मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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भीष्म की 10 भूल और हो गया महाभारत

भीष्म की 10 भूल और हो गया महाभारत | 10 Mistake of Bhishma
प्रत्येक के घर में महाभारत होना चाहिए। महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ भारत देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से भारत के जन-जीवन को यह प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है।
महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। अब सवाल यह उठता है कि महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था?
 
महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था? इस सवाल के जवाब में हर कोई कहेगा कि भूमि के बंटवारे के लिए। तीन गांव की जमीन यदि दुर्योधन दे देता तो महाभारत नहीं होता। लेकिन यह अधूरा सत्य माना जा सकता है। कहते हैं कि महाभारत का सारा प्रपंच भीष्म और श्रीकृष्ण ने ही रचा था। भीष्म ने ऐसी 10 बड़ी भूल की थी जिसके चलते महाभारत का युद्ध हुआ। आओ जानते हैं कि भीष्म ने क्या गलतियां की थी।
 
अगले पन्ने पर पहला कारण...
 

भीष्म का अन्याय : सत्यवती के गर्भ से महाराज शांतनु को चित्रांगद और विचित्रवीर्य नाम के 2 पुत्र हुए। शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा बनाए गए, किंतु गंधर्वों के साथ युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई, तब विचित्रवीर्य बालक ही थे। फिर भी भीष्म विचित्रवीर्य को सिंहासन पर बैठाकर खुद राजकार्य देखने लगे। विचित्रवीर्य के युवा होने पर भीष्म ने बलपूर्वक काशीराज की 3 पुत्रियों का हरण कर लिया और वे उसका विवाह विचित्रवीर्य से कारन चाहते थे, क्योंकि भीष्म चाहते थे कि किसी भी तरह अपने पिता शांतनु का कुल बढ़े।
भीष्म की इस एक प्रतिज्ञा के कारण हस्तिनापुर का भाग्य बदल गया। गंगा और शांतनु के पुत्र भीष्म कुरुवंश के अंतिम कौरव थे। दरअसल, कथा ऐसी है कि एक दिन देवव्रत (भीष्म) के पिता शांतनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुए एक सुन्दर कन्या नजर आई। शांतनु उस कन्या पर मुग्ध हो गए। महाराजा ने उसके पास जाकर उससे पूछा, 'हे देवी तुम कौन हो?' उसने कहा, 'महाराजा मेरा नाम सत्यवती है और में निषाद कन्या हूं।' (उस काल में निषाद नाम की एक जाति होती थी)
 
महाराज उसके रूप-यौवन पर रीझकर उसके पिता के पास पहुंचे और सत्यवती के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर धीवर ने कहा, 'राजन्! मुझे अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करने में कोई आपत्ति नहीं है, किंतु मैं चाहता हूं कि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही आप अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाएं, तो ही यह विवाह संभव हो पाएगा।' निषाद के इन वचनों को सुनकर महाराज शांतनु चुपचाप हस्तिनापुर लौट आए और मन ही मन इस दुख से घुटने लगे। सत्यवती के वियोग में महाराज व्याकुल रहने लगे और उनका शरीर भी दुर्बल होने लगा।
 
महाराज की इस दशा को देखकर देवव्रत को चिंता हुई। जब उन्हें मंत्रियों द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण पता चला तो वे निषाद के घर जा पहुंचे और उन्होंने निषाद से कहा, 'हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा।'
 
उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद ने हाथ जोड़कर कहा, 'हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।' इतना कहकर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया।
 
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गांधारी के साथ किया अन्याय : इसके अलवा भीष्म ने यह अपराध भी किया। यह जानते हुए भी कि गांधारी नेत्रहीन नहीं है, भीष्म ने जबरदस्ती गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करा दिया। अपनी बहन से बहुत प्रेम करने वाला शकुनि अपनी बहन के साथ हुए इस अन्याय का बदला लेने के लिए जिंदगी भर चालें चलता रहा और जिसके चलते महाभारत युद्ध हुआ।
किंवदंती है कि उस समय गांधार राजकुमारी के रूप-लावण्य की चर्चा पूरे आर्यावर्त में थी। ऐसे में पितामह भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी से करने की सोची। पहले उन्होंने सोचा कि गांधारी का अपहरण कर के लाया जाए, लेकिन अम्बा और अम्बालिका ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था अतः पितामह भीष्म गांधार की राजसभा में धृतराष्ट्र का रिश्ता लेकर गए, लेकिन उन्हें मालूम था कि उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया जाएगा। तब पितामह भीष्म ने क्रोधपूर्ण लहजे में कहा कि मैं तुम्हारे इस छोटे से साम्राज्य पर चढ़ाई करूंगा और इसे समाप्त कर दूंगा। अंततः राजा सुबाल को भीष्म के आगे झुकना पड़ा और अत्यंत क्षोभ के साथ उनको अपनी सुन्दर पुत्री का विवाह अंधे राजकुमार धृतराष्ट्र के साथ करना पड़ा।
 
माना जाता है कि गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया। ऐसा क्यों किया इसके पीछे और भी कारण थे।
 
गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली। यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया।
 
कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। एक-एक करके सुबाल के सभी पुत्र मरने लगे। सब लोग अपने हिस्से का चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित रह सके। मृत्यु से पहले सुबाल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जो धृतराष्ट्र ने मान ली थी। राजा सुबाल के सबसे छोटे पुत्र कोई और नहीं, बल्कि शकुनि ही थे। शकुनि ने अपनी आंखों के सामने अपने परिवार का अंत होते हुए देखा और अंत में शकुनि जिंदा बच गए। जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज दुर्योधन ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता की आज्ञा से उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा। शकुनि ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया।
 
यह जानते हुए कि परिजनों के मरने और गांधारी के जिंदगी भर मजबूरन आंखों पर पट्टी बांध कर रहने की वजह से शकुनि के दिल में हस्तिनापुर साम्राज्य के लिए जहर भरा है, भीष्म ने शकुनि को राज्य में रहने की इजाजत दे दी। परिणाम सब जानते हैं।
 
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धृतराष्ट्र के अन्याय पर चुप रहे भीष्म : भीष्म जानते थे कि पुत्रमोह में धृतराष्ट्र पांडवों के साथ अन्याय कर रहे हैं लेकिन राजा और राज सिंहासन के प्रति निष्ठा के चलते भीष्म उनके साथ बने रहे। पांडवों के साथ हुए अति अन्याय के चलते ही महाभारत युद्ध हुआ। यदि भीष्म न्यायकर्ता होते तो यह युद्ध टाला जा सकता था।

धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र-मोह में सारे वंश और देश का सर्वनाश करा दिया। भीष्म चाहते तो वे धृतराष्ट्र की अंधी पुत्र भक्ति पर लगाम लगा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और दुर्योधन को गलती पर गलती करने की अप्रत्यक्ष रूप से छूट दे दी। 
 
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चौसर की इजाजद भीष्म ने दी : राजभवन में कौरवों और पांडवों के बीच द्यूत क्रीड़ा यानि चौसर खेलने को अनुमित देना भी भीष्म की सबसे बड़ी भूल थी। वो चाहते तो ये क्रीड़ा रोक सकते थे लेकिन चौसर के इस खेल ने सब कुछ चौपट कर दिया। यह महाभारत का टर्निंग पाइंट था। भीष्म के इजाजत देने के बाद युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाकर दूसरी सबसे बड़ी भूल की थी जिसके कारण महाभारत का युद्ध होना और भी पुख्ता हो गया। युधिष्ठि ने अपने भाइयों और पत्नी तक को जुए में दांव पर लगाकर अनजाने ही युद्ध और विनाश के बीज बोए थे।
 
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चीर हरण के समय भीष्म का चुप रहना : द्रौपदी के चीर हरण के समय भी भीष्म चुप रहे और इसी के चलते भगवान कृष्ण को महाभारत युद्ध में कौरवों के खिलाफ खड़े होने का फैसला करना पड़ा। चीर हरण महाभारत की ऐसी घटना थी जिसके चलते पांडवों के मन में कौरवों के प्रति नफरत का भाव स्थायी हो गया। यह एक ऐसी घटना थी जिसके चलते प्रतिशोध की आग में सभी चल रहे थे।
 
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कर्ण का सत्य छिपाना : भीष्म जानते थे कि कर्ण पांडवों का ही भाई है लेकिन उन्होंने ये बात कौरव पक्ष से छिपाकर रखी। कर्ण का सत्य छिपाना भी महाभारत युद्ध का एक बड़ा कारण बना। यह बात भीष्म ने ही नहीं श्रीकृष्ण ने भी छिपा कर रखी। खुद कर्ण भी जब युद्ध तय हो गया तब जान पाया।

कर्ण अपनी जातिगत हीनभावना के कारण वह अर्जुन और पांडवों से द्वैष करता रहा और दुर्योधन को हमेशा यह विश्वास दिलाता रहा कि युद्ध को तो मैं अकेला ही जीत लूंगा।
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राज्य विभाजन : भीष्म पितामह ही थे राज सिंहासन के रखवाले और राज कार्य के मामले में निर्णय लेने वाले। धृतराष्ट्र को उनकी हर बातों को मानना ही होता था। जब राज्य का विभाजन हो रहा था तो भीष्म इस विभाजन को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और इसी विभाजन के चलते महाभारत के युद्ध के कारक पैदा हुए।

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अम्बा के साथ अन्याय : भीष्म की एक प्रतिज्ञा के कारण हस्तिनापुर का भाग्य बदल गया। गंगा और शांतनु के पुत्र भीष्म कुरुवंश के अंतिम कौरव थे। उन्होंने कौरव वंश को बढ़ाने के लिए कई प्रयत्न किए लेकिन वह असफल हो गए। शांतनु ने दूसरा विवाह सत्यवती से किया। सत्यवती के गर्भ से महाराज शांतनु को चित्रांगद और विचित्रवीर्य नाम के 2 पुत्र हुए। शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा बनाए गए, किंतु गंधर्वों के साथ युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई, तब विचित्रवीर्य बालक ही थे। फिर भी भीष्म विचित्रवीर्य को सिंहासन पर बैठाकर खुद राजकार्य देखने लगे। विचित्रवीर्य के युवा होने पर भीष्म ने बलपूर्वक काशीराज की 3 पुत्रियों का हरण कर लिया और वे उसका विवाह विचित्रवीर्य से करना चाहते थे, क्योंकि भीष्म चाहते थे कि किसी भी तरह अपने पिता शांतनु का कुल बढ़े।
 
