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Written By ND

आतंकवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता

आतंकवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता -
- राकेश सिन्हा
न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के वैमानिक ध्वंस (11 सितंबर 2001), लंदन में हुए आत्मघाती विस्फोटों (7 जुलाई 2006) और उसके बाद मुंबई में हुए आतंकी हमलों (26 नवंबर 2008) ने पूरी दुनिया को धर्मनिरपेक्षता के परंपरागत अर्थ व व्यवहार पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर दिया है। इन तीन तिथियों का संबंध क्रमशः अमेरिका, ब्रिटेन व भारत में आतंकवादी हमलों से है। इनमें एक समानता है। सभी हमलों के पीछे उग्र इस्लामिक ताकत व सिद्धांत काम करता रहा है।

भारत के लिए मुंबई की आतंकी घटना पहली घटना नहीं थी। यह भारत के खिलाफ निरंतर
  द्वितीय विश्वयुद्ध के समय साम्राज्यवाद व फासीवाद दोनों विकल्पों के बीच भारतीय नेतृत्व ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया था उसका आज स्पष्ट रूप से अभाव दिखाई पड़ रहा है      
अघोषित युद्ध का एक हिस्सा है। पाकिस्तान का भारत-विरोधी जुनून उसकी राष्ट्रीयता का आधार बन गया है। कश्मीर को उसने इसी आक्रामक, जिहादी मानसिकता के लिए उपयोग किया है। ब्रिटेन के विदेश मंत्री मिलिबैंड ने जिस प्रकार कश्मीर को आतंकवादी हमले का कारण बताया वह या तो उनकी नासमझी है या उनकी कूटनीतिक चाल है। चाहे जो भी हो, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी पश्चिम रोटी सेंकने से बाज नहीं आता है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय साम्राज्यवाद व फासीवाद दोनों विकल्पों के बीच भारतीय नेतृत्व ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया था उसका आज स्पष्ट रूप से अभाव दिखाई पड़ रहा है। हम अमेरिकी राष्ट्रपति या पश्चिम के किसी शासक को चक्रवर्ती राजा मानकर उसके सामने एक आज्ञाकारी राष्ट्र के रूप में व्यवहार करें, यह न सिर्फ अशोभनीय है बल्कि संप्रभुता की अपूरणीय क्षति भी है।

भारत का आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष मूल रूप से पाकिस्तान केंद्रित है न कि इस्लाम केंद्रित जबकि पश्चिम की स्थिति भिन्न है। इसे समझना चाहिए। भारत के मुस्लिम कुलीनों द्वारा कल तक भारतीय समाज व राज्य को अल्पसंख्यकों के संदर्भ में पश्चिम के उदारवाद से सीखने की दुहाई दी जाती है। वे भारतीय समाज की सोच धर्मसमभाव के उदात्त मूल्यों एवं ऐतिहासिक सहअस्तित्व का आसानी से अवमूल्यन करते रहे हैं।

अमेरिका या पश्चिम के देशों ने आतंकवाद के आतंक से अपनी सोच और दृष्टिकोण में जिस प्रकार परिवर्तन किया है वह गौरतलब है। अमेरिका ने 9/11 का जवाब सख्ती से दिया। लगभग 150 संगठनों या व्यक्तियों के बैंक खातों, संपत्तियों को जब्त कर लिया गया जिनके बारे में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस घटना से नाम जुड़ा। यहाँ तक कि अफवाहों के आधार पर भी कार्रवाई होती रही।

अमेरिका के मुसलमान भले ही भारतीय राज्य एवं भारत के राजनेताओं व संगठनों के विरुद्ध वहाँ सभा, सम्मेलन करते रहे परंतु अमेरिकी राज्य या राजनेता पर टिप्पणी भी करने में वे बचते रहे। यहाँ तक कि इस्लामाबाद के कायदेआजम यूनिवर्सिटी के भौतिकी के प्रोफेसर परवेज हुडवाय ने तो वहाँ के मुसलमानों को नेक सलाह दी कि वे अमेरिकी जीवन मूल्यों एवं संस्कृति और अमेरिकी राज्य के कानूनों के अनूरूप अपने को ढाल लें।

प्रायः पश्चिम के सभी देशों ने अपने सामाजिक दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। इसका उदाहरण स्वयं ब्रिटेन है। यहाँ एक कमीशन पर रेसियल इक्वलिटी नामक संस्था थी, जिसे 2007 में मानवाधिकार संस्था का रूप दे दिया गया। यह भी उसी आतंकी हमले का परिणाम था। इसी सस्था ने घोषणा कर दी कि 'बहुसंस्कृतिवाद शब्द उपयोगी नहीं है। इसका मतलब गलत होता है। बहुसंस्कृतिवाद का तात्पर्य अलगाववाद हो जाता है।'

