शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आधुनिक भारत का रहस्य-2

आधुनिक भारत का रहस्य-2 -
1850 से 1950 के बीच भारत में सैकड़ों महान आत्माओं का जन्म हुआ। राजनीति, धर्म, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्र में भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया उसकी गूँज अभी भी दुनिया में गूँज रही है। हम जानते हैं कि दर्शन, विज्ञान, योग और धर्म के क्षेत्र में कौन महान आत्माएँ हो गई है। पहली किस्त के बाद प्रस्तुत है यह दूसरी किस्त।

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तरुण सागर : प्रवचन कहने की अपनी भिन्न शैली और क्रांतिकारी विचारधाराओं के कारण तरुण सागरजी को क्रांतिकारी संत माना जाता हैं। उनका जन्म 26 जनवरी 1967 में मध्यप्रदेश के दमोह जिले के गाँव गुहांची में हुआ। उनका जन्म नाम श्रीपवन कुमार जैन। पिता प्रतापचंदजी जैन और माता शांति बाई जैन। इन्होंने आठ मार्च 1981 को ग्रह त्याग दिया और 18 जनवरी 1982 मध्यप्रदेश के अलकतारा में आपने आचार्य श्रीपुष्पदंत सागरजी से दिगंबरी दिक्षा ग्रहण की।

आनंदमूर्ति : आधुनिक लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, सामाजिक विचारक और आध्यात्मिक नेता प्रभात रंजन सरकार ऊर्फ आंनदमूर्ति का 'आनंद मार्ग' दुनिया के 130 देशों में फैला हुआ है। उनकी किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है। परमाणु विज्ञान पर उनके चिंतन के कारण उन्हें माइक्रोवाइटा मनीषी भी कहा जाता है।

उन्होंने विज्ञान, साम्यवाद और पूँजीवाद के समन्वय के विकल्प पर बहुत विचार किया है। वे खुद प्रगतिशिल थे, लेकिन आनंद मार्गियों अनुसार पश्चिम बंगाल में उनके आंदोलन को कुचलने के लिए वामपंथियों ने आनंद मार्गियों को कई तरह से प्रताड़ित किया जो सिलसिला आज तक जारी है। ओशो के बाद आनंदमूर्ति सर्वाधिक विवादित पुरुष माने जाते हैं।

आनंदमूर्ति का जन्म 1921 और मृत्यु 1990 में हुई थी। मुंगेर जिले के जमालपुर में एशिया का सबसे पुराना रेल कारखाना है। वे रेलवे के एक कर्मचारी थे। यह जमालपुरा आनंद मार्गियों के लिए मक्का के समान है। यहीं पर सन् 1955 में आनंद मार्ग की स्थापना हुई थी।

तंत्र और योग पर आधारित इस संगठन का उद्‍येश्य है आत्मोद्धार, मानवता की सेवा और सबकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति। आनंदमार्ग के दुनिया भर में चिंतन केंद्र हैं जहाँ तंत्र, योग और ध्यान सिखाया जाता है। इस एकेश्वरवादी संगठन का मूल मंत्र है ' बाबा नाम केवलम'।

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श्रीश्री रविशंकर : श्रीश्री रविशंकर का मिशन है दुनिया से हिंसा को खत्म करना। इसीलिए वे कहते हैं कि हँसो, हँसाओं और सबको प्यार करो। विश्व शांति के लिए जरूरी है कि हम सभी से प्यार करना सीखें। मानवीय मूल्यों को समझे। दुनियाभर में 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' के माध्यम से प्रख्यात हुए श्रीश्री रविशंकर का जन्म 1956 में एक तमिल अय्यर परिवार में हुआ।

1981 में श्रीश्री फाउंडेशन के तहत उन्होंने 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' नामक शिक्षा की शुरुआत की। आज फाउंडेशन लगभग 140 देश में सक्रिय है। इस फाऊंडेशन ने दुनियाभर के लाखों लोगों को जीवन जीने की कला सीखाई है। ध्यान की सुदर्शन क्रिया और आत्म विकास के इस शैक्षणिक कार्यक्रम से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने कुंठा, हिंसा और अपनी बुरी आदतें छोड़ दी है।

