर्चा करते हैं। महर्षि वेदव्यास रचित ‘महाभारत’ के उद्योग पर्व में इस चर्चा का वर्णन मिलता है। यह संपूर्ण पर्व इस प्रकार है, जो ‘विदुर नीति’ के नाम से विख्यात है।
उद्योग पर्व: 33 धृतराष्ट्र–विदुर संवाद।
उद्योग पर्व: 34 धृतराष्ट्र के प्रति विदुरजी के नीतियुक्त वचन।
उद्योग पर्व: 35 विदुर के केशिनी के लिए सुधन्वा के साथ विरोचन के विवाद का वर्णन करते हुए धृतराष्ट्र को धर्मोपदेश।
उद्योग पर्व: 36 दत्तात्रेय और साध्य देवताओं के संवाद का उल्लेख करके महाकुलीन लोगों का लक्षण बतलाते हुए विदुर का धृतराष्ट्र को समझाना।
उद्योग पर्वष: 37 धृतराष्ट्र के प्रति विदुरजी का हितोपदेश।
उद्योग पर्व: 38 विदुरजी का नीतियुक्त उपदेश।
उद्योग पर्व: 39 धृतराष्ट्र के प्रति विदुरजी का नीतियुक्त उपदेश।
उद्योग पर्व: 40 धर्म की महत्ता का प्रतिपादन तथा ब्राह्मण आदि चारों वर्णों के धर्म का संक्षिप्त वर्णन।
उद्योग पर्व: 41 विदुरजी के द्वारा स्मरण करने पर आए हुए सनत्सुजात ऋषि से धृतराष्ट्र को उपदेश देने के लिए उनकी प्रार्थना।
अगले पन्ने पर जानिए विदुर नीति के कुछ प्रसिद्ध वचन...
* महात्मा विदुर कहते हैं कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।
* पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।
* जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।
* संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।
* बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है।
* क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का क्षमा भूषण है।
* काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग है। यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।
* ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।
*जो पुरुष अच्छे कर्मों और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में भी स्वभाव से ही शंकित रहता है। किसी का विश्वास नहीं करता, मित्रों का परित्याग करता है... वह पुरुष निश्चय ही अधर्मी होता है।
* जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।
* जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।
* मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उन पर भी विश्वास कर लेता है।
* जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है।
* मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
* किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
* विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं: राजन! जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है, कुछ और नहीं, किन्तु आप इसे नहीं समझ रहे हैं।
* केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
* विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं : राजन! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
* काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
* भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।