शनिवार, 27 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. धार्मिक स्थल
  4. Lakshmi or mahalaxmi temple in india
Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

अद्भुत हैं महालक्ष्मी के ये आठ मंदिर

अद्भुत हैं महालक्ष्मी के ये आठ मंदिर - Lakshmi or mahalaxmi temple in india
भारत में यूं तो हनुमान, शिव, कृष्ण और दुर्गा माता के मंदिर अधिक हैं। विष्णु, राम, सरस्वती और लक्ष्मी माता के मंदिर बहुत कम ही हैं। जो भी हैं, वे सभी गुप्तकाल या उसके पूर्व के बने हुए हैं। 
 

 
देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। हम आपको बताएंगे माता लक्ष्मी के खास और प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में। वैसे जहां भी विष्णुजी विराजमान हैं, वहां लक्ष्मीजी तो होंगी ही। हम आपको बताएंगे लक्ष्मीजी के ऐसे 8 मंदिरों के बारे में जिनमें से कुछ की जानकारी शायद ही आपको होगी।
 
अगले पन्ने पर पहला मंदिर...

कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर : मुंबई से लगभग 400 किमी दूर कोल्हापुर महाराष्ट्र का एक जिला है। यहां धन की देवी लक्ष्मी का एक सुंदर मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि इस महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्णदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। इसके बाद शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
मंदिर के मुख्य गर्भगृह में देवी महालक्ष्मी की लगभग 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है जिसकी लंबाई लगभग 4 फीट की है। यह मंदिर 27,000 वर्गफीट में फैला हुआ है जिसकी ऊंचाई 35 से 45 फीट तक की है। कहा जाता है कि यहां की लक्ष्मी प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है।
 
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर देवी लक्ष्मी की आराधना और कोई नहीं, बल्कि सूर्य की किरणें करती हैं। 31 जनवरी से 9 नवंबर तक सूर्य की किरणें मां के चरणों को स्पर्श करती हैं तथा 1 फरवरी से 10 नवंबर तक किरणें मां की मूर्ति पर पैरों से लेकर छाती तक आती हैं और फिर 2 फरवरी से 11 नवंबर तक किरणें पैर से लेकर मां के पूरे शरीर को स्पर्श करती हैं।
 
किरणों के इस अद्भुत प्रसार के कारण इस काल को किरण उत्सव या किरणों का त्योहार कहा जाता है, जो कि अपने आप में ही बहुत खास है। इस मंदिर के बंद कमरों से खजाना निकला था।
 
अगले पन्ने पर दूसरा मंदिर...
 
लक्ष्मीनारायण मंदिर : लक्ष्मीनारायण मंदिर को मूल रूप में 1622 में वीरसिंह देव ने बनवाया था, उसके बाद पृथ्वीसिंह ने 1793 में इसका जीर्णोद्धार कराया। इसके बाद सन् 1938 में भारत के बड़े औद्योगिक परिवार बिड़ला समूह ने इसका विस्तार और पुनरुद्धार कराया जिसके बाद इसे बिड़ला मंदिर भी कहा जाता है।
 
भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। बिड़ला मंदिर अपने यहां मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है। सुंदर नक्काशी से सजे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।
 
अगले पन्ने पर तीसरा मंदिर...
 

मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर : मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक है यहां का महालक्ष्मी मंदिर। समुद्र के किनारे बी. देसाई मार्ग पर स्थित यह मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। महालक्ष्मी‍ मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं।
ज्ञात इतिहास के अनुसार इस महालक्ष्मी मंदिर की स्थापना अंग्रेजों के काल में हुई। अंग्रेजों ने जब महालक्ष्मी क्षेत्र को वर्ली क्षेत्र से जोड़ने के लिए ब्रीचकैंडी मार्ग को बनाने की योजना बनाई, तब समुद्र की तूफानी लहरों के चलते पूरी योजना खटाई में पड़ गई। उस समय देवी लक्ष्मी एक ठेकेदार रामजी शिवाजी के स्वप्न में प्रकट हुईं और उन्हें समुद्र तल से देवियों की 3 प्रतिमाएं निकालकर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया। रामजी के ऐसा करने के बाद ब्रीचकैंडी मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
 
मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएं एकसाथ विद्यमान हैं। यहां आने वाले हर भक्त का यह दृढ़ विश्वास होता है कि माता उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करेंगी।
 
अगले पन्ने पर चौथा मंदिर...
 
पद्मावती का मंदिर : तिरुपति के पास तिरुचुरा नामक एक छोटा-सा गांव है। यूं तो आकार में यह गांव छोटा है लेकिन सुंदरता और महत्ता में किसी से भी कम नहीं। इस गांव में देवी पद्मावती का सुंदर मंदिर है।
 
यह मंदिर 'अलमेलमंगापुरम' के नाम से भी जाना जाता है। लोक मान्यता है कि तिरुपति बालाजी के मंदिर में मांगी मुराद तभी पूरी होती है, जब श्रद्धालु बालाजी के साथ-साथ देवी पद्मावती का आशीर्वाद भी ले लें।
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी पद्मावती का जन्म कमल के फूल से हुआ है, जो मंदिर के तालाब में खिला था। मंदिर प्रांगण में कई देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर निर्मित किए गए हैं।
 
अगले पन्ने पर पांचवां मंदिर...
 
इंदौर का महालक्ष्मी मंदिर : इंदौर शहर के हृदयस्थल राजवाड़ा की शान कहे जाने वाले श्री महालक्ष्मी मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1832 में मल्हारराव (द्वितीय) ने कराया था। 1933 में यह 3 तलों वाला मंदिर था, जो आग के कारण तहस-नहस हो गया था। 1942 में मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया गया था।
 
वर्तमान सरकार की योजना के अनुसार मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर की तर्ज पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करके इसे भव्य रूप दिया जाएगा। प्रतिदिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिमा के दर्शन करते हैं। वर्तमान में महालक्ष्मी मंदिर में मुश्किल से 10-15 लोग ही खड़े रह पाते हैं।
 
होलकर इतिहास के जानकार गणेश मतकर का कहना है कि मल्हारी मार्तंड मंदिर के साथ राजवाड़ा स्थित इस प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में सुश्रृंगारित प्रतिमा का बहुत अधिक महत्व है। 
 
अगले पन्ने पर छठा मंदिर...
 
दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर : भारतीय राज्य तमिलनाडु के जिले वेल्लू में स्थित थिरुमलई कोड गांव श्रीपुरम में स्थित महालक्ष्मी मंदिर को 'दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर' कहा जाता है। 100 एकड़ में फैला मंदिर लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से बना है।
 
इस मंदिर को 24 अगस्त 2007 में जनता के लिए खोल दिया गया था। चेन्नई से 145 किलोमीटर दूर पलार नदी के किनारे स्थित यह शांत एवं छोटी-सी जगह ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण मानी गई है।
 
अगले पन्ने पर सातवां मंदिर...
 

पद्मनाभस्वामी मंदिर : यह मंदिर अपने सोने के खजाने के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल के तिरुअनंतपुरम् में मौजूद भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यहां से अपार मात्रा में 'लक्ष्मी' की प्राप्ति हुई थी।
भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुवनंतपुरम के पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहां लक्ष्मीजी की मूर्ति भी विराजमान है।
 
मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम् नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। 
 
मंदिर का निर्माण राजा मार्तंड ने करवाया था। मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ भी बना हुआ है, जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।
 
भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
 
1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभदास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी। 
 
त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में विलय कर दिया गया, लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया गया, तब से पद्मनाभ स्वामी मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
 
अगले पन्ने पर आठवां मंदिर...
 
चौरासी मंदिर : यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा से 65 किलोमीटर दूर भरमौर जिला नगर में स्थित है। यहां महालक्ष्मी के साथ गणेशजी और नरसिंह भगवान की मूर्ति भी स्थित है। प्राकृतिक वादियों में बसा यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
 
वैसे चंबा में भी लक्ष्मीनारायण का मंदिर है। यह मंदिर पारंपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्‍ट उदाहरण है। चंबा के 6 प्रमुख मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है।