राजनीतिक, औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए 1997 में श्रीश्री फाऊंडेशन एंड इंटरनेशनल एसोसिएशन संगठन की स्थापना हुई। यह संगठन देश-विदेश के अनेकों में सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेता है। रविशंकर को उनके कार्यों के लिए देश और विदेश में अनेकों मानद उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानीत किया गया है।

हाल की में उन्होंने एक नया अभियान 'स्पीड अप कैम्पन' शुरू किया है इस अभियान के तरह आर्ट ऑफ लिविंग परिवार ने युनेस्को के साथ गठजोड़ करके पूरे विश्व में व्याप्त गरीबी को जड़ से हटाने की मुहिम छेड़ रखी है। झारखंड में फैले माओवाद को खतम करने के लिए भी मन की शांति से जुड़े कई कोर्स का आयोजन किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप कुछ माओवादियों ने तो अपने हथियार डालकर अगले ‍चुनाव में जुड़ने का ऐलान किया है।

श्रीश्री के इसी प्रयासों को मद्देनजर रखकर हाल ही में उनको कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया है। फोरम टिबेरिया द्वारा स्थापित यह पुरस्कार ड्रेस्डन की मेयर हेल्मा ओरोज ने रविशंकर को प्रदान किया।

श्रीशिव दयालसिंह : राधा स्वामी सत्संग का नाम सभी ने सुना होगा। दुनियाभर में इस आंदोलन से लगभग दो करोड़ लोग जुड़े होंगे। इस एकेश्वरवादी मूर्ति भंजक संगठन की स्थापना श्रीशिव दयाल सिंह द्वारा की गई थी। आगरा में दयालबाग नामक इस संगठन का मुख्य मंदिर है जहाँ दयाल सिंह की समाधि है।

राधा स्वामी मत की अवधारणा का जन्म 1861 में हुआ था। इसे वेदों पर आधारित संत मत माना जाता है। इस संगठन में बहुदेववाद, मूर्ति पूजा, माँसाहार और मद्यपान - उक्त चार बातें सख्ती से निषेध मानी गई है। इस संगठन का भारतभर में व्यापक प्रचार-प्रसार है।

दादा लेखराज : दादा लेखराज मूलत: हीरों के व्‍यापारी थे। आपका जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था। दादा लेखराज ने सन 1936 में एक ऐसे आंदोलन का सूत्रपात्र किया जिसे आज 'प्रज्ञापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय' के नाम से जाना जाता है। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा के माध्यम से इस संस्था ने एक आंदोलन का रूप धारण किया।

जब दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया तो जो उनके सिद्दातों पर चलते थे उनमें पुरुषों को ब्रह्मा कुमार और स्त्रीयों को ब्रह्मा कुमारी कहा जाने लगा। यह आंदोलन भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखता है। विश्वभर में इस आंदोलन के कई मुख्‍य केंद्र हैं तथा उनकी अनेकों शाखाएँ हैं। इस संस्था का मुख्‍यालय भारत के गुजरात में माऊँट आबू में स्थित है। इस आंदोलन को बाद में दादी प्रकाशमणी ने आगे बढ़ाया। यह आंदोलन बीच में विवादों के घेरे में भी रहा।

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बाबा रामदेव : बाबा रामदेव अपने विचारों, बेबाक कथन और योग के कारण अक्सर चर्चा में रहते हैं। बाबा रामदेव के माध्यम से योग को जो प्रचार मिला है इससे पहले कभी इतना प्रचार नहीं मिला। रामदेव के कारण योग को पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बाबा ने दुनियाभर की यात्रा कर वहाँ योग शिविर लगाएँ है। देश के कई स्थानों पर योग शिविर का उन्होंने सफलतम आयोजन कर लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया है।

बाबा रामदेव ऊर्फ रामकृष्ण यादव का जन्म 1965 को हरियाणा में हुआ। नौ अप्रैल 1995 को रामनवमी के दिन संन्यास लेने के बाद वे आचार्य रामदेव से स्वामी रामदेव बन गए। प्रारंभ में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए पतंजलि योग पीठ की स्थापना की। छह अगस्त 2006 को इसका उद्‍घाटन किया गया। योग और आयुर्वेद का यह दुनिया का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है।

आधुनिक भारत का रहस्य-1