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क्या था माता लक्ष्मी के माता-पिता का नाम, जानिए

क्या था माता लक्ष्मी के माता-पिता का नाम, जानिये । parent of mata lakshmi - Hindu Goddess Lakshmi
पुराणों में माता लक्ष्मी की उत्पत्ति के बारे में विरोधाभास पाया जाता है। एक कथा अनुसार माता लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के निकले रत्नों के साथ हुई थी। लेकिन दूसरी कथा कुछ और ही कहती है। भगवान विष्णु की पत्नी है माता लक्ष्मी। दरअसल, पुराणों की कथा में  छुपे रहस्य को जानना थोड़ा मुश्किल होता है। इससे समझना जरूरी है।
आपको शायद पता ही होगा कि शिवपुराण अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के माता पिता का नाम सदाशिव और दुर्गा बताया गया है। उसी तरह तीनों देवियों के भी माता पिता रहे हैं। अर्थात किसी की भी उत्पत्ति असाधारण नहीं थी। लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति और उनके शक्ति को अलंकारिक तरीके से प्रस्तुत किया गया। खैर..
 
अगले पन्ने पर पहले जानिये समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई लक्ष्मी के बारे में...
 

समुद्र मंथन वाली लक्ष्मी : समुद्र मंथन से कुल 14 तरह के रत्न आदि उत्पन्न हुए थे। उनको सूरों (देव) और असुरों ने आपस में बांट लिया था। हलाहल विष निकला जिन्हें भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया, फिर सुरभि नामक कामधेनु गाय उत्पन्न हुई।

उसके बाद उड़ने वाला उच्चैःश्रवा घोड़ा नामक घोड़ा निकला, फिर ऐरावत हाथी, फिर कौस्तुभ मणि, फिर कल्पद्रुम नाम का दुनिया का पहला धर्मग्रंथ निकला, फिर रंभा नामक अप्सरा, फिर महालक्ष्मी (गोल्ड), फिर वारुणी नामक मदिरा, फिर चंद्रमा, फिर पारिजात का वृक्ष, फिर पांचजञ्य शंख, धन्वंतरि वैद्य (औषधि) और अंत में अमृत निकला था।
 
समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई। लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति। कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं, लेकिन कुछ लोग इसे देवी मानते हैं। समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी को कमला कहते हैं जो दस महाविद्याओं में से अंतीम महाविद्या है। देवताओं तथा दानवों ने मिलकर, अधिक सम्पन्न होने हेतु समुद्र का मंथन किया, समुद्र मंथन से 18 रत्न प्राप्त हुए, जिन में देवी लक्ष्मी भी थी, जिन्हें भगवान विष्णु को प्रदान किया गया था। इसी कारण देवी कमला, जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु की पत्नी कही गई है। उन महालक्ष्मी ने स्वयं ही विष्णु को वर लिया था।
 
देवी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं। अध्ययन से पता चलता है कि समुद्र मंथन से निकली लक्ष्मी को वैभव और समृद्धि से जोड़कर देखा गया, जिसमें सोना, चांदी आदि कीमती धातुएं थी जो कि लक्ष्मी का प्रतिक है।
 
अगले पन्ने पर जानिये असली माता लक्ष्मी के माता-पिता के नाम...

विष्णु प्रिया लक्ष्मी : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। (समुद्र मंथन के बाद क्षीरसागर से जो लक्ष्मी उत्पन्न हुई थी उसका इनसे कोई संबंध नहीं।) म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है।
राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका मतलब राजा द‍क्ष की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थी। माता लक्ष्मी के 18 पुत्रों में से प्रमुख चार पुत्रों के नाम हैं:- आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत। माता लक्ष्मी को दक्षिण भारत में श्रीदेवी कहा जाता है।
 
लक्ष्मी-विष्णु विवाह कथा : जब लक्ष्मीजी बड़ी हुई तो वह भगवान नारायण के गुण-प्रभाव का वर्णन सुनकर उनमें ही अनुरक्त हो गई और उनको पाने के लिए तपस्या करने लगी उसी तरह जिस तरह पार्वतीजी ने शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। वे समुद्र तट पर घोण तपस्या करने लगीं। तदनन्तर लक्ष्मी जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
 
माता लक्ष्मी के विवाह की एक अन्य रोचक कथा...

दूसरी विवाह कथा : एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ। माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णु जी को पती रूप में स्वीकार कर चुकी थी लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे। नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए।

विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया। हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। नारद वहाँ से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गये क्योंकि उनका चेहरा बन्दर जैसा लग रहा था।
 
हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया। उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया। नारद सीधा बैकुण्ठ पहुँचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा।