16 जनपद-1 : अब कंबोज कहां है, जानिए
कंबोडिया को भी पहले कंबुज कहा जाता था, जो कि कभी अखंड भारत का हिस्सा था। कंबोडिया की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार कंबोडिया की नींव 'आर्यदेश' के राजा कंबु स्वयांभुव ने डाली थी। लेकिन हम कंबोडिया नहीं, भारतीय राज्य कंबोज की बात कर रहे हैं, जो प्राचीन संगठित भारत के 16 जनपदों में से एक था।
महाभारत में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।
बाद में महाभारत के अनुसार भारत को मुख्यत: 16 जनपदों में स्थापित किया गया। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। इन 16 जनपदों में से एक जनपद का नाम कंबोज था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कंबोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। भारतीय जनपदों में राज्याणि, दोरज्जाणि और गणरायाणि शासन था अर्थात राजा का, दो राजाओं का और जनता का शासन था।
*राम के काल 5114 ईसा पूर्व में नौ प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप जनपद होते थे। ये नौ इस प्रकार हैं- 1.मगध, 2.अंग (बिहार), 3.अवन्ति (उज्जैन), 4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती), 5.सूरसेन (मथुरा), 6.धनीप (राजस्थान), 7.पांडय (तमिल), 8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) और 9.मलय (मलावार)।
*16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चेदि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। उक्त 16 महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे।
*कंबोज का अर्थ- कंबोज का अर्थ सुंदर कंबलों का उपभोग करने वाले लोग। दूसरा सुंदर भोजन करने वाले लोग।
*कंबोज जाति : कंबोज नाम से भारत में अभी भी एक जाति महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और पंजाब में रहती है। इस जाति के मूल देवता शिव हैं। इसे कहीं-कहीं कंबोह, कंबुज और कंबोह भी कहते हैं। अब इस जाति के लोग सिख भी हैं, हिन्दू भी और कुछ मुसलमान भी। जैसे कश्मीर के ज्यादातर गुर्जर और ब्राह्मण अब खुद को मुसलमान कहते हैं, लेकिन ये सभी गांधार और कंबोज निवासी ही हैं और इनका मूल धर्म 'शैव' है।
कंबोजों को मलेच्छ इसलिए कहा जाने लगा था, क्योंकि वे वैदिक धर्म को छोड़कर तरह-तरह के देवी और देवताओं को मानने लगे थे, लेकिन वे मूलत: थे सभी शैव। आंध्र, शक, पुलिन्द, यवन, बाह्मलीक तथा आभीर लोगों को भी मलेच्छ माना जाता था। यह सभी वेद विरुद्ध कर्म करने लगे थे इसलिए इन सभी को असुरों की ओर से मान लिया गया था।
चित्र सौजन्य : वीकिपीडिया
अगले पन्ने पर कहां स्थित था कंबोज राज्य...
कंबोज की स्थिति :
*कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है।
*पाकिस्तान का हजारा जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही था। कंबोज के पास ही गांधार जनपद था।
*पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था।
*गांधार के दो प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला।
*तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म खूब फला-फूला, लेकिन खलीफाओं के आक्रमण ने इसे नष्ट कर दिया।
*कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है।
*आधुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कंबोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
*कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया' में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कंबोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।
*जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।
अगले पन्ने पर ग्रंथों में कंबोज...
ग्रंथों में कंबोज
* वाल्मीकि रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, कालिदासकृत रघुवंश आदि में कंबोज की स्थिति और इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
* प्राचीन संस्कृत एवं पालि साहित्य में कंबोज और गांधार का नाम साथ-साथ आता है। ऋग्वेद में गांधार के उत्कृष्ट ऊन और कंबोज के कंबलों का उल्लेख मिलता है।
* महाभारत के अनुसार कंबोज में उत्तम घोड़े और अखरोट मिलते हैं।
* महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कंबोजों को भी परास्त किया था।
* कर्ण ने कंबोज के राजपुर नामक नगर पहुंचकर कंबोजों को हराया था।
* महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन, सुदक्षिण, कमठ और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
* कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व तक यह गणराज्य स्थापित था।
* मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
* प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनी ने 'कंबोजाल्लुक' सूत्र से (अष्टाध्यायी 4, 1, 173) में इस जनपद के बारे में उल्लेख किया था। पाणिनी गांधार प्रदेश के निवासी थे।
* पतंजलि ने भी महाभाष्य में कंबोज का उल्लेख किया है।
* इतिहासकार कल्हण के अनुसार कश्मीर नरेश ललितादित्य ने उत्तरापथ के अन्य कई देशों के साथ कंबोज को भी जीता था।
संदर्भ : महाभारत, अंगुत्तर निकाय, वाल्मीकि रामायण आदि