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Written By ND

हजारों साल पुरानी विद्या

केरवा डेम के पास सिखाई जाती है

हजारों साल पुरानी विद्या -
- सुमेरसिंह यदुवंशी
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विपश्यना भारत की एक प्राचीन ध्यान विधि है, जिसे ढाई हजार साल पहले भगवान गौतम बुद्ध ने पुनः खोज निकाला था। उन्होंने इसका खुद अभ्यास किया और लोगों को करवाया, यह उसका सार हैं। बुद्ध के समय उत्तर भारत के बहुतायात लोग विपश्यना के अभ्यास से दुःख मुक्त हुए और जीवन खुशियों से भर गया। समय के साथ-साथ यह विद्या बर्मा, थाइलैंड आदि देशों में फैल गई और लोगों का कल्याण करने लगी, लेकिन बुद्ध के निर्वाण के कोई पाँच सौ साल बाद विपश्यना विधि की शुद्धता नष्ट हो गई और यह भारत से लुप्त हो गई, परंतु बर्मा में इस विद्या के प्रति समर्पित आचार्यो ने इसे शुद्घ रूप में कायम रखा।

सयाजी उ बा खिन ने भेजी विद्या : बर्मा में विपश्यना को पीढ़ी दर पी़ढ़ी संभालकर रखने वाले सयाजी उ बा खिन ने 1969 में व्यवसायी सत्यनारायण गोयनका को अधिकृत किया कि वह विपश्यना को भारत ले जाएँ। गोयनका जी ने भारत में 1969 से शिविर लगाने शुरू किए थे। इनमें वे अपने खास अंदाज में प्रशिक्षण देते हैं। उन्होंने 120 से अधिक सहायक आचार्यो को इस योग्य बनाया है कि वे विश्व भर में 1200 से अधिक शिविरों में साधकों को प्रशिक्षित कर सकें। इन शिविरों में भाग लेकर ध्यान विधि सीखने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।

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कैसे सीखते हैं विपश्यना : इस विद्या को सीखने के लिए योग्य प्रशिक्षक (आचार्य) का मार्गदर्शन जरूरी है। दस दिवसीय शिविर में विपश्यना सिखाने आचार्य दूर-दूर से आते हैं। इस दौरान साधकों को शिविर स्थल पर रहना अनिवार्य है। उन्हें बाहरी दुनिया से सभी संपर्क काटना प़ड़ता है। किसी भी तरह की प़ढ़ाई लिखाई व निजी धार्मिक अनुष्ठानों, क्रियाकलापों से विरत रहना होता है।

एक ऐसी दिनचर्या से गुजरना होता है, जिसमें दिन में कई बार बैठे-बैठे ध्यान करना होता है। दिनभर में करीब 10 घंटे बैठकर ध्यान करना होता है। इसके साथ ही दस दिन तक मौन रखना होता है। इसमें इशारों से भी बात नही की जा सकती। सिर्फ साधना संबंधी प्रश्नों के बारे में तप स्थल पर आचार्य से परामर्श ले सकते हैं।

पाँच शील पालन करना जरुरी : विपश्यना शिविर प्रशिक्षण के 3 सौपान होते हैं। पहला साधक उन कार्यों से दूर रहे, जिनसे उसको हानि होती है। इसके लिए 5 शील पालन करना होता हैं। इनमें जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, अब्रह्मचर्य तथा नशे के सेवन से दूर रहना होता है। दूसरा सौपान शिविर के पहले सा़ढ़े 3 दिन अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित कर ' आनापान' नामक साधना करना होती है। इससे मन को नियंत्रित करना सरल हो जाता है। तीसरे सौपान में अंतर्मन की गहराई में दबे विकारों को दूर कर मन को निर्मल किए जाने का अभ्यास करना होता है।

इसके बाद शिविर के सा़ढ़े 6 दिन प्रज्ञा जगाकर शरीर पर होने वाली संवेदनाओं को समझना और उनके प्रति राग-द्वेष नही जगाने की शिक्षा हासिल की जाती है। संवेदनाओं की उपेक्षा करने का अभ्यास करने से सुख-दुख की अनुभूति नहीं होती है। साथ ही श्री गोयनका की वाणी में टेप पर शाम को प्रवचन व सीख सुनने को मिलती हैं। शिविर का समापन मंगल-मैत्री के साथ किया जाता है।

किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं : चाहे विपश्यना बौद्ध परम्परा में सुरक्षित रही है, फिर भी इसमें कोई साम्प्रदायिक तत्व नहीं है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों को बौद्व नहीं धार्मिक कहा। इससे साबित है कि विपश्यना किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों के लिए है, क्योंकि समस्याएं सभी की एक जैसी ही होती है। विपश्यना के शिविर ऐसे लोगों के लिए खुले हैं, जो ईमानदारी से इसे सीखें। इसमें कुल, जाति, धर्म व राष्ट्रीयता आ़ड़े नहीं आतीं। जैसे क्रोध को किसी वर्ग से नहीं जोड़ा जा सकता है। क्रोध न तो हिंदू क्रोध होता है, न ईसाई क्रोध, न चीनी, न अफ्रीकन। इसी प्रकार प्रेम तथा करुणा भी किसी समुदाय अथवा पंथ विशेष की नहीं होती हैं।

अशोक केला की कमाई ने अलख जगाई: भोपाल के अरेरा कालोनी निवासी उद्योगपति अशोक केला ने अपनी कमाई का सारा हिस्सा विपश्यना का लाभ जन-जन तक पहुँचाने के लिए लगाया है। उन्होंने केरवा डेम के पास दौलतपुरा में शानदार विपश्यना केंद्र बनवाया है। इस विद्या को बर्मा से भारत लाने वाले गुरुजी सत्यनारायण गोयनका के मार्गदर्शन में श्री केला केंद्र पर अधिक से अधिक सुविधाएँ जुटाने में लगे हैं।

8 से जनवरी 16 -सतीपत्थना
20 से 31जनवरी -10 दिन
17 से 28 फरवरी -10 दिन
5 से 7 मार्च -2 दिन
10 से 21 मार्च -10 दिन
26 से 29 मार्च -3 दिन
3 से 14 अप्रैल-10 दिन
21 अप्रैल से 2 मई -10 दिन
7 से 8 मई-1 दिन, बच्चों के लिए
12 से 23 मई-10 दिन
29 मई से 9 जून -10 दिन
12 से 20 जून-8 दिन लड़कियों के लिए
23 जून से 4 जुलाई-10 दिन
10 से 21 जुलाई -10 दिन
25 जुलाई से 2 अगस्त-सतीपत्थना
7 से 18 अगस्त-10 दिन
25 अगस्त से 5 सितम्बर -10 दिन
11 से 22 सितम्बर-10 दिन
29 सितम्बर से 10 अक्टूबर -10 दिन
14 से 17 अक्टूबर-3 दिन
20 से 31 अक्टूबर-10 दिन
10 से 21 नवम्बर -10 दिन
27 नवम्बर से 8 दिसम्बर-10 दिन
15 से 26 दिसम्बर --10 दिन
31 दिसम्बर से 3 जनवरी 2011