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पौराणिक काल के 5 विचित्र मानव, जानिए...

पौराणिक काल के 5 विचित्र मानव, जानिए... - Legendary times bizarre human
पृथ्वी पर आदिम दौर में चार मानव प्रजातियों का अस्तित्व था। तब तक आधुनिक इंसान का पता नहीं चला था। यूरोप में मिले इन अवशेषों को निएंडरथल कहते हैं, जबकि एशिया में रह रहे आदिम इंसानों को डेनिसोवांस कहते थे. एक प्रजाति इंडोनेशिया में मिले आदिम इंसानों की भी है, जिसे हॉबिट कहते हैं। इनके अलावा एक रहस्यमय चौथा समूह भी था, जो यूरोप और एशिया में रहते थे। यह समूह डेनिसोवांस का संकर समूह माना जाता था। अब चीन में नए जीवाश्म मिलने से शोध की दिशा बदल गई है।

इस जीवाश्म का पता पहली बार 1976 में शूजियाओ के गुफाओं में मिला। इसमें कुछ खोपड़ियों के टुकड़े और चार लोगों के नौ दांतों के जीवाश्म मिले थे। इसका पूरा विवरण अमेरिकी फिज़िकल एंथ्रापोलॉजी जर्नल में छपा है। यह विचित्र किस्म का जीवाश्म है, जो अब तक मालूम मानव प्रजाति के जीवाश्म से मेल नहीं खाता। मुमकिन है कि ये जीवाश्म किन्हीं दो मालूम प्रजातियों के बीच रूपांतरण काल का हो सकता है। हालांकि इतना साफ है कि ये जीवाश्म किसी आधुनिक मानव प्रजाति के दांतों से मेल नहीं खाते. मगर कुछ गुण निश्चित ही आदिम प्रजाति के इंसानों से मिलते हैं. कुछ अंश निएंडरथल से मेल खाते हैं। इसके डीएनए की जांच से पता चला कि निएंडरथल और आधुनिक मानवों से अलग हैं लेकिन इसमें दोनों की खूबियां शामिल हैं। 
 
भारत रहस्यों से भरा देश रहा है। शोधानुसार लगभग 35 से 40 हजार वर्ष पहले से भारत में एक समृद्ध सामाजिक परंपरा रही है। इन वर्षों में भारत ने कई उतार-चढ़ाव देखे। प्राचीनकाल में सुर, असुर, देव, दानव, दैत्य, रक्ष, यक्ष, दक्ष, किन्नर, निषाद, वानर, गंधर्व, नाग और मानव आदि जातियां होती थीं। प्राचीन भारत में कुछ इस तरह के मानव और जीव हुए हैं जिनके बारे में आज भी शोध जारी है। हालांकि इनमें से कुछ के रहस्यों पर से अब पर्दा उठ गया है।
 
इस बात का सबूत है कि प्राचीनकाल में दो भिन्न-भिन्न प्रजातियों के मेल से विचित्र किस्म के जीव-जंतुओं और मानवों का जन्म हुआ होगा। रामायणकाल और महाभारत काल में जहां विचित्र तरह के मानव और पशु-पक्षी होते थे, वहीं उस काल में तरह-तरह के सुर और असुरों का साम्राज्य और आतंक था। हालांकि बहुत कम ही लोग होंगे, जो इस बात से सहमत हैं कि दुनिया में विचित्र प्राणी होते हैं?
 
हम यहां मत्स्य मानव, पक्षी मानव, अश्व मानव, नाग मानव आदि की बात नहीं कर रहे हैं। सच में जिनके मानवरूप होने की संभावनाओं को नकारना मुश्किल है उन्हीं की बात कर रहे हैं। आओ हम जानते हैं कि भारत में प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक किस प्रकार के और कौन कौन से ऐसे मानव हुए जो सामान्य मानव से भिन्न थे। हम यहां किसी सिद्धि प्राप्त या चमत्कारिक मानवों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसे मानवों की जिनके मानव होने पर शक होता है।
 