लेकिन बाद में बड़ी राजकुमारी अम्बा को छोड़ दिया गया, क्योंकि वह शाल्वराज को चाहती थी। अन्य दोनों (अम्बालिका और अम्बिका) का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया। लेकिन विचित्रवीर्य को दोनों से कोई संतानें नहीं हुईं और वह भी चल बसा। शाल्वराज के पास जाने के बाद अम्बा को शाल्वराज ने स्वीकार करने से मना कर दिया, क्योंकि वह हरण कर ली गई थी। अब अम्बा के लिए यह दुखदायी स्थिति हो चली थी। अम्बा ने अपनी इस दुर्दशा का कारण भीष्म को समझकर उनकी शिकायत परशुरामजी से की।
 
परशुरामजी ने अन्याय के खिलाफ लड़ने की ठनी। परशुरामजी ने भीष्म से कहा कि 'तुमने अम्बा का बलपूर्वक अपहरण किया है, अत: अब तुम्हें इससे विवाह करना होगा अन्यथा मुझसे युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।' भीष्म और परशुरामजी का 21 दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ। अंत में ऋषियों ने परशुराम को सारी व्यथा-कथा सुनाही और भीष्म की स्थिति से भी उनको अवगत कराया तब कहीं परशुरामजी ने ही युद्धविराम किया। इस स्थति से अम्बा फिर से न्याय मिलसे से वंचित हो गई।
 
बाद में अम्बा ने बहुत ही द्रवित होकर भीष्म को कहा कि 'तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया और अब मुझसे विवाह करने से भी मना कर रहे हो। मैं निस्सहाय स्त्री हूं और तुम शक्तिशाली। तुमने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन मैं पुरुष के रूप दोबारा जन्म लूंगी और तब तुम्हारे अंत का कारण बनूंगी।' गौरतलब है कि यही अम्बा प्राण त्यागकर शिखंडी के रूप में जन्म लेती है और ‍भीष्म की मृत्यु का कारण बन जाती है।

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दुर्योधन की गलतियों पर पर्दा डालना : भीष्म जानते थे कि दुर्योधन और शकुनी बुरी नियत से कार्य करने वाले लोग हैं। राज्य और पांडवों के खिलाफ हर बार षड़यंत्र रचने में ही उनका सारा दिन निकल जाता था। यह जानते हुए भी भीष्म ने की दुर्योधन को कुनीति या अनीति के मार्ग पर चलने से रोकने का प्रयास नहीं किया। दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण के पांच गांव की मांग को ठुकराते हुए यह कहना कि बिना युद्ध के मैं सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूंगा। तब भी भीष्म चुप रहे और दुर्योधन के शांति प्रस्ताव को ठुकराने के कृत्य को नजर अंदाज करते रहे।
यहां भी भीष्म ने की थी गलती : सत्यवती एक निषाद कन्या थी। उसने शांतनु से विवाह के पूर्व ऋषि पराशर के साथ भी संबंध बनाए थे जिसके चलते वेद व्यास का जन्म हुआ था। सत्यवती ने भीष्म से बार-बार अनुरोध किया कि वे अपने पिता के वंश की रक्षा करने के लिए विवाह करके राज-पाट संभालें, लेकिन भीष्म टस से मस नहीं हुए। अंत में सत्यवती ने भीष्म की अनुमति लेकर वेद व्यास के द्वारा अम्बिका और अम्बालिका के गर्भ से यथाक्रम धृतराष्ट्र और पाण्डु नाम के पुत्रों को उत्पन्न कराया। 
 
दरअसल, सत्यवती और शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं। दोनों को कोई पुत्र नहीं हो रहा था तो सत्यवती के पुत्र वेदव्यास माता की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिए कि वे मेरे सामने से निर्वस्त्र होकर गुजरें जिससे कि उनको गर्भ धारण होगा।'
 
सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी अम्बालिका गई, पर अम्बिका ने उनके तेज से डरकर अपने नेत्र बंद कर लिए जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देखकर भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास  लौटकर माता से बोले, 'माता अम्बिका को बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किंतु नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा।'
 
यह जानकर के माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आकर कहा, 'माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदांत में पारंगत अत्यंत नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।' इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने चले गए।
 
अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संतान थी। धृतराष्ट्र से किसी प्रकार का पुत्र न मिलने पर गांधारी के साथ भी वेदव्यास ने वही किया जो अम्बिका और अम्बालिका के साथ किया था। वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ। पांडु तो अपनी पत्नी कुंति और माद्री के साथ जंगल चले गए थे जहां उनकी मृत्यु हो गई थी। कुंति और माद्री ने क्रमश: सूर्य, पवन, इंद्र, और अश्‍विन कुमारों के साथ संबंध बनाकर पांचों पांडवों को जन्म दिया था।