रूठे दिलबर को मनाने के लिए शेर
प्यार भरी शायरी
मान लो तुमसे रूठ जाए कोईतुम भला किस तरह मनाओगे-'
फिराक' गोरखपुरी न बन पड़ा कोई उज़्रे जफ़ा किसी से तो हायअदा वो याद है, घबरा के रूठ जाने की-
फ़ानी' बदायूँनीपहले इसमें इक अदा थी, नाज़ था, अंदाज़ थारूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया-
आग़ा 'शायर'शिकवा किया था अज़ रहे-उल्फ़त, तंज़ समझकर रूठे होहम भी नादिम अपनी ख़ता पर, आओ, तुम भी जाने दो-'
असर' लखनवीमिलती नहीं अभी नज़र, देखते हैं इधर-उधरमन तो गए हैं वो मगर, दिल में है कुछ ग़ुबार-सा-'
आशिक़' टोंकवीये गुस्ताख़ी, ये छेड़ अच्छी नहीं है, ऐ दिले-नादाँअभी फिर रूठ जाएँगे, अभी वो मन के बैठे हैं-'
दाग'छेड़ कैसी, बात कहते रूठ जाते हैं 'रियाज़'इक हँसी हर वक्त हो उनको मनाने के लिए-
रियाज़ ख़ैराबादीरूठने को तो चले रूठ के हम उनसे भलेमुड़ के तकते थे कि अभी कोई मनाकर ले जाए-
इलाहीबख़्श ख़ाँ 'मारूफ़'लाए उस बुत को इल्तिजा करकेकुफ़्र टूटा ख़ुदा-ख़ुदा करके-
दयाशंकर 'नसीम'