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कुंभकर्ण : यह रावण का भाई था, जो 6 महीने बाद 1 द‌िन जागता और भोजन करके फ‌िर सो जाता, क्‍योंक‌ि इसने ब्रह्माजी से न‌िद्रासन का वरदान मांग ल‌िया था। युद्ध के दौरान क‌िसी तरह कुंभकर्ण को जगाया गया। कुंभकर्ण ने युद्घ में अपने व‌िशाल शरीर से वानरों पर प्रहार करना शुरू कर द‌िया इससे राम की सेना में हाहाकार मच गया। सेना का मनोबल बढ़ाने के ल‌िए राम ने कुंभकर्ण को युद्घ के ल‌िए ललकारा और भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण वीरगत‌ि को प्राप्त हुआ।
 
अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में ही कोई छह माह तक सोया रह सकता है? इसका जवाब है हां। ऐसा वर्तमान में भी संभव हो सकता है। यह एक तरह का रोग होता है। बाइस वर्षीया बेथ गुडियर एक यूनिवर्सिटी छात्रा हैं और वे क्लाइन- लेविन सिंड्रॉम (केएलएस) की मरीज हैं। चूंकि इस बीमारी में मरीज सोता ही रहता है, इसलिए इसे स्लीपिंग ब्यूटी सिंड्रॉम भी कहते हैं। पांच वर्ष पहले भी वे नवंबर 2011 में इस बीमारी का शिकार बनी थीं और वे महीनों तक सोती रहीं। उनके बारे में डेली मेल में टेनिथ कैरी लिखती हैं कि बेथ छह माह तक नहीं जागीं। इस बीच उन्हें यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी करके एक बाल मनोचिकित्सक का कोर्स पूरा करना था, लेकिन बीमारी के चलते ऐसा नहीं हो सका। जब बेथ जागती है तो बमुश्किल दो सप्ताहों तक ही जागती है और इसके बाद कभी भी, कहीं भी सो जाती है। 48 वर्षीय जैनिन कहती हैं कि उसके जागने और फिर सो जाने का कोई समय नहीं है।
 
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विकालकाय मानव घटोत्कच और बर्बरिक : भीम के पुत्र घटोत्कच और पौत्र बर्बरिक के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों की सामान्य मानवों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई थी। माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था। भीम की असुर पत्नी हिडिम्बा से घटोत्कच का जन्म हुआ था।

जन्म लेते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) नहीं थे इसलिए उसका नाम घट-हाथी का मस्तक + उत्कच= केशहीन अर्थात घटोत्कच रखा गया। इसका मस्तक हाथी के मस्तक जैसा और केशशून्य होने के कारण यह घटोत्कच नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह अत्यंत मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया। उसमें जहां शारीरिक बल था वहीं वह मायावी भी था। चूंकि घटोत्कच की माता एक राक्षसी थी, पिता एक वीर क्षत्रिय था इसलिए इसमें मनुष्य और राक्षस दोनों के मिश्रित गुण विद्यमान थे। वह बड़ा क्रूर और निर्दयी था।
 
घटोत्कच ने युद्ध में अपने विशाल शरीर से हाहाकार मचा रखा था। वे एक ही बार में अपनी पैरों के नीचे कई सैनिकों को कुचल कर मार देते थे जिससे घबराकर दुर्योधन ने कर्ण को अमोघ अस्त्र चलाने का आदेश दिया। इस अस्त्र से घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हुए। दूसरी ओर बर्बरीक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। 
 
युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से कृष्ण चिंतित हो गए थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया।
 
बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।
 
अब सवाल यह उठता है कि क्या सममुच इतने विशालकाय मानव होते थे? हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में दानव और राक्षस लोग विशालकाय हुआ करते थे। बाइबिल के अनुसार 'नेफिलीम' युग में इस तरह के लोग थे, जो स्वर्ग से बहिष्कृत किए गए थे। बाइबिल के अनुसार 'नेफिलीम' युग में इस तरह के लोग थे, जो स्वर्ग से बहिष्कृत किए गए थे। दुनिया में अब तक कहीं से भी विशालकाय मानव खोपड़ियां नहीं पाई गई हैं। हालांकि वैज्ञानिक इस बात का दावा जरूर करते हैं कि उन्हें लंबे सिर वाले मानवों की खोपड़ियां मिली हैं। लंबे सिर का अर्थ पीछे से उनकी खोपड़ियां इतनी लंबी हैं, जैसे उन्होंने कोई टोपी पहन रखी हो। दुनियाभर में 2 से 6 फुट तक के लंबे पदचिह्न पाए जाते हैं।
 
