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Written By WD

पुत्र प्राप्ति, सौभाग्य बढ़ाने हेतु

पुत्र प्राप्ति, सौभाग्य बढ़ाने हेतु -
हेतु- पुत्र प्राप्ति होती है, सौभाग्य बढ़ता है।

ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु ।
तेजः स्फुरन्मणिषु यादि यथा महत्त्वं नैवं तु काच-शकले किरणाकुलेऽपि ॥ (20)

तेरे में ज्ञान की जो झिलमिल ज्योति है... वह और किसी अन्य देव-देवी में तो मिलेगी भी कैसे? सच्चे मणि में जैसी तेज किरणें निखरती हैं... वैसी आभा काँच के टुकड़ों में-से बिखरने से रही! अर्थात्‌ नहीं बिखर सकती।

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो चारणाणं ।

मंत्र- ॐ श्रीं श्रीं श्रूँ श्रः शत्रुभयनिवारणाय ठःठःनमःस्वाहा ।