आतंकवादी हमले से पूर्व ब्रिटेन या पश्चिम के समाजशास्त्री व नीति-निर्धारक भारत जैसे देशों को बहुसंस्कृतिवाद का मतलब समझाते नहीं थकते थे। अब यह शब्द ही उनके लिए अलाभकारी बन गया है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि साठ प्रतिशत लोग इस्लाम के हौव्वे से आतंकित हैं और 36 प्रतिशत मुसलमानों को व्यक्तिगत तौर पर परेशानियों का सामना करना पड़ा है।

इस संदर्भ में ब्रिटेन में अनेक अध्ययन हुए हैं। हेरिस ओपिनियन पोल के मुताबिक आम लोगों में मुसलमानों के प्रति संदेह बढ़ गया है। पॉलिसी एक्सचेंज ने अध्ययन के आधार पर कहा कि देश के सौ प्रमुख मस्जिदों में जिहादी व उग्रवादी लिटरेचर बाँटी व बेची जा रही हैं।

ऑस्टे्रलिया के पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड ने 2006 में अपने कार्यकाल के दौरान चेतावनी
  आतंकवादी घटनाओं ने पश्चिम को इस्लाम व उसके अनुयायियों के प्रति परंपरागत दृष्टिकोण को बदला है। आतंकवाद से लड़ने में जो प्रक्रिया अपनाई गई है उसमें इस्लामिक जीवन पद्धति पर सीधा सवाल खड़ा किया गया है      
के स्वर में कहा था कि जिन मुसलमानों को शरीयत के रास्ते पर चलना है वे ऑस्ट्रेलिया छोड़ दें। उन्होंने कहा था कि 'मैं यह सुनते हुए थक गया हूँ कि मैं किसी व्यक्ति या संस्कृति पर आघात कर रहा हूँ।' वहाँ के इतिहास में सबसे लंबे समय तक वित्तमंत्री (ट्रेजरर) के पद पर कार्य कर चुके लिबरल पार्टी के पीटर कॉस्टेलो ने चेतावनी दी थी कि शरीयत या इस्लामिक जीवन पद्धति को स्थापित करने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

फ्रांस में तो इस्लामिक तौर-तरीकों को फ्रांस की संस्कृति व सार्वजनिक व्यवस्था के प्रतिकूल मानकर जो नया कानून बनाया गया है उसके अनुसार शिक्षण संस्थानों में धार्मिक वेशभूषा के प्रयोग पूरी तरह से वर्जित हो गया है। यहाँ बुर्का या हिजाब के प्रश्न पर कई छात्राओं को स्कूल से निष्कासित होना पड़ा है। धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल उठाया गया तब इस गैर मुस्लिमों का समर्थन नहीं मिल पाया। स्विट्जरलैंड में तीन लाख मुस्लिम हैं और सिर्फ तीन मीनारें हैं। स्विज पीपुल्स पार्टी ने मस्जिद या मीनार बनाने पर पाबंदी के लिए जो अभियान चलाया है उसे वहाँ व्यापक समर्थन मिला है।

आतंकवादी घटनाओं ने पश्चिम को इस्लाम व उसके अनुयायियों के प्रति परंपरागत दृष्टिकोण को बदला है। आतंकवाद से लड़ने में जो प्रक्रिया अपनाई गई है उसमें इस्लामिक जीवन पद्धति पर सीधा सवाल खड़ा किया गया है। सहअस्तित्व के लिए स्थानीय संस्कृति, सामाजिक मूल्यों व परंपराओं के साथ संवैधानिक प्रावधानों एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्ण समर्पण को आवश्यक माना जा रहा है।

भारत में आतंकवादी घटनाओं ने यहाँ की धार्मिक स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने का काम नहीं किया है। यह इसे पश्चिम से अलग जरूर करता है परंतु मुस्लिम संगठनों एवं नेताओं द्वारा भारतीय राज्य जाँच एजेंसियों, सेना एवं पुलिस के चरित्र पर जिस प्रकार सवाल उठ रहे हैं वे भारत के पक्ष को कमजोर करते हैं एवं समस्या के हल तक पहुँचने में अड़चन भी खड़ी करते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ता से निकलकर ही वे धर्मनिरपेक्षता को मजबूत बनाने में सहयोग कर सकते हैं। दरअसल भारत के सामने आतंकवाद और साम्राज्यवाद दोनों ही चुनौतियाँ हैं।
(लेखक इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन के मानद निदेशक हैं।)