अमेरिकी नीग्रो युवक रॉबर्ट वाडलो की लंबाई 8 फीट 11 इंच थी। 22 साल की उम्र में ही उसकी मौत हो गई थी। अमेरिका के ही दूसरे युवक जॉन विलियम रोगान की लंबाई 8 फीट 9 इंच थी। एक तीसरे अमेरिकी युवक जॉन एफ. कैरोल की हाइट 8 फीट 7 इंच थी, लेकिन कहा जाता है कि उनकी लंबाई नापना मुश्‍किल था। हो सकता है कि उनकी मौत के वक्त तक उनकी लंबाई 9 फीट के करीब हो गई होगी। लंबे काल तक जीवित रहे लोगों में यूक्रेन के लियोनाइड की लंबाई 8 फीट 5 इंच के लगभग थी। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राचीनकाल में कम से कम 10 फुट के मानव रहे होंगे।
 
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रीछ मानव : क्या इंसानों के समान कोई पशु हो सकता है? जैसे रीछ प्रजाति। रामायण में जामवंत को एक रीछ मानव की तरह दर्शाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अर्सिडी कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालों वाला बड़ा जानवर है। यह लगभग पूरी दुनिया में कई प्रजातियों में पाया जाता है। मुख्‍यतया इसकी 5 प्रजातियां हैं- काला, श्वेत, ध्रुवीय, भूरा और स्लोथ भालू।
 
अमेरिका और रशिया में आज भी भालू मानव के किस्से प्रचलित हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि कभी इस तरह की प्रजाति जरूर अस्तित्व में रही होगी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि भूरे रंग का एक विशेष प्रकार का भालू है जिसे नेपाल में 'येति' कहते हैं। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि हिमालय के मिथकीय हिममानव 'येति' भूरे भालुओं की ही एक उपप्रजाति हो सकती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन स्काइज द्वारा किए गए बालों के डीएनए परीक्षणों से पता चला है कि ये ध्रुवीय भालुओं से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भूरे भालुओं की उप-प्रजातियां हो सकती हैं।
 
संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। अग्नि पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। जामवंतजी को अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। प्राचीनकाल में इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, चंद्र पुत्र, पवन पुत्र, वरुण पुत्र, अग्नि पुत्र आदि देवताओं के पुत्रों का अधिक वर्णन मिलता है। उक्त देवताओं को स्वर्ग का निवासी कहा गया है। एक ओर जहां हनुमानजी और भीम को पवनपुत्र माना गया है, वहीं जामवन्तजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवन्त की माता एक गंधर्व कन्या थी। जब पिता देव और माता गंधर्व थीं तो वे कैसे रीछ मानव हो सकते हैं?
 
एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था, जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
 
अगले पन्ने पर चौथा मानव...
कबंध : सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं थे। उसके मस्तक पर केवल एक आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था। रामायणकाल में संपूर्ण दक्षिण भारत और दंडकारण्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) पर राक्षसों का आतंक था।

दंड नामक राक्षस के कारण ही इस क्षेत्र का नाम दंडकारण्य पड़ा था। कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर पूछा- आप कौन वीर हैं? परिचय जानकर कबंध बोला- यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने कहा- मैं दनु का पुत्र कबंध बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था।
 
अब सवाल उठता है कि क्या कोई एक आंख का मानव हो सकता है? इसका जवाब है कि कुछ समय पूर्व छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के एक सरकारी अस्पताल में एक विचित्र मानव का जन्म हुआ जिसकी दो नहीं एक आंख थी और वह भी मस्तक पर। अथक प्रयासों के बाद भी डॉक्टर उसकी जान नहीं बचा पाए। जिले के सिहावा निवासी रितु पटेल पति उमेश को नगर के शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ ही देर में रितु ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसे देखकर डॉक्टर भी दंग रह गए। बच्चे के चेहरे पर एक ही आंख थी। उसकी आंख माथे पर सामान्य से बड़ी थी। उसके सिर का आकार काफी छोटा था। जन्म से महज डेढ़ घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई।
 
अगले पन्ने पर पांचवां मानव...
वानर मानव : क्या हनुमानजी बंदर प्रजाति के थे? हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था।
 
शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?'
 
इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है।
 
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमेश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूंछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।