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Written By WD

गोपाचलगढ़ का नैमिगिर समूह

गोपाचलगढ़ का नैमिगिर समूह -
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संभवतया पुरातत्ववेत्ताओं, शोधकर्ताओं और यहाँ तक कि इतिहास लेखकों का ध्यान इस ओर नहीं गया। इस कारण इस समूह के बारे में कहीं लिखा देखने को नहीं मिला। इस समूह का नाम अपनी सुविधा हेतु नैमिगिर इस मार्ग की ऊँचाई, दुर्गमता एवं नेमिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा के कारण दिया गया है। यह स्थान ग्वालियर किला गेट के पास गूजरी महल के आगे ऊँची पहाड़ी पर दाहिने हाथ की ओर है।

गोपाचलगढ़ पर उपलब्ध मूर्तियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ पंद्रहवीं शताब्दी की मूर्तियाँ हैं। परन्तु इस समूह की मूर्तियाँ 10वीं से 12वीं शताब्दी की प्रतीत होती हैं, जो तोमर काल से पूर्व की हैं। इससे इस कथन की पुष्टि होती है कि गोपाचल क्षेत्र में जैन धर्म का प्रचार और विकास का क्रमबद्ध इतिहास जो लगभग आठवीं शताब्दी से प्राप्त होता है, उसमें यह समूह भी उस इतिहास की श्रृंखला की एक कड़ी है।

कन्नौज के प्रतापी यशोवर्धन के पुत्र आम ने गोपाचलगढ़ को अपनी राजधानी सन्‌ 750 ई. में बनाया था। आपने जैन संत वप्प भट्ट सूरी का शिष्यत्व ग्रहण किया था। ऐसा विदित होता है कि उस समय गोपाचल पर अनेक जैन मंदिरों का निर्माण हुआ।

ग्यारहवीं शताब्दी में एक मंदिर गोपाचलगढ़ के ऊपर निश्चित रूप से था, क्योंकि कच्छपघात मूलदेव (मुखनैक मल्ल) के राज्य में राज्याधिकारियों ने इस मंदिर में जैनियों का निर्बाध प्रवेश बंद कर दिया था। श्री अभयदेव सूरी के आग्रह पर महावीर स्वामी के इस मंदिर के द्वार समस्त जैन जनता के लिए उन्मुक्त कर दिए गए थे।

उस समय के शिलालेख प्राप्त नहीं हुए हैं, परन्तु नैमिगिर समूह उसी समय 11वीं-12वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। इसकी प्राचीनता एवं महत्ता चित्रों से प्रकट होती है।